मथुरा से अगर पश्चिम दिशा की ओर चलना शुरू करें तो करीब 26 किलोमीटर बाद आता है गोवर्धन पर्वत। गोवर्धन हिंदुओं के लिये एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। गोवर्धन असल में गिरराज पर्वत है जो कि एक जमाने में कई सौ गुना ऊंचा होता था, लेकिन अब हजारों सालों से रोज एक मुट्ठी घट रहा है। घटते घटते आज य बहुत कम रह गया है। गोवर्धन पूजा के दिन इसी पर्वत का आकार गऊ के गोबर से बनाया जाता है। गोबर के पर्वत को अच्छे से सजाकर उसे फल, फूल अर्पित किये जाते हैं।
गिरिराज पर्वत को अन्नकूट पर्वत भी कहा जाता है। अन्नकूट का मतलब होता है अन्न यानि भोजन का पर्वत। गोवर्धन पूजा की पिछली रात को भक्त जाग कर भगवान के लिये 56 या 108 पकवान बनाते हैं। इसे छप्पन भोग भी कहा जाता हैय़ अगली सुबह पूजा के बाद इनका भोग लगाया जाता है। मंदिरों में इस दिन गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा को अच्छे से सजाया जाता है। रंग बिरंगे कपड़े, आभूषण लगाए जाते हैं। बाद में 56 भोग लगाकर लोगों को प्रसाद बांटा जाता है।
 

गोवर्धन पूजा क्या सिखाती है

गोवर्धन पूजा हमें सिखाती है कि अन्न की इज्जत करना और जिस जगह से आपको या आपके पशुओं को अन्न मिल रहा है उसका सम्मान करना। जिस तरह पर्वत में पशु चरते हैं। उस पर लगे पेड़ों से फल मिलते हैं। पानी मिलता है। वैसे ही हमें भी पर्वत का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि अगर प्रकृति है तभी हम हैं। अगर कभी एक दिन के लिये पर्वत गायब हो जाएं तो ना तो बारिश होगी। ना ही हवा बहेगी और ना ही नदियों में मीठा पानी आएगा। सारी दुनिया खत्म हो जाएगी। इसलिये हम हमेशा गिरिराज पर्वत की तरह पूरी प्रकृति का सम्मान करते रहें।

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