बुरा ना मानो होली है... जोगीरा सा रा रा रा...
यह वो शब्द हैं जो होली के अवसर पर सबसे ज्यादा सुनाई देते है। होली भारतीय पंरपरा का सबसे रंगीन और खुशियों भरा त्योहार है। होली ही एक ऐसा त्योहार जिसमें दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। होलिका दहन के बाद फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला होली का त्योहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार साल का पहला त्योहार होता है। होली का मतलब ही रंगो से हैं यह वो त्योहार है जो हमें जीवन जीने का सही मतलब समझाता है। होली के रंगों की तरह ही हमारा जीवन भी होता है। जिस तरह से सफेद रंग के साथ मिलकर हर रगं बनता है वैसे ही व्यक्ति के कोरे जीवन में कई वाक्य मिलकर उसे संपूर्ण कर रंग-बिरंगा कर देते हैं। जीवन के सुख-दुखों को भी होली के रंगो की तरह ही रंगीन समझना चाहिए जो चाहे किसी भी रंग के हो लेकिन देते खुशी ही हैं। होली भारत का बहुत ही लोकप्रिय और हर्षोल्लास से परिपूर्ण एक त्यौहार है। होली के रंगो में लोग चन्दन और गुलाल का प्रयोग अधिक करते हैं। माना जाता है कि होली का प्रत्येक रंग जीवन में ऊर्जा, जीवंतता और आनंद का सूचक होता है। होली की पूर्व संध्या पर बड़ी मात्रा में होलिका दहन किया जाता है जिसमें लोग अग्नि की पूजा करते हैं। दुनिया भर के लोग, खासकर भारतीय, फाल्गुन के महीने में इस महान दिन का उत्सव मनाते हैं। होली का त्योहार अच्छी फसल के लिए भी शुभ मानकर मनाया जाता है।

होली का इतिहास
होली को आर्यों के सबसे प्राचीन त्यौहार में से एक माना जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था, अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। लेकिन इस पर्व का वर्णन कई ग्रथों में भी किया गया है। होली के बारे में हमारे पुराने संस्कृत ग्रंथों जैसे गरुड़ पुराण और दशकुमार चरित में में सम्मानित रूप से उल्लेखित किया गया है। हर्षदेव द्वारा लिखी गई रत्नावली में भी होली के त्योहार का शानदार वर्णन किया गया है। होली का उत्सव केवल हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते हैं। सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है। मुगल काल में भी होली खेलने की परंपरा विद्धमान रही है। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन भी इतिहास में मिलता है। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे। यही नहीं हिन्दी साहित्य में भी कृष्ण की लीलाओं में होली का मुख्यत: वर्णन किया गया है। मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। होली को पहले वंसतोत्सव के रुप में मनाया जाता था बाद में इसे मनु के जन्म का दिन मान मदनोत्सव कहा जाने लगा।
कैसे मनाते है होली का त्योहार
प्राचिन काल में होली को कृषि से जोड़कर देखा जाता था। अच्छी फसल के लिए स्त्रियां पूजा-पाठ करती थी। किन्तु आज स्थित बदल गई है। होली के पहले दिन होलिका जलाई जाती है जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन होली होती है जिसे धुलेंडी कहा जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को गुलाल, अबीर, रंग लगाकर बधाईयां देते हैं। होली के गीत गाए जाते हैं। ‘रंग बरसे चुनरवाली, होली खेले रघुबीरा, होली के दिन दिल खिल जाते हैं’ इत्यादि कई गीत बजाए जाते हैं। सुबह से ही घरों में स्वादिष्ट व्यंजन बनने शुरु हो जाते हैं। होली के दिन पूर्वी भारत में सूजी और मैदे से बनी गुजिया और मालपुआ काफी प्रसिद्ध है होली के दिन इसे अवश्य बनाया जाता है। साथ ही विभिन्न प्रकार के पकोड़े, सब्जी इत्यादि बनती है। मांस-मच्छी बनाने का भी इस दिन प्रावधान है। इसके बाद सुबह से ही लोग होली खेलने निकल जाते हैं। ढोल-नगाड़ों के साथ नाच-गाना किया जाता है। दोस्त-रिश्तेदार एक-दूसरे के घर आकर रंग लगाते हैं। बड़ें-बुजुर्गों से उनके पैर पर रंग रखकर आशीर्वाद लिया जाता है। घर में मुख्य रुप से ठंडाई बनाई जाती है। जो आने-जाने वाले लोग पीते हैं। इसके बाद सभी लोग मिलकर होली खेलते हैं और शाम को नहा कर नए कपड़े पहन कर सूखे गुलाल से एक दूसरे को रंग लगाया जाता है और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि इन होली के रंगो की तरह ही जीवन में खुशियां बनी रहे। होली के दिन चारों और फुहारें फुट पड़ती है। प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं।।
होली मनाने का कारण
होली मनाने के पीछे होलिका दहन की कहानी जुड़ी है। पुराणों के अनुसार स्वंय को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप बहुत ही क्रूर राजा था। उसे तपस्या करने के कारण वरदान प्राप्त था कि उसकी हत्या ना नर कर सकता है जानवर, ना धरती पर कोई मार सकता है ना आकाश में, ना अस्त्र का प्रयोग किया जा सकता है ना शस्त्र का। जिसके कारण वह हमेशा घंमड में रहता था किन्तु उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुंचा सकती। होलिका अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर बैठ गई किन्तु इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। भगवान ने उसे बचा लिया साथ ही नरसिंह का रुप धर कर भगवान ने हिरण्यकश्यप की भी हत्या की तभी से इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
शिव ने किया था कामदेव को भस्म
होली की एक कहानी कामदेव की भी है। देवी पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी तरफ गया ही नहीं। ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया। तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई। अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया। कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार होली मनाई जाती है।
भारत के विभिन्न शहरो की होलियां
भारत में होली का त्योहार सभी राज्यों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। होली को भगवान कृष्ण से जोड़कर देखा जाता है जिस कारण से मथुरा-वृंदावन की होली, बरसाने की लठमार होली, बृज की होली, बिहार की फाल्गुन मस्ती भरी होली, कुमाउं की गीत बैठकी होली, हरियाणा की देवर-भाभी को सताने की होली, जयपुर की होली समारोह, महाराष्ट्र की रंगपंचमी होली, पाकिस्तान की होली, नेपाल की होली, पंजाब की होला मोहल्ला होली, बॉलीवुड-टॉलीवुड की होली इत्यादि काफी प्रचलित हैं। होली के दिन हर जगह कई समारोह आयोजित किए जाते हैं।
मथुरा और वृंदावन में होली
होली महोत्सव मथुरा और वृंदावन में बहुत प्रसिद्ध है। यहां एक महाने पहले से ही होली शुरु होत जाती है। फूलों की होली यहां की विशेषता है। भारत के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले कुछ अति उत्साही लोग मथुरा और वृंदावन में विशेष रूप से होली उत्सव को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। मथुरा और वृंदावन महान भूमि हैं जहां, भगवान कृष्ण ने जन्म लिया और बहुत सारी गतिविधियों की। होली उनमें से एक है। इतिहास के अनुसार, यह माना जाता है कि होली त्योहारोत्सव राधा और कृष्ण के समय से शुरू किया गया था। राधा और कृष्ण शैली में होली उत्सव के लिए दोनों स्थान बहुत प्रसिद्ध हैं। मथुरा में लोग मजाक-उल्लास की बहुत सारी गतिविधियों के साथ होली का जश्न मनाते है। होली का त्योहार उनके लिए प्रेम और भक्ति का महत्व रखता है, जहां अनुभव करने और देखने के लिए बहुत सारी प्रेम लीलाऍ मिलती है। भारत के हर कोने से लोगों की एक बड़ी भीड़ के साथ यह उत्सव पूरे एक सप्ताह तक चलता है। वृंदावन में बांके-बिहारी मंदिर है जहां यह भव्य समारोह मनाया जाता है। मथुरा के पास होली का जश्न मनाने के लिए एक और जगह है गुलाल-कुंड जो की ब्रज में है, यह गोवर्धन पर्वत के पास एक झील है। होली के त्यौहार का आनंद लेने के लिये बड़े स्तर पर एक कृष्ण-लीला नाटक का आयोजन किया जाता है।
बरसाने की लट्ठमार होली
बरसानो में लोग हर साल लट्ठमार होली मनाते हैं, जो बहुत ही रोचक है। निकटतम क्षेत्रों से लोग बरसाने और नंदगांव में होली का उत्सव देखने आते हैं। बरसाना उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में एक शहर है। लट्ठमार होली, छड़ी के साथ एक होली उत्सव है जिसमें महिलाएं छड़ी से पुरुषों को मारती है। यह माना जाता है कि, छोटे कृष्ण होली के दिन राधा को देखने के लिए बरसाने आये थे, जहां उन्होंने उन्हें और उनकी सखियों को छेड़ा जिसके बाद राधा व उनकी सखियों ने उनका पीछा किया और मारा। तब से, बरसाने और नंदगांव में लोग छड़ियों के प्रयोग से होली मनाते हैं जो लट्ठमार होली कही जाती है। प्रत्येक वर्ष नंदगांव के गोप या चरवाहें बरसाने की गोपियों या महिला चरवाहों के साथ होली खेलते है और बरसाने के चरवाहें नंदगांव की गोपियों या महिला चरवाहों के साथ होली खेलते है। कुछ सामूहिक गीत पुरुषों द्वारा महिलाओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए गाये जाते है।