गुग्गा नवमी

गुग्गा नवमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हिमाचल के कई हिस्सों (विशेषकर ऊना जिला), हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में मनाया जाता है। इस त्योहार का नाम गुग्गा पीर के नाम पर रखा गया है, जो एक प्रतिष्ठित धर्मगुरु हैं, जिनका जन्म राजस्थान के बीकानेर के ददरेवा गांव में हुआ था। गुग्गा नामी को आम तौर पर एक विशिष्ट पारंपरिक समय "9 वें भादो" के रूप में मनाया जाता है, जो हर साल अगस्त और सितंबर के बीच आता है। गुग्गा पीर ऋषि बहुत दिलचस्प है। वह वास्तव में, चौहान राजपूत ’कबीले के एक शख्स बछराज का जन्म हुआ था, और बाद में एक प्रमुख स्थानीय सरदार की बेटी राजकुमारी कुमारी सिरियाल का जन्म हुआ था। हांलाकि धीरे-धीरेघटनाओं की एक तीव्र श्रृंखला के बाद, उन्होंने सांसारिकता को त्याग दिया और साधुवाद को अपनाया, रास्ते में कई अनुयायियों को इकट्ठा किया। अब, गुग्गा पीर पूरे उत्तर भारत में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के समान है।

गुग्गा नवमी उत्सव

त्योहार, वास्तव में, निर्धारित दिन से एक सप्ताह पहले शुरू होता है जब एक बड़ा जुलूस, गुग्गा पीर की मूर्ति को प्रभावित करता है, सड़कों पर अपना रास्ता बनाता है। मूर्ति को 'गुग्गा किछारी' के नाम से जाना जाता है और इसमें एक ठोस लम्बी बांस की छड़ होती है, जिसे पुष्पमालाओं, फूलों, रंगीन स्कार्फ और संबंधित पैराफर्नेलिया से सजाया जाता है। तैमूर भक्तों के अलावा, जुलूस में ’भगतों’, वरिष्ठ धार्मिक पुजारियों की भागीदारी भी देखी जाती है। एक भगत जुलूस की निगरानी करता है जबकि पांच अन्य भगत एक यात्रा संगीत मंडली बनाते हैं। यह मंडली लगातार गुग्गा पीर की धुन पर लोक धुन गाती है और पारंपरिक भारतीय वाद्ययंत्र जैसे ढोलक, मंजीरा, डेरू (एक छोटा ताल वाद्य) और चिमटा की सहायता से धार्मिक संगीत बजाती है। जुलूस एक सप्ताह के लिए तब तक कायम रहता है जब तक कि गुग्गा नामी पर इसका समापन नहीं हो जाता, जब विशेष प्रार्थना होती है। गुग्गा देवता की पूजा श्रावण मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन से आरंभ हो जाती है, यह पूजा-पाठ नौ दिनों तक यानी नवमी तक चलती है इसलिए इसे गुग्गा नवमी कहा जाता है।

 गुग्गा जन्म कथा

गुग्गा नवमी के विषय में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार गुग्गा मारु देश का राजा था और उनकी मां  बाछला, गुरु गोरखनाथ जी की परम भक्त थीं। एक दिन बाबा गोरखनाथ अपने शिष्यों समेत बछाला के राज्य में आते हैं। रानी को जब इस बारत का पता चलता हे तो वह बहुत प्रसन्न होती है इधर बाबा गोरखनाथ अपने शिष्य सिद्ध धनेरिया को नगर में जाकर फेरी लगाने का आदेश देते हैं। गुरु का आदेश पाकर शिष्‍य नगर में भिक्षाटन करने के लिए निकल पड़ता है भिक्षा मांगते हुए वह राजमहल में जा पहुंचता है तो रानी योगी बहुत सारा धन प्रदान करती हैं लेकिन शिष्य वह लेने से मना कर देता है और थोडा़ सा अनाज मांगता है।

रानी अपने अहंकारवश उससे कहती है की राजमहल के गोदामों में तो आनाज का भंडार लगा हुआ है तुम इस अनाज को किसमें ले जाना चाहोगे तो योगी शिष्य अपना भिक्षापात्र आगे बढ़ा देता है। आश्चर्यजनक रुप से सारा आनाज उसके भिक्षा पात्र में समा जाता है और राज्य का गोदाम खाली हो जाता है किंतु योगी का पात्र भरता ही नहीं तब रानी उन योगीजन की शक्ति के समक्ष नतमस्तक हो जाती है और उनसे क्षमा याचना की गुहार लगाती है।

रानी योगी के समक्ष अपने दुख को व्यक्त करती है और अपनी कोई संतान न होने का दुख बताती है। शिष्य योगी, रानी को अपने गुरु से मिलने को कहता है जिससे उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान प्राप्त हो सकता है। यह बात सुनकर रानी अगली सुबह जब वह गुरु के आश्रम जाने को तैयार होती है तभी उसकी बहन काछला वहां पहुंचकर उसका सारा भेद ले लेती है और गुरु गोरखनाथ के पास पहले पहुंचकर उससे दोनो फल ग्रहण कर लेती है।

परंतु जब रानी उनके पास फल के लिए जाती है तो गुरू सारा भेद जानने पर पुन: गोरखनाथ रानी को फल प्रदान करते हैं और आशिर्वाद देते हें कि उसका पुत्र वीर तथा नागों को वश में करने वाला तथा सिद्धों का शिरोमणि होगा। इस प्रकार रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है उस बालक का नाम गुग्गा रखा जाता है।

कुछ समय पश्चात जब गुग्गा के विवाह के लिए गौड़ बंगाल के राजा मालप की बेटी सुरियल को चुना गया परंतु राजा ने अपनी बेटी की शादी गुग्गा से करवाने से मना कर दिया इस बात से दुखी गुग्गा अपने गुरु गोरखनाथ जी के पास जाता है और उन्हें सारी घटना बताता है। बाबा गोरखनाथ ने अपने शिष्य को दुखी देख उसकी सहायता हेतु वासुकी नाग से राजा की कन्या को विषप्रहार करवाते हैं।

राजा के वैद्य उस विष का तोड़ नहीं जान पाते अंत वेश बदले वासुकी नाग राजा से कहते हैं कि यदि वह गुग्गा मंत्र का जाप करे तो शायद विष का प्रभाव समाप्त हो जाए राजा गुगमल मंत्र का प्रयोग विष उतारने के लिए करते हैं देखते ही देखते राजा की बेटी सुरियल विष के प्रभाव से मुक्त हो जाती है और राजा अपने कथन अनुसार अपनी पुत्री का विवाह गुगमल से करवा देता है।

गोगा नवमी की पूजा हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाकों में होती है। गोगा नवमी का त्यौहार एक दिन नहीं बल्कि आठ दिन तक मनाया जाता है। इस दिन गोगा देवता के मंदिर में पूजा की जाती है और प्रसाद कराया जाता है। प्रसाद के रूप में रोट और चावल का आटा चढ़ाते हैं। साथ ही गोगा नवमी पर लोग गोगा देवता की कथा सुनते हैं और भजन करते हैं। यही नहीं इस दिन गाने वालों की मंडलियां घर-घर जाकर गोगा का गुणगान करती हैं। 

गोगा नवमी का महत्व

भादों की नवमी को गोगा नवमी के रूप में मनाते हैं। इसमें गोगा महाराज को याद किया जाता है। गोगा जी को नागराज का अवतार माना गया है। जो एक प्रतापी राजा थे और बहुत से विरोधी राजाओं को हराया था। उनका राज हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में फैला था। वह बाद में गुग्गा पीर बन गए। राजस्थान में गोगाजी की प्रमुख जगह गोगामेडी हनुमानगढ़ जिले के नोहर में मौजूद हैं और दूसरी जगह ददेवरा चुरू जिले में स्थित हैं। इन दोनों जगहों पर गोगा नवमी के दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता हैं।

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