भारत एक विविधताओं का देश है। यहां आए दिन कोई ना कोई त्यौहार किसी ना किसी धर्म का मनाया जाता है। जितने ही धर्म है यहां उतनी ही संस्कृतियां है। उतने ही त्यौहार और उतने ही मेले है। यहां हर राज्य में आए दिन कोई ना कोई मेला लगा ही रहता है। बारत के इन्हीं मशहूर मेलों में से एक कल्लाजी का मेला है। जो भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। इस मेले का आलम यह है कि इस मेले में शामिल होने के लिए बच्चों से लेकर बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी में जबरदस्त उत्साह होता है। पडौली राठौड़ स्थित प्रसिद्ध कल्लाजी धाम पर प्रतिवर्ष की भांति शारदीय नवरात्र के प्रथम रविवार को दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला नवरात्र से संबधित है इसलिए इसे हमेशा नवरात्र के प्रथम रविवार को आयोजित किया जाता है। इस दो दिवसीय मेले में लोगों को हुजुम उमड़ पड़ता है। सुबह से ही लोगों की आवाजाही शुरू हो जाती है। केवल राजस्थान ही नहीं अपितु देश-विदेश के विभिन्न कोनों से लोग इस मेले में शामिल होने आते हैं। इस मेले में हजारों की तादाद में पर्यटन एवं श्रद्धालु शामिल होते हैं।

कल्लाजी मेला

कल्लाजी मेला उत्सव

इस अवसर पर बच्चे, युवक, युवतियां सहित महिलाएं पुरुष खरीददारी कर मेले का लुत्फ उठाते हैं। महिलाएं एवं बच्चे विशेष रुप से खरीदारी करती हैं। यहां तक की मेले में लगे विभिन्न झूलों पर बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। इस अवसर पर मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में सुबह कमधज कल्लाजी राठौड़ की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार कर पूजन किया जाता है। जहां दिनभर सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ते रहते हैं। शाम को आरती कर प्रसाद का वितरण किया जाता है। मेला शुरु होने से एक दिन पहले यानि शनिवार शाम को ढोल ढमाकों के साथ मंदिर की पुरानी ध्वजा उतार कर नई ध्वजा चढ़ाई जाती है। मेले में खाने-पीने, खिलौने और श्रृंगार की दुकानें लगाई जाती है। जहां आपको विभिन्न राजस्थानी जायकों का स्वाद चखने को मिल जाएगा।

कल्लाजी मेले का इतिहास

कल्ला जी का जन्म विक्रमी संवत 1601 को दुर्गाष्टमी को मेडता में हुआ था। मेडता रियासत के राव जयमल के छोटे भाई आस सिंह के पुत्र थे| कल्ला जी अपनी कुल देवी नागणेचीजी के बड़े भक्त थे| उनकी आराधना करते हुए योगाभ्यास भी किया| इसी के साथ ओषधि विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर वे कुशल चिकित्सक भी हो गए थे| कहा जाता है कि सन 1568 में अकबर की सेना ने चितौड़ पर आक्रमण कर दिया था| इस हमेले में बहादूरी से लड़ते हुए कल्लाजी शहीद हो गए। उनके इस पराक्रम के कारण वे राजस्थान के लोक जन में चार हाथ वाले देवता के रूप में प्रसिद्घ हो गए| चितौड़ में जिस स्थान पर उनका बलिदान हुआ वंहा भैरो पोल पर एक छतरी बनी हुयी है| वहां हर साल आश्विन शुक्ला नवमी को एक विशाल मेले का आयोजन होता है| कल्ला जी को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है|

मेले का महत्व

क्ल्लाजी के मेले का राजस्थान के लोगों के लिए बहुत महत्व है। लगभग तीन बीघा भूमि में फैले इस धाम के भव्य मंदिर के गर्भगृह में कल्लाली राठौड़, कुलदेवी मां नागणेश्वरी गातरोड़जी की गादी स्थापित है। मंदिर परिसर के पास दिवंगत सेवक शंभुसिंह जी राठौड़ की मूर्ति विराजित है। जहां श्रद्धालु मत्था टेक कर आशीर्वाद प्राप्त करते है। लोक मान्यता के अनुसार यहां पर मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है। बुजुर्गों का कहना है कि इस धाम पर ज्येष्ठ सुदी बारस विक्रम संवत 2021 से अखंड ज्योत प्रज्जवलित है।


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