हजरत अली एक मुस्लिम धार्मिक समुदाय के प्रमुख और सम्मानिय व्यक्ति थे। हजरत अली को मुसलमानों के चौथे खलीफा के रूप में जाना जाता है। हजरत अली का असली नाम है अली इंबे अबी तालिब है। हजरत अली का जन्म 20 सितंबर 1238 में काबा, मक्का, सऊदी अरब में अबू तालिब के यहां हुआ था। हज़रत अली के पिता का नाम अबू तालिब था और माता का नाम बिन्त असद था। हज़रतअसद इमाम अली को उनके ससुर और इस्लाम के प्रमुख पैगंबर मोहम्मद ने आशीर्वाद दिया था। जिसकी वजह से हजरत अली मक्का में पैदा होने वाले पहले व्यक्ति थे। हजरत अली मुसलमानों के खलीफा के रुप मे जाने जाते है। हजरत अली के जन्मदिवस पर सभी मुसलमान एक-दूसरे को हजरत अली के जन्मदिन की बधाई देते हैं और उनके द्वारा कहे गए वचनों को याद करते हैं। हजरत अली लोगों को शांति और अमन का पैगाम दिया करते थे। वह आवाम तक अपने शब्दों उपदेश देते थे कि इस्लाम कत्ल और भेदभाव करने के पक्ष में नहीं, अपने शत्रु से प्रेम करो इससे वो एक दिन मित्र बन जाएगा। उनका कहना है कि अत्याचार करने वाला ही नहीं उसमें सहायता करने वाला और अत्याचार से खुश होने वाला सभी अत्याचारी ही हैं। हजरल अली के जन्मदिवस पर भारत में बड़ी धूम रहती है। खासकर उत्तर प्रदेश में हजरत अली का का जन्मदिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां सार्वजनिक अवकाश भी इस दिन घोषित किया जाता है। हज़रत अली को पहला व्यक्ति माना जाता है जिसने इस्लाम को अपनाया था। मुस्लिम समुदाय उम्माह के लोगों की दो शाखाएं हैं सुन्नी और शिया। हज़रत अली को सुन्नी समुदाय द्वारा चौथा और अंतिम रशिडून का व्यक्ति माना जाता है और वहीँ दूसरी तरफ उन्हें शिया मुस्लिम समुदाय का प्रथम इमाम माना जाता है।

हजरत अली का व्यक्तित्व

 हजरल अली को उनके ज्ञान, साहस, विश्वास, ईमानदारी, मुहम्मद के प्रति गहरी वफादारी, इस्लाम के प्रति समर्पण     और सभी मुसलमानों के बराबर समझने के लिए याद व सम्मानित किया जाता है। वह अपनी उदारता के लिए भी जाने  जाते हैं क्योंकि वह अपने दुश्मनों को क्षमा करने में विश्वास करते थे। हज़रत अली बहुत ही उदार भाव रखने  वाले व्यक्ति थे। अपने कार्यों, साहस, विश्वास और दृढ संकल्प होने के कारण मुस्लिम संस्कृति में हजरत अली को बहुत ही सम्मान के साथ जाना जाता है। मना जाता है इस्लाम के प्रति उनमें बहुत ही ज्यादा प्रेम था और इस्लाम के विषय में  उनको बहुत ज्ञान भी था। हजरल अली 40 वें हिजरा पर रमजान के दिन जन्नत में चले गए। तब से हर वर्ष उन्हें याद किया जाता है।

हजरत अली जन्मोत्सव

 हजरत अली जन्मदिवस समारोह

 हजरत अली का जन्म उत्सव इस्लाम धर्म के लोग बहुत ही धूम-धाम से मनाते हैं। भारत में खासकर उत्तर प्रदेश में इस दिन को बहुत ही बड़े त्योहार के तौर पर मनाया जाता है। भारत के साथ-साथ विश्व के कई मुस्लिम देशों में इस दिन को बहुत ही इस्लामी परंपरागत तरीके मनाया जाता है। हजरत अली को मुस्लिम समुदाय के अग्रणियों में से एक माना जाता है। जिन्होंने पूरी दुनिया में एक अद्वितीय संदेश फैलाने के जरिए मुस्लिम संस्कृति और परंपराओं को पुनर्जीवित किया। उन्हें भाग्य का मसीहा माना जाता है। हर मुस्लिम परिवार उनके जन्मदिन पर घरों को साफ सुथरा रख कर चमकीली रोशनी व फूलों से सजाते हैं। सभी मस्जिदों को भी सुन्दर तरीके से लाइट लगा कर रोशन कर दिया जाता है और प्रार्थना सभाओं के साथ पवित्र उच्चारण किये जाते हैं। मस्लिम लोग उनका आशीर्वाद मांगने के मस्जिद जाते हैं, प्रार्थनाएं करते हैं। दुनिया भर में मुसलमान हजरत अली को पवित्र पैगंबर के रूप में मानते हैं कि वह ज्ञान की संपत्ति है। इतना ही नहीं, उन्होंने इस्लामी मूल्यों को फैलाने के लिए कड़ी मेहनत की जो उन्होंने पैगंबर का संदेश सभी लोगों में पहुंचाया। हजरत अली अपने पूरे जीवन में एक महान दार्शनिक साबित हुए। जहां तक उनके परिवार का सवाल है, उनके भाई के बारे में पर्याप्त सबूत नहीं है। लोगों का मानना है कि वह अविवाहित ही थे। हजरत अली का जन्मदिवस प्रतिवर्ष हज़रत अली और महान मुस्लिम व्यक्तियों और उनके कार्यों को याद करने के लिए उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी मुस्लिम समुदाय के लोग एक साथ एकत्रित होते हैं और हज़रत अली के जन्म दिवस को मनाते हैं ताकि प्रेम और भाईचारा का रिश्ता बढे। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग घरों में लज़ीज़ पारंपरिक खाना बनाते हैं और अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ खुशियाँ मनाते हैं। साथ ही कुछ लोग अपने दूर के लोगों के मिलने जाते हैं और अपना प्यार जताते हैं और कुछ लोग दूर से इस दिन अपने परिवार वालों से मिलने लौट कर आते हैं। अपने पैगम्बर को याद करते हुए परिवार के लिए दुआ मंगाते हैं और उत्साह के साथ इस दिन का लुफ्त उठाते हैं।

हजरत अली की शिक्षाएं

हजरत अली के कई शिष्य थे। सूफी संप्रदाय के अपने 70 वर्षों के सक्रिय प्रतिनिधित्व के दौरान, वह कई शाखाओं के विकास के लिए जिम्मेदार बन गए। जिसके कारण उन्होंने पूरे भारत में इस्लामी मान्यताओं, परंपराओं और मूल्यों को फैलाया। यही कारण है कि लोग उन्हें महान सम्मान के साथ याद करते हैं और पौराणिक सूफी संत को श्रद्धांजलि देते हैं। पूरे भारत में मुस्लिम समुदाय को दर्शाते हुए वह प्रभावी तरीके से चिश्ती निजामी आदेश के माध्यम से ज्ञान के प्रसार के साथ बेहद लोकप्रिय हो गए। देश भर उन्होंने अपने ज्ञान और शिक्षाओं को फैलाया जो बहुत महत्वपूर्ण है हजरत अली ने हमेशा अंहिसा की बात की। उन्होंने कहा कि सत्य बोलकर फतह हासिल करने से अच्छा हैं। सच बोलकर हार स्वीकार कर लों | अगर मित्र बनाना आपकी कमजोरी या आदत हैं तो आप इस संसार के सबसे ताकतवर इंसान हो| जिन्दगी में हमेशा जाहिलों के शत्रु और कमजोरो के मित्र बनकर जियो। उन्होंने कहा कि विश्वास के साथ सोना और किसी संदेह की स्थति में नमाज अदा करना सामान हैं| अगर किसी व्यक्ति के स्वभाव की ताह लेनी हैं तो उसके साथ उठने बैठने वालो से उसके बारे में पता करो| किसी की लाचारी पर हसो मत क्योंकि यह दिन कभी आपका भी आ सकता हैं | अगर कोई व्यक्ति खाने के लिए रोटी चुराए ,और शासक उनके सजा के तौर पर हाथ काटता हैं तो यह सजा उस चोर की बजाय उस शासक को दी जानी चाहिए इत्यादि कई शिक्षाओं के जरिए उन्होंने समाज को जागरुक किया। तभी आज पूरा देश उनके जन्मदविस को हर्सोल्लास के साथ मनाता है और उन्हें याद करता है।

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