गोवर्धन पूजा यूं तो पूरे देश मे की जाती है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में इसे खास तौर पर मनाया जाता है। वहीं महाराष्ट्र में इसे बालि प्रतिपदा के तौर पर मनाया जाता है। इन दोनो ही त्योहारों के पीछे पौराणिक इतिहास है।

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गोवर्धन पर्वत की कथा

गोकुल काल में जब भगवान श्रीकृष्ण बाल्यवस्था में थे, तो उस वक्त वहां बृज के लोग हर साल बारिश के देवता भगवान इंद्र कि पूजा करते थे। लोगों का मानना था कि इंद्रदेव बारिश करते हैं और तभी फसल होती है इसलिये उनका आभार जताने के लिये अन्नकूट करना चाहिए। श्रीकृष्ण भगवान ने सबको कहा कि हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायों को वहीं से चारा मिलता है। सब लोगों को ये बात ठीक लगी और उन्होंने इंद्र देव की पूजा छोड़ गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। इस बात से इंद्र देव गुस्सा हो गए और उन्होंने ब्रज में जमकर बारिश लगा दी। कई दिन बारिश होती रही, हर जगह पानी ही पानी हो गया। लोगों के घर बह गए। तब श्रीकृष्ण आए और उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। सब बृज वासी उस पर्वत के नीचे अपने पशुओं को लेकर आ गए। श्रीकृष्ण की लीला देख कर इंद्र देव का घमंड टूटा और उन्होंने श्रीकृष्ण से माफी मांगी। उस दिन के बाद से अब तक ये त्योहार मनाया जाता है। गोवर्धन पर्वत के साथ साथ गाय और बछड़ों की भी पूजा होती है। गायों को नहलाया जाता है और रंग लगाकर अच्छा अच्छा खिलाया जाता है।

बालि प्रतिपदा

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महाबलि राजा का राज था। राजा को लोग बहुत पसंद करते थे। लोग उन्हें भगवान मानने लगे, लेकिन राजा में अभिमान भी था। भहवान इन्द्र ने विनती की तो भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण का वेश बनाकर राजा महाबलि के पास गए। ब्रह्मण ने तीन कदम ज़मीन राजा से मांगी। राजा दानी था तो कहा कि आप जहां चाहे ये ज़मीन ले सकते हैं।  इतना कहते ही भगवान विष्णु ने विशाल रूप ले लिया और एक कदम में पूरी पृथ्वी, द्सूरे कदम में स्वर्ग नाप लिया, लेकिन तीसरे कदम के लिये जगह ही नहीं बची। यह देखते ही राजा महाबलि ने तीसरे कदम के लिये अपना सिर आगे कर दिया। अब विष्णु ने बलि से सब कुछ ले लिया था और उसे कहा कि वो पाताल लोक चले जाएं और वहां रहें। पाताल जाने से पहले विष्णु ने उनकी एक इच्छा पूरी करने की बात कही। राजा ने कहा कि मुझे साल में एक दिन अपनी प्रजा से मिलने दिया जाए। कहते हैं राजा बलि इसी दौरान पाताल लोक से आते हैं।

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