पतंगबाज़ी की शुरुआत

चीन के बाद भारत, अफ्रीका, अरब जैसे स्थानों में पतंगबाज़ी का विस्तार होने लगा | जिसके बाद भारत में पतंग उड़ाने की कला सांस्कृतिक रूप से एक शगुन बन गयी और यह कला भारत की सभ्यता में रच-बस गयी| पतंगबाज़ी इतनी लोकप्रिय हुई कि कई कवियों ने इसपर कविताएँ भी रच डाली | भारत के राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में तो पतंगबाज़ी अब तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों के रूप में मनाई जाने लगी है| मकर संक्रांति के दौरान जयपुर के चौगान स्टेडियम में होने वालें पतंग महोत्सव में पर्व दरबारी पतंगबाज़ के परिवार वाले लोग, विदेशी पतंगबाज़ों से मुकाबला करते है | इसी तरह अहमदाबाद में गुजरात पर्यटन विभाग द्वारा सरदारपटेल स्टेडियम या पोलीस स्टेडियम में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव में कई तरह की प्रतियोगितायें खेली जाती है जिसमे देश-विदेश से आए हुए लोग हिस्सा लेते है |
यह महोत्सव शरदऋतु की शुरुआत का प्रतीक है| जिसमे सभी धर्म, संप्रदाय, जाति और समूह के लोग मिलकर हिस्सा लेते है और इसका पूरा आनंद उठाते है| इसतरह लोगों के बीच भाईचारा और आपसी समझ बढ़ती है| इस उत्सव के दौरान पतंगबाज़ार सबसे कलरफूल दिखने वाला स्थान होता है| जहाँ कई रंगों की, कई आकारों की पतंगें मौजूद रहती है|
महोत्सव की धार्मिक मान्यता
हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह उत्सव मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है | मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण हो जाता है और भगवान 6 महीने के लिये उठ जाते है | सूर्य के उत्तरायण होने के कारण इससे कुछ समय के लिए हानिकारक किरणें निकलती है जो नुकसानदायक होती है, इसलिए इस दिन लोग जल्दी स्नान करके मंदिर जाते है और पूजापाठ और दान आदि करते है तथा अपने देव के उठने की खुशी में पतंगबाज़ी करते है | ऐसा भी कहा जाता है कि मकरसंक्रांति के बाद से स्वर्ग के द्वार खुल जाते है, साथ ही देश में होने वालें मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते है |To read about this festival in English click here