वो माखनचोर भी हैं, ग्वाले भी हैं और सारथी भी हैं.. वो श्रीकृष्ण हैं। वो कल भी यहीं थे, वो आज भी हमारे बीच ही हैं। वो कण कण में हैं। वो यहीं खड़े हैं, बस उनको ढूंढने की नज़र होनी चाहिए। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी यानि उनके अवतरित होने का दिन, भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण भगवान के जितने हिंदू भक्त हैं उसके लगभग ही विदेशी भी हैं। इस बार जन्माष्टमी अगस्त 18 (गुरुवार) को आ रही है।

श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है। श्रीकृष्ण देवकी और वासुदेव के 8वें पुत्र थे। मथुरा नगरी का राजा कंस था, जो कि बहुत अत्याचारी था। उसके अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। एक समय आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का 8वां पुत्र उसका वध करेगा। यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी को उसके पति वासुदेवसहित काल-कोठारी में डाल दिया। कंस ने देवकी के कृष्ण से पहले के 7 बच्चों को मार डाला। जब देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ।
जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि
व्रत की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें.
- सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें.
- व्रत के दिन सुबह स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं.
- इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें:
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
- अब शाम के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए सूतिकागृह नियत करें.
- इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
- मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अगर ऐसा चित्र मिल जाए तो बेहतर रहता है.
- इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें. पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः लेना चाहिए.
- फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें- प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।
- अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें.
जन्माष्टमी पूजन के मंत्र
ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: (इस मंत्र का जाप दिन भर करते रहना चाहिए)
योगेश्वराय योगसम्भवाय योगपताये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा श्री हरि का ध्यान करें)
यज्ञेश्वराय यज्ञसम्भवाय यज्ञपतये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा श्री कृष्ण की बाल प्रतिमा को स्नान कराएं)
वीश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा भगवान को धूप ,दीप, पुष्प, फल आदि अर्पण करें)
धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र से नैवेद्य या प्रसाद अर्पित करें)
पौराणिक कथा

भगवान श्री कृष्ण और बलराम के रणभूमि में आने पर चाणूर एवं मुष्टिक ने उन्हें मल्लयुद्ध के लिए ललकारा। श्री कृष्ण चाणूर से और बलराम जी मुष्टिक से जा भिड़े। भगवान श्री कृष्ण के अंगों की रगड़ से चाणूर की रग-रग ढीली पड़ गई। उन्होंने चाणूर की दोनों भुजाएं पकड़ लीं और बड़े वेग से कई बार घुमा कर धरती पर दे मारा। चाणूर के प्राण निकल गए और वह कटे वृक्ष की भांति गिर कर शांत हो गया। बलराम जी ने मुष्टिक को एक घूंसा जमाया और वह खून उगलता हुआ पृथ्वी पर गिर कर मर गया। देखते ही देखते कंस के पांचों प्रमुख पहलवान श्री कृष्ण और बलराम द्वारा मारे गए। भगवान श्री कृष्ण और बलराम की इस अद्भुत लीला को देखकर दर्शकों को बड़ा आनंद हुआ। चारों ओर उनकी जय-जय कार और प्रशंसा होने लगी, परंतु कंस को इससे बहुत दुख हुआ। वह और भी चिढ़ गया। जब उसके प्रधान पहलवान मारे गए और बचे हुए भाग गए, तब उसने बाजे बंद करवा दिए। कंस ने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि वसुदेव के लड़कों को बाहर निकाल दो, गोपों का सारा धन छीन लो और नंद को बंदी बना लो तथा वासुदेव-देवकी को मार डालो। उग्रसेन मेरे पिता होने पर भी शत्रुओं से मिले हुए हैं। इसलिए उन्हें भी जीवित मत छोड़ो। कंस इस प्रकार बढ़-चढ़ कर बकवास कर ही रहा था कि भगवान श्री कृष्ण फुर्ती से उछलकर उसके मंच पर पहुंच गए। जब कंस ने देखा कि उसके मृत्यु रूप भगवान श्री कृष्ण उसके सामने आ गए हैं, तब वह भी तलवार लेकर उठ खड़ा हुआ और श्री कृष्ण पर चोट करने के लिए पैंतरा बदलने लगा। जिस प्रकार गरुड़ सांप को पकड़ लेता है वैसे ही श्री कृष्ण ने कंस को पकड़ लिया। कंस का मुकुट गिर गया। भगवान ने केश पकड़ कर उसे मंच से धरती पर पटक दिया। फिर श्री कृष्ण स्वयं उसके ऊपर कूद पड़े। उनके कूदते ही कंस की मृत्यु हो गई। कंस निरंतर शत्रु भाव से श्री कृष्ण का ही चिंतन करता रहता था। वह खाते-पीते, उठते-बैठते अपने सामने भगवान श्री कृष्ण को ही देखता रहता था। इसके प्रभाव से उसे सारूप्य मुक्ति की प्राप्ति हुई। सबके देखते ही देखते उसके शरीर से एक दिव्य तेज निकल कर श्री कृष्ण में समा गया। कंस के मरते ही कङ्क इत्यादि उसके आठ छोटे भाई श्री कृष्ण और बलराम जी का वध करने के लिए दौड़े परंतु बलराम जी ने क्षण भर में ही उन सब का काम तमाम कर डाला। उस समय आकाश में दुंदुभियां बजने लगीं। ब्रह्मा, शंकर तथा इंद्र आदि देवता बड़े आनंद से भगवान श्री कृष्ण पर पुष्पों की वर्षा करते हुए उनकी स्तुति करने लगे। कंस और उसके भाइयों की स्त्रियां अपने पतियों की मृत्यु पर विलाप करती हुई वहां आईं। भगवान श्री कृष्ण सारे संसार के जीवनदाता हैं। उन्होंने कंस की रानियों को समझा कर ढांढस बंधाया। तदनंतर भगवान श्री कृष्ण ने मरने वालों की लोक रीति के अनुसार क्रिया कर्म की व्यवस्था करवा दी।
दही हांडी
दही-हांडी उत्सव के दौरान सार्वजनिक स्थलों पर हांडी को रस्सी के सहारे काफी ऊंचाई पर लटका दिया जाता है. दही से भरे मटके को लोग समूहों में एकजुट होकर फोड़ने का प्रयास करते हैं. हांडी को फोड़ने के प्रयास में लोग एक-दूसरे के ऊपर व्यवस्थित तरीके से चढ़कर पिरामिड जैसा आकार बनाते हैं. इससे लोग काफी ऊंचाई पर बंधे मटके तक पहुंच जाते हैं. इस प्रयास में चूंकि एकजुटता की काफी जरूरत पड़ती है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि दही-हांडी उत्सव से सामूहिकता को बढ़ावा मिलता है.
देखने लायक होता है दही-हांडी का नजारा
दही की हांडी को फोड़ने के प्रयास में लोग कई बार गिरते-फिसलते हैं. हांडी फोड़ने के प्रयास में लगे युवकों और बच्चों को गोविंदा कहा जाता है, जो कि गोविंद का ही दूसरा नाम है. इन गोविंदाओं के ऊपर कई बार पानी की बौछारें भी की जाती हैं. काफी प्रयास के बाद जब गोविंदाओं को कामयाबी हासिल होती है, तो देखने वालों को भी काफी आनंद आता है. हांडी फोड़ने वाले तो फूले नहीं समाते हैं. भक्त इस पूरे खेल में भगवान को याद करते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण अपने साथियों के ऊपर चढ़कर पास-पड़ोस के घरों में मटकी में रखा दही और माखन चुराया करते थे. कान्हा के इसी रूप के कारण बड़े प्यार से उन्हें माखनचोर कहा जाता है.
जन्माष्टमी व्रत का फल
भविष्यपुराण के अनुसार जन्माष्टमी व्रत के पुण्य से व्यक्ति पुत्र, संतान, अरोग्य, धन धान्य ,दीर्घायु, राज्य तथा मनोरथ को प्राप्त करता है। इसके अलावा माना जाता है कि जो एक बार भी इस व्रत को कर लेता है वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है यानि मोक्ष को प्राप्त करता है।
जन्माष्टमी का त्यौहार का एक मनोरंजक पक्ष दही-हांडी भी है। यह प्रकार का खेल है जिसमें बच्चे भगवान कृष्ण द्वारा माखन चुराने की लीला का मंचन करते हैं। महाराष्ट्र और इसके आसपास की जगहों पर यह प्रसिद्ध खेल है।
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