‘गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए'

गुरु का स्थान जगत में सबसे बड़ा होता है। यदि गुरु और गोविंद (भगवान) में से किसी एक का चुनाव कर उनके पैर छूने हो तो गुरु के छूने चाहिए। भगवान भी खुद से पहले गुरु को पूजते हैं। उनकी पूजा को श्रेष्ठ मानते हैं। गुरु का स्थान ईश्वर से भी बड़ा होता है। मां-बाप तो हमें पालते-पोसते हैं ही, साथ ही सब ज्ञान भी देते हैं, लेकिन वो गुरु ही है जो हमें इस जीवन में जीना सिखाता है। गुरु वो होते हैं जो हमें सिख देते हैं। जीवन की सच्चाईयों से रुबरु कराते हैं। तभी तो ईश्वर भी गुरु के आगे नतमस्तक होते हैं। गुरु दो अक्षरों से मिलकर बना शब्द है शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और ‘रु’ का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक अर्थात गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञानता का नाश कर ज्ञान की ज्योती जलाता है। अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ही 'गुरु' कहा जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार के अषाढ़ (जुलाई) माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को "गुरु" यानी एक शिक्षक या उपदेशकों को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा की अत्यंत महिमा होती है। यूं तो पूर्णिमा प्रत्येक माह में एक बार होती है जब पूरा आकाश चन्द्रमा की चांदनी में रोशन हो जाता है। पूर्णिमा के दिन बादलों का अलग ही नज़ारा होता है। लेकिन गुरु पूर्णिमा अन्य सभी पूर्णिमाओं से श्रेष्ठ बतलाई गई है क्योंकि इसमें गुरु की पूजा होती है।

क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा यूं तो गुरुओं के सम्मान का एक दिन होता है किन्तु इस दिन की शुरुआत प्रथम गुरु महर्षि व्यास को सम्मानित करने से हुई थी। उनकी पवित्र स्मृति में यह दिन मनाया जाता है। महर्षि व्यास चारों ग्रंथो और वेदों के प्रणेता थे। उन्होंने चारों वेदों को संकलित किया था। उन्होंने 18 पुराण, महाभारत और श्रीमद् भगवत का भी संपादन किया था। इसलिए गुरु पूर्णिमा को "व्यास पूर्णिमा" भी कहा जाता है। यह त्योहार उन भक्तों द्वारा मनाया जाता है जो अपने प्यारे गुरुओं को सम्मानित करना चाहते हैं। ऋषि व्यास हिंदू धर्म के आदि (मूल) गुरु होने के लिए जाने जाते हैं। व्यास पूर्णिमा के शुभ दिन बड़ा महत्व होता है, क्योंकि सभी जानते हैं कि वास्तविक जीवन में गुरु की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और गुरु पूर्णिमा वही दिन है जब शिष्य अपने गुरुओं को गुरु दक्षिणा देते हैं।

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा समारोह

हिंदूजन अपने गुरुओं का बहुत सम्मान करते हैं । गुरु को हमेशा भगवान के रूप में माना जाता है। श्वेताश्वर उपनिषद बताता है कि..

"यसा देव परा भक्तिर वथा देव तथा गुरु

त्स्यते कथिता ही अर्थ: प्रकाशन्ते महात्मना: "

इसका मतलब है कि जिस तरह हम भगवान की पूजा करते हैं वैसे ही हमें गुरु की भी पूजा करनी चाहिए। ईश्वर को यदि प्राप्त करना है तो गुरु का सहारा लेना ही पड़ेगा। बिना गुरु की भक्ति के ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती।

अषाढ़ मास की पूर्णिमा ही क्यों है गुरु पूर्णिमा

यूं तो साल में 12 पूर्णिमा होती है। जिनमें शरद पूर्णिमा और गुरु पूर्णिमा का अधिक महत्व होता है। आषाढ़ माह में तो देवता भी सो जाते है लेकिन फिर भी यह पूर्णिमा अत्यंत महत्वपूर्ण है। आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा चुनने के पीछे गहरा अर्थ यह है कि गुरु पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं गुरु पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह अंधकारमय होता है। जिस तरह आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है वैसे ही बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे रहते हैं। शिष्य सब तरह के होते हैं। जन्मों के अंधकार को लेकर गुरु के चारों तरफ बादलों की तरह छाए रहते हैं वहीं गुरु उनके बीच चांद की तरह चमकते रहते हैं। इसलिए आषाढ़ में पूर्णिमा महत्वपूर्ण हो जाती है। ताकि चांद की तरह ही गुरु भी अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सकें। वहीं आषाढ़ में गुरु पूर्णिमा होने का दूसरा अर्थ यह भी है कि चन्द्रमा जब सूर्य के सामने 180 डिग्री पर आता है तो पूर्णिमा होती है। सूर्य के प्रकाश की गर्मी चन्द्रमा पर से परवर्तित होती है, तो उसमें शीतलता होती है और आषाढ़ मास वर्षा ऋतु का भी मास है लेकिन सूर्य की तपिश के साथ-साथ इसी मास में सूर्य आद्ररा नामक नक्षत्र में प्रवेश करता है और यह आद्ररा प्रवेश की कुण्डली ही वर्षा के ज्योतिषीय आयामों पर प्रकाश डालती है कि इस वर्ष वर्षा ऋतु कैसी रहेगी कहां-कहां वर्षा का प्रभाव रहेगा। इसलिए इस पूर्णिमा का महत्व और बढ़ जाता है।

गुरु व्यास

गुरु पुर्णिमा पर्व का महत्व

जीवन में गुरु और शिक्षक के महत्व को आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व एक आदर्श है। व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा अंधविश्वास के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव से मनाई जाती है। गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए इस दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। सिख धर्म में इस पर्व का महत्व और अधिक होता है सिख इतिहास में उनके दस गुरुओं का बहुत महत्व रहा है। यह भी कहा जाता है कि..

गुरूर ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुररूदेवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अर्थात गुरु निर्माता ब्रह्मा है, गुरु जगत को चलाना वाला विष्णु हैं, गुरु ही विनाशकारी शिव है और वह निरपेक्ष का स्रोत है। गुरु ही ईश्वर है इसलिए हम गुरुओं को प्रणाम करते हैं।

कैसे मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा के दिन भक्त उपवास रखतें है। वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं, अतः वे हमारे आदिगुरु हुए हैं। इसीलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। उनकी स्मृति हमारे मन मंदिर में हमेशा ताजा बनाए रखने के लिए इस दिन अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए तथा अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरु का आशीर्वाद जरूर ग्रहण करना चाहिए। साथ ही केवल अपने गुरु-शिक्षक का ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का भी विधान इस दिन होता है। हम जिसे भी अपना गुरु मानते हैं उन्हें सम्मानित करना चाहिए। इस दिन, आध्यात्मिक संगठनों द्वारा भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन को और भी विशेष बनाने के लिए दिव्य प्रवचन और भजन समरोह भी आयोजित किए जाते हैं। गुरु पूर्णिमा का दिन आध्यात्मिक साधकों और किसानों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। सभी आध्यात्मिक भक्त अपने दैवीय व्यक्तित्व के सम्मान में व्यास की पूजा करते हैं और सभी शिष्य अपने संबंधित आध्यात्मिक अध्यापक या 'गुरुदेव' की पूजा करते हैं। वे अपने आध्यात्मिक गुरुओं को फूल और मिठाई देते हैं। यह दिन गुरु से आध्यात्मिक ज्ञान लेने के लिए सबसे शुभ होता है। यह दिन किसानों के लिए भी इसलिए शुभ होता है क्योंकि इस अवधि से 'चतुर्मास' ("चार महीने") अवधि शुरू होती है। गर्म के बाद वर्षा ऋतु से फसलों में नहीं बहार आती है। ठंडक का अहसास होता है। भारत में, गुरु पूर्णिमा विभिन्न आश्रमों में भी मनाई जाती है, खासतौर पर ऋषिकेश के शिवानंद आश्रम में बहुत भव्यता के साथ मनाई जाती है। देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त यहां गुरु पूर्णिमा मनाने आते हैं। शिरडी में साईं बाबा के आश्रम में भी गुरु पूर्णिमा धूमधाम से मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा के त्योहार के दिन लाखों श्रद्धालु ब्रज में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस‍ दिन बंगाली साधु सिर मुंडाकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, ब्रज में इसे मुड़िया पूनों नाम से जाना जाता है। जगह-जगह भक्त अपने गुरुओं का सत्संग-भजन कर उन्हें यह दिन समर्पित करते हैं।

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Comments  

#1 Rajkumar 2018-07-25 14:50
Nice content.
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