भारत में होने वालें "अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव" की शुरआत 1989 से हुई थी | इसके पहले गुजरात के अहमदाबाद में मनाया जाने वाला, यह उत्सव हर वर्ष केवल स्थानीय स्तर पर अहमदाबाद और उसके आस-पास के क्षेत्र में ही संम्पन्न होता था | अब  गुजरात के साथ-साथ पूरे देश में यह उत्सव रंगारंग तरीकें से मनाया जाता है |

पतंगबाज़ी की शुरुआत

अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सवआपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पतंग उड़ाने का प्रचलन चीन से आरंभ हुआ है | आसमान में उड़ने वाली रंग-बिरंगी पतंगों का 150 वर्ष से अधिक पुराना इतिहास है, जो परंपराओं, अंधविश्वासों और अनूठे प्रयोग को अपने सम्मिलित किए हुए है | चीन देश में कई राजवंश हुए, जिनके शासन के दौरान पतंग उड़ाकर उसे अग्यात स्थान छोड़ देने को अपशकुन माना जाता था | साथ ही किसी कटी पतंग को उठाना भी अपशकुन माना जाता था | वहीं थाइलॅंड में हर राजा की अलग पतंग हुआ करती थी, जिसकी सहायता से वह उसे पड़ोसी राज्य या ग़रीब राज्य में भेजकर शांति और खुशहाली की आशा की नींव रखते थे | यहाँ लोग अपनी प्रार्थनायें ईश्वर तक भेजने के लिए भी वर्षा ऋतु में पतंग उड़ाते थे | पतंग के लिए सबसे उपयुक्त स्थान चीन ही था क्योंकि पतंग को सही आकार देने के लिए आवश्यक बाँस चीन में सबसे अच्छी मिलती है | पतंग उड़ाने के लिए लगने वाला रेशम का  धागा भी सबसे अच्छा चीन में ही पाया जाता है |

चीन के बाद भारत, अफ्रीका, अरब जैसे स्थानों में पतंगबाज़ी का विस्तार होने लगा | जिसके बाद भारत में पतंग उड़ाने की कला सांस्कृतिक रूप से एक शगुन बन गयी और यह कला भारत की सभ्यता में रच-बस गयी| पतंगबाज़ी इतनी लोकप्रिय हुई कि कई कवियों ने इसपर कविताएँ भी रच डाली | भारत के राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में तो पतंगबाज़ी अब तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों के रूप में मनाई जाने लगी है| मकर संक्रांति के दौरान जयपुर के चौगान स्टेडियम में होने वालें पतंग महोत्सव में पर्व दरबारी पतंगबाज़ के परिवार वाले लोग, विदेशी पतंगबाज़ों से मुकाबला करते है | इसी तरह अहमदाबाद में गुजरात पर्यटन विभाग द्वारा सरदारपटेल स्टेडियम या पोलीस स्टेडियम में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव में कई तरह की प्रतियोगितायें खेली जाती है जिसमे देश-विदेश से आए हुए लोग हिस्सा लेते है | 

यह महोत्सव शरदऋतु की शुरुआत का प्रतीक है| जिसमे सभी धर्म, संप्रदाय, जाति और समूह के लोग मिलकर हिस्सा लेते है और इसका पूरा आनंद उठाते है| इसतरह लोगों के बीच भाईचारा और आपसी समझ बढ़ती है| इस उत्सव के दौरान पतंगबाज़ार सबसे कलरफूल दिखने वाला स्थान होता है| जहाँ कई रंगों की, कई आकारों की पतंगें मौजूद रहती है|

महोत्सव की धार्मिक मान्यता

हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह उत्सव मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है | मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण हो जाता है और भगवान 6 महीने के लिये उठ जाते है | सूर्य के उत्तरायण होने के कारण इससे कुछ समय के लिए हानिकारक किरणें निकलती है जो नुकसानदायक होती है, इसलिए इस दिन लोग जल्दी स्नान करके मंदिर जाते है और पूजापाठ और दान आदि करते है तथा अपने देव के उठने की खुशी में पतंगबाज़ी करते है | ऐसा भी कहा जाता है कि मकरसंक्रांति के बाद से स्वर्ग के द्वार खुल जाते है, साथ ही देश में होने वालें मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते है |

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