होली एक महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है। इसे रंगो का त्यौहार भी कहते है। यह त्यौहार पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। जिसके पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगों से खेल कर होली मनाई जाती है। होली वसंत ऋतु मे मनाई जाती है। यह त्यौहार हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। फाल्गुन माह मे मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते है। यह त्यौहार वसंत पंचमी से ही शुरू हो जाता है। वसंत की ऋतु मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, इसलिए इसे वसंतोत्सव और काम महोत्सव भी कहते है। यूं तो होली भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न रुपों में मनाई जाती है लेकिन उत्तरी भारत के राज्य पंजाब में होली माने की अपनी कथा है वैसे तो होली मुख्यतः भक्त प्रहलाद और होलिका की कहानी के स्वरुप मनाई जाती है किन्तु पंजाब की होली गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ी हुई है।
पंजाब में होली का उत्सव अपने साथ रंगों, गीतों, नृत्य और मनमोहक वातावरण के साथ सभी का स्वागत करता है। होली गर्म मौसम और उज्ज्वल धूप के साथ वसंत के आगमन की घोषणा करती है और सभी को मनाने का आग्रह करती है। मार्च के महीने में या फरवरी के अंत में होली आती है और चूंकि सर्दियों की शुरुआत हो रही है, इसलिए गर्म कपड़ों को बहाने और पानी और रंगों से खेलने का एक सही समय होता है। पंजाब में होली एक विशिष्ठ अंदाज और अलग कलेवर से मनाई जाती है। पंजाब में होली को होला मोहल्ला के रुप में मनाया जाता है। इस दिन गुरूजी की लाडली फौज मनाती है होला मोहल्ला का विशिष्ठ पर्व जिसे देखने दुनिया भर के दर्शक आते हैं। इस दिन न केवल निहंग पूरे लाव-लश्कर के साथ अपने पारंपरिक शस्त्रों की नुमाइश करते हैं बल्कि एक से बढ़कर एक ऐसे करतब दिखाते हैं जो योद्धाओं की बहादुरी और अमिट त्याग को भी दर्शाती है। पंजाब में अन्य देश की अपेक्षा होली एक दिन पहले ही खेल ली जाती है और अगले दिन जहां सारा देश रंगों की मस्ती में सराबोर रहता है वहीं पंजाब पर निहंगों के जंगी ऐलान यानि होला मोहल्ला के जश्न का सुरूर छाया रहता है ।
पंजाब में होला मोहल्ला
पंजाब में होला मोहल्ला में होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनायी जताई है, इसलिए इसे जाबांजों की होली भी कहा जाता है। होला मोहल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से 'महा प्रसाद' पका कर वितरित किया जाता है। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। होला मोहल्ला मनाने की परंपरा गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) के समय हुई थी, जिन्होंने चेत वाडी पर आनंदपुर में पहला जुलूस आयोजित किया था। 1700 में निनोहग्रा की लड़ाई के बाद शाही शक्ति के खिलाफ एक गंभीर संघर्ष को रोकने के लिए यह किया गया था। गुरु साहिब ने अपने सिखों को सत्य की रक्षा करने और रक्षा करने के लिए अकाल पुरख की फैज (सर्वशक्तिमान की सेना) के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी और कर्तव्य के लिए जागृत किया था। वर्ष 1757 में गुरु जी ने सिंहों की दो पार्टियां बनाकर एक पार्टी के सदस्यों को सफेद वस्त्र पहना दिए तथा दूसरे को केसरी। फिर गुरु जी ने होलगढ़ पर एक गुट को काबिज करके दूसरे गुट को उन पर हमला करके यह जगह पहली पार्टी के कब्जे में से मुक्त करवाने के लिए कहा। इस समय तीर या बंदूक आदि हथियार बरतने की मनाही की गई क्योंकि दोनों तरफ गुरु जी की फौजें ही थीं। आखिर केसरी वस्त्रों वाली सेना होलगढ़ पर कब्जा करने में सफल हो गई। गुरु जी सिखों का यह बनावटी हमला देखकर बहुत खुश हुए तथा बड़े स्तर पर हलवे का प्रसाद बनाकर सभी को खिलाया गया तथा खुशियां मनाई गईं। उस दिन के बाद आज तक श्री आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला दुनिया भर में अपनी अलग पहचान रखता है।
पंजाब में होली उत्सव
पंजाब त्योहार को बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाता है और लोग गाते, नाचते और रंगों के साथ खेलते हैं। खेत फसल के लिए तैयार होंती है और हर जगह फूल खिल रहे होते हैं। परंपरागत रूप से होला मोहल्ला वैसे तो होली पंजाब में मनाया जाता है, लेकिन रंग और पानी के साथ खेलने की विशिष्ट परंपरा, उत्सव का एक अभिन्न हिस्सा है। होली देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न किंवदंतियों के अनुसार मनाया जाता है, लेकिन पंजाब में यह दोस्तों और परिवार के साथ मिलन का अवसर है। यह क्षमा करने और भूलने और एक को गले लगाने का अवसर है।
पंजाब में होली के दिन से दिन की शुरुआत होती है, लोग खेलने के लिए तैयार होते हैं और रंग और मिठाइयों का आनंद लेते हैं और त्योहार का आनंद लेने के लिए अपने दोस्तों का स्वागत करते हैं। युवा टोली या समूह में एकत्र होते हैं और मित्रों और परिवार के घरों में जाते हैं, सभी को होली की शुभकामनाएं देते हैं और एक और सभी पर रंग डालते हैं। रंग सम्मान के निशान के रूप में बुजुर्गों के पैरों पर रखा जाता है और बुजुर्ग युवाओं को आशीर्वाद देते हैं और युवाओं के चेहरे और सिर पर रंग डालते हैं। युवा और वयस्क सभी एक दूसरे पर रंग और पानी डालते हैं। बच्चे पिचकारियों का उपयोग करते हैं, पानी से भरे गुब्बारे फेंके जाते हैं और एक-दूसरे को स्प्रे करके भी होली खेली जाती है। नाचना, गाना, चिल्लाना इस उत्सव का हिस्सा होता है।
पूरे पंजाब में होली का जश्न
पंजाब के बड़े शहरों जैसे लुधियाना, चंडीगढ़, पटियाला आदि में त्योहार बड़े दलों के साथ मिलकर मनाया जाता है। दोस्त और परिवार एक-दूसरे से मिलते हैं और पड़ोसी सभी को हैप्पी होली की शुभकामना देते हैं। लज़ीज व्यंजनो की भरमार होती है। विशेस रुप से इस दिन भांग पिया जाता है। छोटे शहर और गांव भी रंगों से होली खेलते हैं और यहां तक कि एक दिन पहले होलिका अलाव ’जलाते हैं। होली का दिन अपने साथ रंगों और मिठाइयों का दंगल लेकर आता है। युवा और बूढ़े, पुरुषों और महिलाओं और बच्चों के साथ रंगों में सराबोर होकर सभी एक दूसरे को रंग देते हैं और अपने प्यार और खुशी को व्यक्त करते हैं।
पंजाब में पारंपरिक होली मिठाई
मालपुआ, गुझिया और लड्डू जैसी पारंपरिक मिठाइयों के साथ होली का स्वागत किया जाता है। रंग और ऊर्जावान ढोलों की थाप पर सभी नाचते-गाते हैं और इस दिन का जश्न मनाते हैं।
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