
गुरु अमरदास जी की जीवनी
गुरु अमरदास जी के पिता तेज भान भल्ला जी एवं माता बख्त कौर थीं। गुरू अमरदास जी का विवाह माता मंसा देवी जी से हुआ था। उनकी चार संतानें थी। गुरु अमरदास जी एक बार बीबी अमरो जी (गुरू अंगद साहिब की पुत्री) से गुरू नानक साहिब के शबद् सुने। उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधू से गुरु अंगद देव जी का पता पूछकर तुरंत उनके गुरु चरणों में आ गिरे। उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देव जी को गुरु बना लिया और लगातार 11 वर्षो तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की। सिखों के दूसरे गुरु श्री अंगद देव जी ने उनकी सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर एवं उन्हें सभी प्रकार से योग्य जानकर 'गुरुगद्दी' सौंप दी। इस प्रकार वे सिखों के तीसरे गुरु बन गए। गुरु अमरदास का निधन 1 सितम्बर, 1574 को अमृतसर में हुआ था। गुरु अमरदास ने लंगर समारोह शुरू करने के अभ्यास की वकालत की। जिसके तहत भक्तों को मुफ्त भोजन मिल सके। उनका मानना था कि भक्त जब भी गुरुद्वारे जाएं उन्हें भर पेट लगंर खाने को मिले ताकि जरुरतमंदो की मदद हो सके। सिख धर्म में लगंर प्रथा की शुरुआत करने का श्रेय गुरु अमरदास जी को ही जाता है। उन्होंने ही स्वंय गुरुद्वारों में जा-जा कर निशुल्क में लोगों को एक साथ बिठाकर भोजन कराया। बाद में इसे लगंर का नाम दे दिया गाय। वे जब भी किसी भी गुरुद्वारा जाते हैं तो उन्हें मुफ्त भोजन की पेशकश करते थे। जिससे सिखों के बीच यह लोकप्रिय हो गया है और वे पूर्ण धार्मिक विश्वास के साथ इस परंपरा का पालन करने लगे। प्रत्येक वर्ष गुरु अमरदास जयंती धार्मिक भक्ति के साथ मनाई जाती है ।समाज सुधारक गुरु अमरदास जी
गुरु अमरदास जी एक महान समाज सुधारक थे। वो समाज को केवल अध्यात्मिक ज्ञान ही नहीं देते थे बल्कि समाज की बुराईयों को दूर करवने में विश्वास रखते थे। वो हमेशा स्त्री शिक्षा, उनकी समानता के पक्षधर थे। उस समय मध्यकालीन भारतीय समाज 'सामंतवादी समाज' होने के कारण अनेक सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त था। उस समय जाति-प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या-हत्या, सती-प्रथा जैसी अनेक बुराइयां समाज में प्रचलित थीं। ये बुराइयां समाज के स्वस्थ विकास में अवरोध बनकर खड़ी थीं। ऐसे कठिन समय में गुरु अमरदास जी ने इन सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध बड़ा प्रभावशाली आंदोलन चलाया। जाति-प्रथा एवं ऊंच-नीच को समाप्त करने के लिए गुरु जी ने लंगर प्रथा को और सशक्त किया। उस जमाने में भोजन करने के लिए जातियों के अनुसार 'पांतें' लगा करती थीं, लेकिन गुरु जी ने सभी के लिए एक ही पंगत में बैठकर 'लंगर खाना अनिवार्य कर दिया। कहते हैं कि जब मुगल बादशाह अकबर गुरु-दर्शन के लिए गोइंदवाल साहिब आया, तो उसने भी 'संगत' के साथ एक ही 'पंगत' में बैठकर लंगर खाया। लंगर खिलान का मकसद ही यही था कि लोगों के मन में से उंच-नीच, अमीर-गरीब एवं छोटे-बड़े का भाव मिटे। यही नहीं, छुआछूत को समाप्त करने के लिए गुरु जी ने गोइंदवाल साहिब में एक 'सांझी बावली' का निर्माण भी कराया। कोई भी मनुष्य बिना किसी भेदभाव के इसके जल का प्रयोग कर सकता था। गुरु अमरदास जी ने सबसे ज्यादा जोर विधवा विवाह एवं सती प्रथा पर रोक लगा कर दिया। उनका मानना था कि पुरुषों की तरह ही स्त्रियों को भी पुनः शादी करने का अधिकार होना चाहि। उन्हें अपनी जिंदगी जीने का हक होना चाहिए। पति के साथ स्त्रियों को नहीं जलना चाहिए। सती प्रथा के प्रति तो वह बिल्कुल कट्टर थे। उन्होंने कभी भी इस प्रथा का समर्थन नहीं किया। सती-प्रथा जैसी घिनौनी रस्म को स्त्री के अस्तित्व का विरोधी मानकर, उसके विरुद्ध जबरदस्त प्रचार किया। गुरु जी द्वारा रचित 'वार सूही' में सती प्रथा का ज़ोरदार खंडन किया है। इतिहासकारों का मत है कि गुरु जी सती प्रथा के विरोध में आवाज उठाने वाले पहले समाज सुधारक थे। उन्होंने कभी भी इस प्रथा का समर्थन नहीं किया। यह गुरु अमरदास जी एवं बाद के अन्य समाज सुधारकों के प्रयत्नों का ही फल है कि आज का समाज अनेक बुराइयों से दूर हो सका है।गुरु अमरदास जयंती समारोह
सिख गुरु अमरदास जयंती के दिन सिख समुदाय इस बहुत ही भव्य तरीके से मनाता है। गुरुद्वारो को रोशनी से सजाया जाता है। सुहह स्नान कर सिख इस पवित्र दिन पर गुरुद्वारा जाते हैं। गुरु के सम्मान के रूप में गुरुद्वारा में मौजूद भक्तों के बीच विशेष प्रसाद वितरित किए जाते हैं। भक्त इस प्रसाद को भक्तिपूर्ण मन से ग्रहण करते हैं। सभी गुरुद्वारा में पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब का सम्मान किया जाता है। उसकी पूजा की जाती है। गुरु ग्रंथ साहिब को सिख किताबों में से सबसे पवित्र माना जाता है और भक्त इस दिन पवित्र पुस्तक के सामने सर झुकाकर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। इस अवसर पर भक्तों द्वारा विशेष कर सेवा की पेशकश की जाती है। निशुल्क पानी वितरण एवं जूते-चप्पलो रखने की सेवा की जाती है। इस अवसर पर गुरुद्वारा परिसर की सफाई की जाती है। कुछ भक्त इस अवसर पर सामुदायिक रसोई में मदद करना पसंद करते हैं लंगर को बनाने के लिए कई भक्त सामने आते हैं। वो गुरुद्वारे की रसोई के कामों में हाथ बंटाते है। गुरुद्वारे आने वाले लोगों को लंगर खिलाते हैं। जिसकी जितनी श्रद्धा होती है वो इस दिन उतना दान करता है। कुछ लोग गुरुद्वारा खजाने में आटा, दाल और चावल दान करना पसंद करते हैं। इस दिन भक्तों के बीच शर्बत या मीठा पानी भी वितरित किए जाता हैं। सड़को पर, चौराहों पर जगह-जगह मीठे पानी का स्टॉल लगा कर राहगीरों को वितरण किया जाता है। कई लोग आपस में मिलकर भंडारे का भी आयोजन करते हैं। जहां लोगों को भोजन कराया जाता है। सिखों के सबसे पवित्र शहर अमृतसर को विशेष रूप से गुरु अमरदास जयंती के अवसर पर सजाया जाता है। अमृतसर स्थित स्वर्ण मदिंर की छंटा इस दिन देखते ही बनती है। इसे पूरा फूल, लाइटों से सजाया जाता है। दूर-दूर से भक्ति इस दिन स्वर्ण मंदिर में आते हैं। दि नभर भजन-कीर्तिन, गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ स्वर्ण मंदिर एंव अन्य गुरुद्वारों में चलता रहता है। भक्त स्वर्ण मंदिर स्थित सरोवर में स्नान करके स्वंय को पवित्र करते हैं। दुनिया भर में सिख उनकी वास्तविकता, धार्मिक सहिष्णुता और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। वे अपनी धार्मिक भावनाओं को सच्ची ईमानदारी से प्रदर्शित करने के लिए जाने जाते हैं और इसका एक प्रतिबिंब गुरु अमरदास जयंती पर देखा जा सकता है। गुरु अमरदास जयंती प्यार, भाईचारे का प्रतिक है जिसने मनुष्यों को सब भेद मिटा प्रेम पूर्वक एक होने का संदेश दिया है।To read this Article in English Click here