गोवर्धन पूजा का संबंध मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत से है। इस पर्वत को हिंदुओं का पवित्र स्थान माना गया है । 8 किलो मीटर लंबे इस पर्वत कि पैदल परिक्रमा की जाती है। दिवाली के दूसरे दिन कि जाने वाली इस पूजा में घर के आंगन में गोबर का पर्वत बनया जाता है और उसकी पूजा कर के 56 तरह के भोग लगाए जाते हैं।  गोवर्धन पूजा के दिन गाय की भी पूजा कि जाती है।  माना जाता है कि गाय का दूध, दही, घी और यहां तक कि गोबर भी सबसे शुद्ध होता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन लोग जगह जगह अन्न या खाने पीने के भंडारे भी लगाते हैं।
Govardhan puja

गोवर्धन पूजा की कहानी

गोकुल काल में जब भगवान श्रीकृष्ण बाल्यवस्था में थे, तो उस वक्त वहां बृज के लोग हर साल बारिश के देवता भगवान इंद्र कि पूजा करते थे। लोगों का मानना था कि इंद्रदेव बारिश करते हैं और तभी फसल होती है इसलिये उनका आभार जताने के लिये अन्नकूट करना चाहिए। श्रीकृष्ण भगवान ने सबको कहा कि हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायों को वहीं से चारा मिलता है। सब लोगों को ये बात ठीक लगी और उन्होंने इंद्र देव की पूजा छोड़ गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। इस बात से इंद्र देव गुस्सा हो गए और उन्होंने ब्रज में जमकर बारिश लगा दी। कई दिन बारिश होती रही, हर जगह पानी ही पानी हो गया। लोगों के घर बह गए। तब श्रीकृष्ण आए और उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। सब बृज वासी उस पर्वत के नीचे अपने पशुओं को लेकर आ गए। श्रीकृष्ण की लीला देख कर इंद्र देव का घमंड टूटा और उन्होंने श्रीकृष्ण से माफी मांगी। उस दिन के बाद से अब तक ये त्योहार मनाया जाता है। गोवर्धन पर्वत के साथ साथ गाय और बछड़ों की भी पूजा होती है। गायों को नहलाया जाता है और रंग लगाकर अच्छा अच्छा खिलाया जाता है।
what is govardhan

गोवर्धन पूजा विधि

- सुबह जल्दी उठें और शरीर पर तेल लगाने के बाद स्नान करें
- घर के आंगन मेंं गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाएं
- पर्वत के पास भगवान कृष्ण की प्रतिमा रखें
- अब 56 भोग लगाएं
- पूजा पाठ करके कथा करें
- सबको प्रसाद बांट दें

गोवर्धन पर्वत कैसे पहुंचा जाए

गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में है। ये वृंदावन से करीब 20 किलो मीटर की दूरी पर है। आप यहां बस या कार से जा सकते हैं।


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