भारत के राजस्थान राज्य के करोली जिला में पर्वतों के मध्य बना कैला देवी का मंदिर बहुत प्रचलित है। वैसै तो चैत्रमास का महीना देवी पूजा का महीना माना जाता है। लेकिन मां कैला देवी की अत्यंत महिमा है। माता कैला देवी का मेला राजस्थान के साथ-साथ पूरे भारत में प्रसिद्ध है। दूर-दूर से भक्त जन चैत्रमास में माता के दर्शन के लिए आते हैं। वैसे तो पूरे वर्ष कैला देवी के मंदिर में भक्तो की भीड़ होती है किन्तु चैत्रमास में यहां भक्तों की भीड़ और मेले का अलग ही भव्य नजारा देखने को मिलता है। चैत्रमास में शक्तिपूजा का विशेष महत्व रहा है। कैलादेवी मन्दिर राजस्थान राज्य के करौली नगर में स्थित एक प्रसिद् हिन्दू धार्मिक स्थल है। जहाँ प्रतिवर्ष मार्च-अप्रैल माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के तीर्थ यात्री आते है। मुख्य मन्दिर संगमरमर से बना हुआ है जिसमें कैला (दुर्गा देवी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएँ हैं। कैलादेवी की आठ भुजाऐं एवं सिंह पर सवारी करते हुए बताया है। यहाँ क्षेत्रीय लांगूरिया के गीत विशेष रूप से गाये जाते है। जिसमें भक्त लांगुरिया के माध्यम से कैलादेवी को अपनी भक्ति-भाव प्रदर्शित करते है। कैला देवी का मंदिर हर साल मेला आयोजित करने के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजस्थान के कराउली जिले के कालीसील नदी के तट पर त्रिपुरा पहाड़ियों पर कैला गांव से 2 किमी दूर स्थित है। कैला देवी का आधिकारिक नाम लाहुरा है। करौली राज्य के पूर्व रियासत शासकों का मानना था कि कैला देवी किसी भी तरह के आक्रमण से अपने राज्य की रक्षा करती हैं।

कैला देवी मंदिर


कैला देवी मेले में क्या है खास

श्रृंखलाओं के मध्य त्रिकूट पर्वत पर विराजमान कैला देवी का दरबार चैत्रामास में छोटे कुम्भ के रुप में नजर आता है। उत्तरी-पूर्वी राजस्थान के चम्बल नदी के बीहडों के नजदीक कैला ग्राम में स्थित मां के दरबार में वार्षिक मेले में जन सैलाब-सा उमड़ पड़ता है। प्रसिद्ध कैला देवी मेला चैत्र के कृष्णा पक्ष के दौरान आयोजित किया जाता है और चैत्र बड़ी के 12 वें दिन से शुरू होने वाले पखवाड़े में चलता है। कैला देवी को धन की देवी महलक्ष्मी और मृत्यु की देवी मां चामुण्डा का ही रुप माना जाता है। देवी मां को खुश करने के लिए जानवरों को बाहर ही छोड़ दिया जाता है। जानवरों को मंदिर में नहीं लाया जाता। यह राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध मेलों में से एक है। कैला देवी को यादव, खिच्ची और करौली जाति के लोग अपनी प्रमुख देवी के रुप में पूजते हैं। कैला देवी के मंदिर के पास ही भैरों बाबा का एक छोटा मंदिर है। साथ ही हनुमान जी का भी मंदिर बना हुआ है जिन्हें लोग लागूंरिया कहते हैं। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में भक्त इन मंदिरों को दर्शन के लिए आते हैं।

कैला देवी मंदिर का इतिहास

केला देवी को कलिया माता भी कहा जाता है। कैला देवी माता के इतिहास से जुड़ी कई कहानियां मौजूद है। लोगों की मान्यता है कि मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने 1600 ई. में करवाया था। पुरातन काल में त्रिकूट पर्वत के आसपास का इलाका घने वन से घिरा हुआ था। इस इलाके में नरकासुर नामक आतातायी राक्षस रहता था। नरकासुर ने आसपास के इलाके में काफ़ी आतंक कायम कर रखा था। उसके अत्याचारों से आम जनता दु:खी थी। परेशान जनता ने तब माँ दुर्गा की पूजा की और उन्हें यहाँ अवतरित होकर उनकी रक्षा करने की गुहार की। बताया जाता है कि आम जनता के दुःख निवारण हेतु माँ कैला देवी ने इस स्थान पर अवतरित होकर नरकासुर का वध किया और अपने भक्तों को भयमुक्त किया। तभी से भक्तगण उन्हें माँ दुर्गा का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हुए आ रहे हैं। वहीं दूसरी मान्यता यह है कि धर्म ग्रंथों के अनुसार सती के अंग जहां-जहां गिरे वहीं एक शक्तिपीठ का उदगम हुआ। उन्हीं शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ कैलादेवी है। प्राचीनकाल में कालीसिन्ध नदी के तट पर बाबा केदागिरी तपस्या किए करते थे यहां के सघन जंगल में स्थित गिरी-कन्दराओं में एक दानव निवास करता था जिसके कारण संयासी एवं आमजन परेशान थे। बाबा ने इन दैत्यों से क्षेत्रा को मुक्त कराने के लिए घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर माता प्रकट हो गई। बाबा केदारगिरी त्रिकूट पर्वत पर आकर रहने लगे। कुछ समय पश्चात देवी मां कैला ग्राम में प्रकट हुई और उस दानव का कालीसिन्ध नदी के तट पर वध किया। जहां एक बडे पाषाण पर आज भी दानव के पैरों के चिन्ह देखने को मिलते है। इस स्थान के आज भी दानवदह के नाम से जाना जाता है। वहीं इसे योगमाया का मंदिर भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव और देवकी को जेल में डालकर जिस कन्या योगमाया का वध कंस ने करना चाहा था, वह योगमाया कैला देवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान है। कैला देवी का मंदिर सफ़ेद संगमरमर और लाल पत्थरों से निर्मित है। जो देखने में बहुत ही आकर्षक और सुंदर लगता है।

कैला देवी मां की पूजा विधि

कैला देवी मेले के दौरान 2 लाख से अधिक तीर्थयात्री इस स्थान पर आते हैं। कैला देवी मेले के वक्त यहां भक्तों के लिए 24 घंटे भंडार और उनके आराम करने की व्यवस्था की जाती है। किन्तु कुछ भक्त ऐसे भी होते हैं जो बिना कुछ खाय-पिए, बिना आराम किए इस कठोर यात्रा को पूरा करते है। मीना समुदाय के लोग आदिवासियों के साथ मिलकर नाचते-गाते इस यात्रा को पूरा करते हैं। भक्त नकद, नारियल, काजल (कोहल), टिककी, मिठाई और चूड़ियां देवी को प्रदान करते हैं यह सब समान भक्त अपने साथ लेकर आते हैं। मंदिर में सुबह-शाम आरती भजन किया जाता है। कहा जाता है कि माता को प्रसन्न करने का एक ही तरीका है लांगूरिया भजन को गाना। भक्त माता की भक्ति में लीन होकर नाचते-गाते हुए उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।

कैला देवी मंदिर
To read this article in English Click here

Forthcoming Festivals