भारत में कई महान संत-महात्माओं ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने ज्ञान और बलिदान से मनुष्यों को जीवन का सही अर्थ समझाया है। भारत के प्रत्येक राज्य में किसी ना किसी महान संत ने जन्म लेकर उस धरती को पवित्र बनाया है। इन्हीं महान संतों में से एक है बाबा जित्तो। बाबा जित्तो जम्मू के एक प्रसिद्ध संत हैं जिन्होंने अपने तप और भक्ति से अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और शहीद हुए। उनके और उनकी बेटी के इस बलिदान को सम्मानित करने के हेतु श्रद्धालु दूर-दूर से उनके दर्शन करने आते हैं। बाबा जित्तो ने जिस जगह बलिदान दिया था वो जम्मू से 22 किलोमीटर दूर स्थित झिड़ी गांव में है यहां प्रत्येक वर्ष नवंबर माह में उनकी शहादत के स्वरुप झिड़ी मेला लगता है। यह मेला हर आगंतुक के लिए एक रोमांचकारी अनुभव है। झिरी मेला ईमानदारी, निर्दोषता, नम्रता का जश्न मनाने का प्रतिक है। इस महान किसान संत की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए पूरे भारत के लाखों पर्यटक झिड़ी मेला के दौरान इकट्ठे होते हैं। जम्मू शहर से करीब 25 किलोमीटर दूरी पर झिड़ी गांव में आयोजित होने वाला यह मेला पूरे एक सप्ताह तक चलता है। यह मेला नवंबर में पूर्णिमा से तीन दिन पहले शुरू हो जाता है और पूर्णिमा के तीन दिन बाद तक चलता रहता है। इस स्थान पर सबसे अधिक जनसमूह पूर्णमासी के दिन एकत्र होता है और हजारों श्रद्धालु दिन रात जमा होकर पूजा अर्चना कर मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना कर बाबा जित्तो की स्मृति में श्रद्धा के फूल अर्पित करते हैं। इसमें जम्मू, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली सहित अन्य राज्यों के अलावा विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। बाबा तालाब में सुंगल स्नान कर श्रद्धालु बुआ व बाबा की स्मृति में श्रद्धा के फूल अर्पित करते हैं।

विशेष तौर पर सजाया जाता है दरबार

श्रद्धालु जन बाबा जित्तो को बाबा एवं उनकी बेटी के बुआ कहकर संबोधित करते हैं। झिड़ी मेले के समय बुआ व बाबा के प्राचीन मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए विशेष तौर पर सजाया जाता है। दिल्ली व लुधियाना से विशेष तौर पर कारीगर बुलाए जाते हैं जो जगनमालाओं और फूलों से मंदिर की सजावट करते हैं। देश-विदेश से आने वाले बुआ व बाबा के भक्तों के लिए मंदिर प्रबंधन की ओर से खाने-पीने की विशेष व्यवस्था रहती है लगर का आयोजन किया जाता है। मेले के दौरान श्रद्धालुओं को चौबीस घंटे भोजन उपलब्ध कराया जाता है। बाबा जित्तो का जीवन एक प्रेरणादायक दास्तान है, जिसके कई पहलु मानवीय जीवन की उस महानता को प्रदर्शित करते हैं कि इंसान भगवान की प्रार्थना से बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है। अन्याय के सामने कभी किसी का सिर नहीं झुकना चाहिए। अन्याय का फल बुरा होता है। बुजुर्गो की सेवा करनी चाहिए।

झिड़ी मेला का इतिहास

झिड़ी मेला का इतिहास करीब साढ़े पांच सौ वर्ष पुराना है मान्यता है कि पहले रियासी तहसील के गांव अघार में एक गरीब ब्रहामण रूप चंद रहता था। उसके यहां बेटा पैदा हुआ जिसका नाम जेतमल रखा गया। जेतमल जब बड़ा हुआ तो उसका विवाह माया देवी से हुआ। माया देवी व मुनि दोनों ही घर में बजुर्गों की सेवा करने लगे, पर उनके देहांत पर वे परेशान हो गए, जिसपर उन्होंने माता वैष्णो देवी की साधना व भक्ति प्रारंभ कर दी। माता वैष्णो देवी की भक्ति के दौरान जेतमल मुनि को सपना आया कि उसके यहां पुत्री पैदा होगी जिसके साथ उनकी सदियों तक पूजा होती रहेगी और आने वाली पीढिय़ा याद रखेगी।। इसके कुछ समय बाद जेतमल के यहां एक सुन्दर कन्या ने जन्म लिया लेकिन लडकी के जन्म के साथ ही उसकी पत्नी माया का निधन हो गया जिसका मुनि जेतमल को भारी सदमा पहुंचा। मुनि जेतमल बच्ची का पालन पोषण करने लगे। उन्होंने बच्ची का नाम गौरी रखा लेकिन जब गौरी बड़ी हुई तो बीमार हो गई, इस लिए वह बड़ा पेरशान हो गया। स्थानीय वैद्य उसका उपचार करने में असफल हो गये । जिस पर जेतमल ने वातावरण बदलने के लिए गांव छोडऩे का फैसला किया और वहां से अपनी बेटी गौरी और कुत्ते के साथ तहसील जम्मू के गांव कानाचक्क के इलाके में पिंजौड़ यानी पंचवटी जिसे अब झिड़ी कहते है वहां ले गए। जैतमल ने वहां एक जगह तलाश करके खेतीबाड़ी का काम शुरू करना चाहा, लेकिन वह जगह एक जागीरदार बेर सिंह की जागीर में आती थी। अत: बेर सिंह ने जैतमल को बंजर जमीन खेती के लिए इस शर्त के अंतर्गत दी जिस में यह कहा गया था कि जैतमल यानी जित्तो जागीर दार को अपनी खेती की पैदावार का एक चौथाई हिस्सा दिया करेगा। परंतु जब जैतमल के कड़े परिश्रम के बाद उस जमीन में काफी फसल पैदा हुई तो वह जागीरदार लालची हो गया और अनाज के ढ़ेर देख कर चौथाई हिस्से के बजाय पैदावार का आधा हिस्सा मांगने लगा। लेकिन जैतमल निर्धारित शर्त से अधिक अनाज देने को तैयार नही हुआ इस पर जागीरदार ने आग बबूला होकर अपने आदमियों को वह अनाज उठा लेने का आदेश दिया। जैतमल ने मां भगवती का स्मरण किया जिस पर उन्हें यह प्रेरणा मिली कि वह अन्याय के खिलाफ अपनी जान कुर्बान कर दें। जैतमल ने इतना कहा ‘सुक्की कनक नीं खाया मेहतया,अपना लयु दिना मिलाई‘ और मेहनत से पैदा किए गए अनाज को लूटने आए जागीरदार के कारिंदों के सामने वहीं कटार से अपने जीवन का अंत कर दिया। अनाज खून से रंग गया तथा जागीरदार बेर सिंह यह घटना देखकर दंग रह गया। उसी समय अचानक तुफान आया व वर्षा हुई जिससे वह अनाज बिखर गया तथा जैतमल की बेटी ने बाप की चिता जलाई और खुद भी उसमें ही भस्म हो गई। तबसे जैतमल बाबा जित्तो कहलाने लगा और जागीरदार का सारा खानदान बीमार रहने लगा। इस इलाके के तत्कालीन राजा अजबदेव सिंह ने इस जगह मंदिर व समाधि बनवाए और तब से हर साल शहीद बाबा जित्तो की याद में झिड़ी का मेला लगता है। कई परिवार वहां पहुंचकर पूजा करते हैं और समारोहों में भाग लेते हैं।

झिड़ी मेला उत्सव

मेले को सफल बनाने के लिए सरकार की ओर से सुरक्षा और यात्रियों की सुविधा के लिए बड़े पैमाने पर प्रबंध किए गए हैं। झिड़ी के मेले में आने वाले अनेक श्रद्धालु माता वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए भी आते हैं और चारों तरफ चहल पहल हो जाती है। झिड़ी के इलाके में बाबा जित्तो के कई श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों की याद में छोटी छोटी समाधियां व मंदिर बनवाए हैं। इस क्षेत्र को बाबे दा झाड़ (तालाब) कहा जाता है। यहां लोग कई रस्में पूरी करने आते हैं। जिसके कारण यहां श्रद्धालुओं की भीड़ भी बढ़ जाती है। क्षेत्र को बाबे दा झाड़ (तालाब) कहा जाता है। यहां लोग कई रस्में पूरी करने आते हैं। जिसके कारण यहां श्रद्धालुओं की भीड़ भी बढ़ जाती है। झिरी मेले के समय बाबा जित्तो और उनकी पवित्र आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के दौरान पूरे भारत के लोग जम्मू आते हैं। इस मेले में कई प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया जाता है। साथ ही मिट्टी के बर्तनों, फूलों के बर्तन और खिलौनों से लेकर विभिन्न प्रकार समान इस मेले में मिलते हैं।

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October (Ashwin / Karthik)