होली दुनिया का सबसे रंगीन त्योहार है। यह भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक हैं।होली का त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार वसंत और विभिन्न संबद्ध पौराणिक कहानियों का स्मरण कराता है। माना जाता है कि यह त्योहार भगवान कृष्ण के लिए राधा के प्रेम को मनाने का उत्सव है। वही एक अन्य किवंदती के अनुसार यह भगवान शिव के द्वारा कामदेव को नष्ट करने के बाद उन्हें पुनर्जिवित करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। कामदेव को केवल एक छवि के रूप में जीवन में लाया गया था, इसलिए यह त्योहार को समारोह के रुप में मनाता जाता है। चूंकि होली वसंत के मौसम के विभिन्न पड़ावों को दर्शाता है, इसलिए इसे रंगों के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है। होली साल के उस समय मनाई जाती है जब ना ज्यादा सर्दी होती है ना ही गर्मी, बरसात का मौसम भी नहीं होता। यह मौसम बंसत ऋतु का होता है। यह साल के सबसे सुंदर मौसम में से एक होता है।
होली को सर्दियों की समाप्ति और ग्रमियों के आगमन के रुप में भी मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे पर गुलाल यानि रंगीन पाउडर और रंगीन पानी डालते हैं। एक-दूसरे को रंग लगाकर गले मिलते हैं। घरों में मीठे पकवान बनाए जाते हैं। लोग रंगों से खेलकर इस दिन का जश्न मनाते हैं। होली को सभी अपने-अपने ढंग से बनात हैं। कोई सूखी होली खेलता है जिसमैं सूखे रंगों का प्रयोग करते हैं तो कोई पानी वाली होली खेलता है। कोई पिचकारियों में पानी भर एक-दूसरे पर डालता है तो कोई गुब्बारों में पानी भर कर मारता है। होली के दौरान पहले इस्तेमाल किए जाने वाले रंगों को पेड़ों के फूलों से तैयार किया जाता था। उनसे प्राप्त अधिकांश रंग त्वचा के लिए अत्यधिक लाभदायक होते थे उनसे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता था। लेकिन अब आए दिन, त्योहार के तेजी से व्यावसायीकरण के साथ, निर्माताओं ने कृत्रिम रंगों का उत्पादन शुरू कर दिया है, जो प्राकृतिक रंगों की तुलना में सस्ते होते हैं लेकिन इनमें बड़ी संख्या में रसायन होता है जो किसी के भी स्वास्थ्य और त्वचा पर गंभीर दुष्प्रभाव डाल सकते हैं। हम सस्ते के चक्कर में इन रंगों का प्रयोग कर लेते हैं। यह रसायन युक्त रंग प्राकृतिक रंगों की तुलना में अधिक गाढ़े होते हैं जो एक बार त्वचा पर लगने के बाद बहुत ही मुश्किल से छुटते हैं। इन रंगो से बचाव करना चाहिए। रंगों में प्रयुक्त रसायनों के बारे में निम्नलिखित इस जानकारी कथन का समर्थन करती है:
ब्लैक लीड ऑक्साइड – गुर्दा खराब होना
ग्रीन कॉपर सल्फेट - आंखों में एलर्जी और अस्थायी अंधापन
सिल्वर एल्युमिनियम ब्रोमाइड - कैंसर (कार्सिनोजेनिक)
रेड मर्करी सल्फेट - त्वचा कैंसर का कारण बन सकता है।
ईको-फ्रेंडली रंगों का चयन करके व्यक्ति उपरोक्त स्वास्थ्य संबंधी खतरों से आसानी से बच सकता है। ये बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, साथ ही इन्हें आसानी से घर पर भी बनाया जा सकता है। कई रंग तो एलर्जी पैदा करते हैं। होली का मजा और आता है जब आप सूखे रंगों से होली खेलें, इससे कई लीटर पानी बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा इस बार होली में आप अपने घर में प्राकृतिक वस्तुओं का इस्तेमाल करके इको फ्रेंडली रंग तैयार करके होली खेल सकते हैं। इससे स्वास्थ्य को भी कोई खतरा नहीं रहेगा और आपकी होली सुरक्षित होगी।
घर पर इको-फ्रेंडली होली के रंग बनाने की विधि
हरा रंग:
एक लीटर पानी में दो चम्मच मेहंदी को मिलाकर हरा रंग प्राप्त किया जा सकता है। मेंहदी में बराबर मात्रा में आटा मिलाकर हरा रंग बना सकते हैं। सूखी मेंहदी त्वचा पर लगने पर कोई नुकसान भी नहीं होता है। मेंहदी में पानी मिलाकर गीला रंग भी तैयार किया जा सकता है।
काला रंग
आंवले को लोहे के बर्तन में रातभर के लिए भिगो दो। सुबह आंवलों को पानी से निकाल कर अलग कर दो। आंवले के पानी में थोड़ा और पानी मिलाकर प्राकृतिक रंग तैयार किया जा सकता है।
नीला रंग:
कुछ सूखे जैकरंडा फूल लें और फिर उन्हें नीले रंग का पाउडर पाने के लिए पीस लें। इसे एक एयरटाइट बोतल में स्टोर करें। नीले रंग को प्राप्त करने के लिए हिबिस्कस के फूलों को भी सुखाया जा सकता है। नीले गुलमोहर की पत्तियों को सुखाकर बारीक पीसने पर नीला गुलाल भी बनाया जा सकता है, इसके अलावा इसका पेस्ट बनाकर नीला रंग बनाया जा सकता है।
गुलाबी रंग
चुकंदर के टुकड़े काटकर पानी में भिगोकर गहरा गुलाबी रंग बनाया जा सकता है। प्याज के छिलकों को पानी में उबालकर भी गुलाबी रंग बनाया जा सकता है।
लाल रंग:
कुछ सूखे लाल गुलाब की पंखुड़ियों को लें और उन्हें पीसकर लाल पाउडर प्राप्त करें। यह रंग लाल चंदन पाउडर या अनार के छिलकों को पानी में उबालकर भी प्राप्त किया जा सकता है। इसमें पानी मिलाकर लाल गीला रंग बनाया जा सकता है। टमाटर और गाजर के रस को पानी में मिलाकर भी होली खेली जा सकती है।
केसरिया रंग:
केसरिया रंग का घोल पाने के लिए गुलाब जल में थोड़ी हल्दी या चंदन पाउडर मिलाएं। इससे केसरिया रंग बना जाएगा।
भूरा रंग
आमतौर पर कत्था पान खाने में प्रयोग किया जाता है। लेकिन कत्थे में पानी मिलाकर गीला भूरा रंग तैयार किया जा सकता है। इसके अलावा चायपत्ती का पानी भी भूरा रंग देता है।
पीला रंग:
एक जीवंत पीला पाउडर प्राप्त करने के लिए चार चम्मच बेसन के साथ दो चम्मच हल्दी पाउडर मिलाएं। अमलतास, या टेसू के फूल की पंखुड़ियों को पानी में उबालकर प्राकृतिक पीला रंग बनाया जा सकता है। अनार के छिलकों को रातभर पानी में भिगोकर भी पीला रंग तैयार किया जा सकता है। गेंदे के फूल की पत्तियों को मिलाकर पीला रंग बनाया जा सकता है। प्राकृतिक रंग बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सभी सामग्री प्रकृति में औषधीय हैं और इसका त्वचा या स्वास्थ्य पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं है।
अगर आप घर में रंग नहीं बना सकते हैं तो कोई बात नहीं बाजार में प्राकृतिक रंग आसानी से मिल जाते हैं। लेकिन केमिकलयुक्त रंगों का प्रयोग न करें जो आसानी से शरीर से छूटते नहीं हैं और त्वैचा को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। होली का असली मजा तभी है जब बनावटी और नुकसानदायक रंगों का प्रयोग न करके सूखे, प्राकृतिक और इको फेंडली रंगों से होली खेला जाए।
होली के लिए जागरूकता अभियान
इको-फ्रेंडली होली मनाने के फायदों को बताने के लिए आस-पड़ोस के लोगों में एक अभियान चलाया जा सकता है। भारत में कई शहरों में विषय के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए इस पद्धति को अपनाया जाता है।
होली पर आग जलाने के तरीके
अलाव जलाने की रस्म में गंभीर पर्यावरणीय सुधार होते हैं, क्योंकि इस प्रक्रिया में बहुत सारी लकड़ी की जरूरत होती है जो पेड़ों और पर्यावरण दोनों को खतरे में डालती है। इसे रोकने के लिए, एक समुदाय में जश्न मना सकते हैं और एक एकल अलाव जला सकते हैं। असग-अलग जगह अलाव जलाने से अच्छा एक ही जगह होलिका दहन किया जा सकत है। इससे लकड़ी की खपत कम होगी और प्रदूषण भी कम होगा।
होली पर जल का संरक्षण करें
भारत के कई शहर पानी की कमी से पीड़ित हैं। होली के दौरान पानी को बंदूकों के साथ खेलने या पानी के गुब्बारे फेंकने के दौरान पानी का उपयोग बर्बादी के रुप में किया जाता है। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें पानी की बर्बादी को रोकना चाहिए और कम पानी का प्रयोग कर सूखी होली खेलनी चाहिए। इस प्राकृतिक संसाधन को बचाने का प्रयास करना चाहिए। इस संकट से बचने के लिए कोई भी अपना काम कर सकता है और सूखी होली का विकल्प चुन सकता है। इसके अलावा, कोई भी हमेशा पर्यावरण को प्रदूषित करने के बजाय इस त्योहार को कई अन्य तरीकों से मना सकता है। होली चूंकि खुशियों का त्योहार है इसलिए बिना किसी को नुकसान पहुंचाए इस दिन का आनंद लिया जा सकता है।
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