पाकिस्तान में होली का जश्न

होली दुनिया का एकमात्र ऐसा त्योहार है, जो सामुदायिक बहुलता की समरस्ता से जुड़ा हुआ है। होली का पर्व प्यार और एकता का प्रतिक है। इस पर्व में मेल-मिलाप का जो आत्मीय भाव दिखाई पड़ता है वो अन्य किसी त्योहार में नहीं देखा जा सकता। होली एक ऐसा त्योहार है जिसमें सभी गिले-शिकवे, भुलाकर दुश्मनों को भी दोस्त बनाकर गले लगा लिया जाता है। होली के रंग सभी भेदभावों को मिटा देता है और प्यार का संदेश प्रसारित करता है। होली का त्योहार ना केवल भारत में बल्कि पाकिस्तान में भी बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। होली के इस पर्व में पकवानों के साथ-साथ हर तरफ रंगों की बौछार होती है। माना जाता है कि होली की शुरुआत भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान से हुई। इसके पीछे बेहद ही खास वजह बताई जाती है और वो है पाकिस्तान के मुल्तान शहर में मौजूद प्रल्हादपुरी मंदिर। माना जाता है कि हिरण्यकश्यप के बेटे प्रल्हाद ने भगवान नरसिंह (विष्णु के अवतार) के सम्मान में एक मंदिर बनवाया, जो फिलहाल पाकिस्तान के शहर मुल्तान में आता है। भगवान नरसिंह ने ही खंभे में अपने दर्शन देकर भक्त प्रल्हाद की जान बचाई थी। इसी मंदिर से होली की शुरुआत हुई। यहां दो दिनों तक होलिका दहन उत्सव और होली पूरे नौ दिनों तक मनाई जाती थी। पाकिस्तान में करीबन दो फीसद आबादी अल्पसंख्यकों की है। इनमें हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा सिंध प्रांत में बताई जाती है। पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं ने कई मर्तबे इसकी शिकायत रहती थी कि वहां होली तो मनाई जाती थी, लेकिन सरकारी छुट्टी ना होने से इसका मजा किरकिरा हो जाता था। लंबे समय तक इसके मांग के बाद साल 2016 से पाकिस्तान की सरकारी छुट्टी के कैलेंडर में होली को जगह मिल गई है। अब वहां पर भी होली के दिन सरकारी अवकाश दिया जाता है और ना केवल हिंदू समुदाय बल्कि मुस्लिम समुदाय भी होली के इस जश्न में शामिल होते हैं और इसका आनंद लेते हैं। 

पाकिस्तान में होली मनाने का इतिहास

पाकिस्तान में होली मनाने का इतिहास बहुत पुराना है माना जाता है कि होली की शुरुआत ही पाकिस्तान से हुई थी। पौराणिक कहानियो के अनुसार  मुल्तान के विश्वप्रसिद्ध किले के अंदर बना प्रल्हादपुरी मंदिर किसी जमाने में मुल्तान शहर की पहचान हुआ करता था। पाकिस्तान के निर्माण के पहले होली के समय यहां विशेष पूजा अर्चना आयोजित की जाती है। माना जाता है कि  नरसिंह भगवान ने एक खंबे से निकल कर प्रल्हाद के पिता हिरण्यकश्यप को मारा था। इसके पश्चात प्रल्हाद ने स्वंय ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह भी माना जाता है कि होली का त्यौहार और होलिका दहन की प्रथा भी यही से आरंभ हुई थी।

 
पाकिस्तान की होली

कैसे मनाते हैं पाकिस्तान में होली

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि पाकिस्तान में दो दिनों तक होलिका दहन उत्सव मनाया जाता था। पाकिस्तान में मौजूद इस पंजाब प्रांत में होली, होलिका दहन से 1 दिनों तक मनाई जाती है। रंगों भरी होली तो यहां मनती ही है, किंतु होली मनाने की परंपरा यहां कुछ अलग है। पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब में होली के दिन, मटकी फोड़ी जाती है। यहां मौजूद व्यक्ति पिरामिड बनाकर मटकी फोडते हैं। मटकी में मक्खन, मिश्री भरा हुआ होता है, मटकी फोड़ते ही यह सब कुछ बिखर जाता है। यहां इसे चौक-पूर्णा त्यौहार के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर भारत में मनाई जाने वाली जनमाष्टमी की तरह होली वाले दिन मटकी फोड़ी जाती है। मटकी को ऊंचाई पर लटकाया जाता है।  पाकिस्तान में होली धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों को गले लगाने और रंगों से एक-दूसरे को रंगने, बहुत सारी मस्ती, गाने और नृत्य के साथ बिखरने का समय होता है। होली का त्योहार हिंदू और प्रमुख मुसलमानों को करीब लाता है, क्योंकि होली को पाकिस्तान में हिंदुओं के अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा विभिन्न सामुदायिक केंद्रों और देश भर में निवासों में निजी समारोहों के रूप में मनाया जाता है। दोस्त-रिश्तेदार उत्सवों में शामिल होते हैं और छोटे अंतरंग समारोहों के लिए धार्मिक स्थानों या एक-दूसरे के घरों में जाते हैं।

होली उत्सव

पाकिस्तान की होली

होली वसंत और एक अच्छी फसल के लिए महत्वपूर्ण त्योहार है। यह रंगों और रंगीन पानी की बौछार के द्वारा चिह्नित किया जाता है, इसके बाद गायन, नृत्य और खाना खाना शामिल है। होली का मज़ा बहुत सारे स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ  आता है जिसे सब मिल-जुल कर खाते हैं। यह उत्सव दो दिनों तक जारी रहता है और पहली शाम को होलिका के दहन की याद के रूप में अलाव जलाया जाता हॉ। होलिका  राक्षस राजा हिरण्य कश्यप की बहन थी। जो भगवान विष्णु की पूजा करने वाले अपने भतीजे और हिरणकश्चप के बेटे प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गई थी ताकि प्रहलाद मर जाए लेकिन वरदान प्राप्त होने के बाद भी होलिका अग्नि में जल जाती है और प्रहलाद बच जाता है। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतिक इस त्योहार को मनाया जाता है।  कराची में स्वामी नारायण मंदिर और लाहौर में कृष्ण मंदिर और अग्रवाल आश्रम जैसे सामुदायिक केंद्रों या धार्मिक मंदिरों में एक रात पहले युवा इकट्ठा होते हैं और लकड़ी, पुआल आदि और दूध और दूध से बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक अलाव जलाते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं से संबंधित भजन और गीत गाते हैं। सभी मिठाई और भोजन वितरित करते हैं। अगली सुबह सभी रंग,पानी के गुब्बारे और पानी की पिस्तौल के साथ खेलने के लिए एकजुट हो जाते हैं।

पाकिस्तान में चूंकि हिंदू एक प्रमुख धर्म नहीं हैं, इसलिए लाहौर, पंजाब, बलूचिस्तान, मुल्तान और कराची जैसे अधिकांश बड़े शहरों में बड़े पैमाने पर समारोह आयोजित नहीं किए जाते हैं। विभिन्न आतंकवादी हमलों से उपजी परिस्थितियों के कारण स्थानीय हिंदू आबादी के बहुत बड़े समारोह से दूर रहते हैं और सभी की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं।  इनमें से अधिकांश स्थानीय समितियों और परिषदों द्वारा आयोजित की जाती हैं, जैसे पाकिस्तान हिंदू परिषके अधिकांश हिस्सों में होली अभी भी ष्ट्रीय अवकाश नहीं है, इसलिए बहुत से लोग अवकाश नहीं लेना पसंद करते हैं और इसे पूरी तरह से छोड़ देते हैं और काम करना पसंद करते हैं। इन परिषदों में से अधिकांश आयोजन सुरक्षा उपायों के लिए भी करते हैं। होली गर्मियों के आगमन का जश्न मनाने के लिए अपने घरों से युवा और बुजुर्गों को बाहर लाने के लिए एक आदर्श अवसर बनाता है और इंद्रधनुष के रंगों के रंग के साथ सर्दियों की सुस्ती को बहा ले जाता है।

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