हरतालिका तीज व्रत का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना के लिए व्रत रखती हैं। हिन्‍दू धर्म में विशेषकर सुहागिन महिलाओं के लिए इस पर्व का महात्‍म्‍य बहुत ज्‍यादा है। हरतालिका तीज के दिन भी गौरी-शंकर की पूजा की जाती है। हरतालिका तीज का व्रत बेहद कठिन है। इस दिन महिलाएं 24 घंटे से भी अधिक समय तक निर्जला व्रत करती हैं। यही नहीं रात के समय महिलाएं जागरण करती हैं और अगले दिन सुबह विधिवत्त पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत खोलती हैं। मान्‍यता है कि हरतालिका तीज का व्रत करने से सुहागिन महिला के पति की उम्र लंबी होती है जबकि कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है। यह त्‍योहार मुख्‍य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में मनाया जाता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को "गौरी हब्‍बा" के नाम से जाना जाता है। 
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व्रत विधि

-हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल यानी कि दिन-रात के मिलने का समय इस समय पूजा करना शुभ माना जाता है।
-सबसे पहले सुबह जल्दी उठें
-व्रत में कुछ नहीं पीना होता है, इसलिये कुछ ना पीएं
-घर से कूड़ा कर्कट बाहर निकाल कर उसे सजाएं
-लकड़ी की चौकी पर गंगाजल और मिट्टी से प्रतिमाएं बनाएं
-गणेश, रिद्धि-सिद्धि, शिवलिंग और पार्वती की मूर्ति बनाएं
-संध्‍या के समय फिर से स्‍नान कर साफ और सुंदर वस्‍त्र धारण करें। इस दिन सुहागिन महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं।
- इसके बाद गीली मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाएं।
- दूध, दही, चीनी, शहद और घी से पंचामृत बनाएं।
- सुहाग की सामग्री को अच्‍छी तरह सजाकर मां पार्वती को अर्पित करें।
- शिवजी को वस्‍त्र अर्पित करें।
- अब हरतालिका व्रत की कथा सुनें।
- इसके बाद सबसे पहले गणेश जी और फिर शिवजी व माता पार्वती की आरती उतारें।
- अब भगवान की परिक्रमा करें।
- रात को जागरण करें। सुबह स्‍नान करने के बाद माता पार्वती का पूजन करें और उन्‍हें सिंदूर चढ़ाएं।
- फिर ककड़ी और हल्‍वे का भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद ककड़ी खाकर व्रत का पारण करें।
- सभी पूजन सामग्री को एकत्र कर किसी सुहागिन महिला को दान दें।

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हरतालिका व्रत कथा

ये कथा शिवजी से पार्वती मां को सुनाई थी। शिव भगवान ने इस कथा में पार्वती मां के पिछले जन्म के बारे में बताया था
“हे गौरी! पिछले जन्म में तुमने छोटे होते ही  बहुत पूजा और तप किया था | तुमने ना तो कुछ खाया और ना ही पीय बस हवा और सूखे पत्ते चबाए। जला देने वाली गर्मी हो या कंपा देने वाली ठंड तुम नहीं हटीं। बारिश में भी तुमने जल नहीं पिया। तुम्हे इस हालत में देखकर तुम्हारे पिता दु:खी थे। उनको दु:खी देख कर नारदमुनि आए और कहा कि मैं  “मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ| आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं| इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ”
’नारदजी की बात सुनकर  आपके पिता वोले अगर भगवान विष्णु ये चाहते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं ।
परंतु जब तुम्हे इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम दुःखी हो गईं।  तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तो तुमने कहा कि ‘मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है,किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है| मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ| अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा’ तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी| उसने कहा-‘प्राण छोड़ने का यहाँ कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिये| भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करे| मैं तुम्हे घनघोर वन में ले चलती हूँ जो साधना थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हे खोज भी नहीं पायेंगे| मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे’
तुमने ऐसा ही किया| तुम्हारे पिता तुम्हे घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए| इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं|तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया| तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुँचा और तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ| यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये| ‘तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया| उसी समय गिरिराज अपने बंधु-बांधवों के साथ तुम्हे खोजते हुए वहाँ पहुंचे| तुमने सारा वृतांत बताया और कहा कि मैं घर तभी जाउंगी अगर आप महादेव से मेरा विवाह करेंगे। तुम्हारे पिता मान गए औऱ उन्होने हमारा विवाह करवाया। इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूँ"|.


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