भारत हमेशा से एक धर्मनिरपेक्ष देश होने के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर भी रहा है। जहां एक साथ विभिन्न संस्कृतियां निवास करती है। यहां हर धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि सभी लोग यहां प्रेम, भाईचारे के साथ एक-दूसरे के साथ रहते हैं। यहां मनाए जाने वाला हर त्यौहार आपस में एक होना सिखाता है और सभी को खुशी देता है। ऐसे ही पवित्र त्यौहारो में से प्रमुख है रमज़ान यानि ईद-उल-फितर। हिजरी कैलेण्डर जो एक इस्लामिक कैलेण्डर है, के अनुसार ईद साल में दो बार आती है। एक ईद ईद-उल-फितर के तौर पर मनाई जाती है जबकि दूसरी को कहा जाता है ईद-उल-जुहा। ईद-उल-फितर को महज ईद भी कहा जाता है। इसके अलावा इसे मीठी ईद भी कहते हैं। ईद उसी दिन मनाई जाती है जिस दिन चांद नजर आता है।

ईद उल-फितर
रमज़ान के महीने को इबादत का महीना कहा जाता है। इस दौरान बंदगी करने वाले हर शख्स की ख्वाहिश अल्लाह पूरी करता है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नवां महीना रमज़ान का होता है। इसमें सभी मुस्लिम समुदाय के लोग एक महीना रोज़ा रखते हैं।

ईद से पहले होता है रमज़ान

रमज़ान का इतिहास- रमज़ान इस्‍लाम कैलेंडर का नवां महींना होता है। रमज़ान का मतलब होता है प्रखर। सन् 610 में लेयलत उल-कद्र के मौके पर जब मुहम्‍मद साहब को कुरान शरीफ के बारे में पता चल, तभी इस महीने को पवित्र माह के रूप में मनाया जाने लगा। लिहाजा रमज़ान को कुरान के जश्न का भी मौका माना जाता है।

क्या होता है रमज़ान

रमज़ान एक अरेबिक शब्द है। ये अरेबिक के रमीदा और रमद शब्द से मिलकर बना है। इसका मतलब चिलचिलाती गर्मी और सूखापन होता है। रमज़ान के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे एक महीने व्रत(रोज़ा) रखते हैं। इस्लाम में रोज़ा को फर्ध(ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करना) माना गया है। अल्लाह की इबादत या ईश्वर की उपासना वैसे तो किसी भी समय की जा सकती है। उसके लिये किसी विशेष दिन की जरुरत नहीं होती लेकिन सभी धर्मों में अपने आराध्य की पूजा उपासना, व्रत उपवास के लिये कुछ विशेष त्यौहार मनाये जाते हैं। रमज़ान का महीना खुदा के करीब होने का सबसे अच्छा समय होता है। यही वो महीना होता है जब व्यक्ति अपने सब पापों से दूर होकर साफ मन से खुदा से जुड़ता है। लेकिन खुदा के करीब होने का रास्ता इतना भी आसान नहीं है खुदा भी बंदों की परीक्षा लेता है। जो उसकी कसौटी पर खरा उतरता है उसे ही खुदा की नेमत नसीब होती है। इसलिए ईस्लाम में खुदा की इबादत के लिये रमज़ान के पाक महीने को महत्व दिया जाता है। ईस्लाम में आस्था रखने वाले लोग नियमित रूप से नमाज़ अदा करने के साथ-साथ रोज़े यानि कठोर उपवास (इसमें बारह घंटे तक पानी की एक बूंद तक नहीं लेनी होती) रखे जाते हैं। हालांकि अन्य धर्मों में भी उपवास रखे जाते हैं लेकिन ईस्लाम में रमज़ान के महीने में यह उपवास लगातार तीस दिनों तक चलते हैं। कभी-कभी यह उपवास 30 या 29 दिन के भी होते हैं। इस्लामी कैलेंडर  के अनुसार हर साल रमज़ान  में 10 दिन कम होते जाते हैं वहीं आग्रेंजी कैलेंडर के अनुसार यह 10 दिन पहले आता है। ।  महीने के अंत में चांद के दिदार के साथ ही पारण यानि कि उपवास को खोला जाता है।

ईद से पहले जकात और फितरा देने का महत्व

इस दिन इस्लाम को मानने वाले का फर्ज होता है कि अपनी हैसियत के हिसाब से जरूरतमंदों को दान दें। इस दान को इस्लाम में जकात और फितरा भी कहा जाता है। सभी हैसियतमंद मुसलमानों पर फर्ज है कि वो जरूरतमंदों को दान दें। रमजान में इस दान को दो रूप में दिया जाता है, फितरा और जकात। दरअसल, रमजान के महीने में ईद से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान पर फर्ज होता है। इस पर रोशनी डालते हुए विश्व विख्यात इस्लामिक संस्थान दारूल उलूम देवबंद के जनसंपर्क अधिकारी अशरफ उस्मानी साहब ने बताया, 'अल्लाह ताला ने ईद का त्योहार गरीब और अमीर सभी के लिए बनाया है। गरीबी की वजह से लोगों की खुशी में कमी ना आए इसलिए अल्लाह ताला ने हर संपन्न मुसलमान पर जकात और फितरा देना फर्ज कर दिया है।'

रमज़ान के बाद मनाते हैं ईद-उल-फितर

रमज़ान का महीना खत्म होने के साथ ही ईद का त्यौहार मनाया जाता है। वैसे तो दान-दक्षिणा जिसे जकात कहा जाता है रोज़े रखने के दौरान भी दी जाती है लेकिन ईद के दिन नमाज से पहले गरीबों में फितरा बांटा जाता है जिस कारण ईद को ईद-उल-फितर कहा जाता है। भारत में महिलाएं ईद से पहले हाथों में मेंहदी भी लगवाती है। ईद को शवाल(चंद्र मास) का पहला दिन भी कहते हैं। इस दिन सभी रोज़ेदार नए कपड़े पहनकर मस्जिदों और ईदगाह में जाते हैं।  वहां वे रमज़ान का आखिरी नमाज पढ़कर खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं, साथ ही एक दूसरे को गले मिलकर बधाई देते हैं। ईद के दिन ईदी काफी प्रसिद्ध है। खासतौर पर बच्चों को ईदी दी जाती है जिसका उद्देश्य जरुरतमंदो की मदद करना भी होता है। इसी हंसी-खुशी के साथ ईद का त्यौहार मनाया जाता है।

दुनिया भर में मनाया जाता है  ईद उल-फितर

ईद केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। यदि सबसे अच्छा ईद उत्सव देखना चाहते हैं, तो सऊदी अरब में देखें। ईद के दिन यहां लोग पूरी तरह से ईद मनाने में व्यस्त होते हैं। कई दुकानदार  तो प्रत्येक खरीदारी के साथ मुफ्त उपहार प्रदान करते हैं।  जबकि कुछ अजनबियों को नए खिलौने  भी देते हैं। इतना ही नहीं, इस समय आपको सऊदी अरब का दौरा क्यों करना चाहिए, इसकी एक पुरानी परंपरा भी है। जिसके अनुसार कुछ क्षेत्रों में, परिवार के पुरुष बड़े पैमाने पर स्टेपल और चावल खरीदते हैं और अज्ञात लोगों के दरवाजे पर जाते हैं। बड़े पैमाने पर खाना बनाकर अजनबी पड़ोसियों के साथ उसे साझा करते हैं।

तुर्की में यह दिन बेरम के नाम से भी प्रसिद्ध है। लोग सुबह की प्रार्थनाओं के बाद अपने प्रियजनों का सम्मान करने के लिए कब्रिस्तान जाते हैं। तुर्की में यह तीन दिवसीय त्यौहारके रुप में मनाया जाता है जहां बुजुर्गों का दांया हाथ इच्छा रखते हुए सर झुका कर चूमा जाता है। इस दिन अधिकारिक अवकाश भी होता है। वहीं, दक्षिण अफ्रीका  के ट्यूनीशिया में, पड़ोसियों को देने के लिए विशेष बिस्कुट तैयार किए जाते हैं।

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