ऐसे बहुत कम त्योहार हैं जो कि पुरानी परंपराओं का निर्वाह करते हुए आज के मॉर्डन जमाने में जगह बना पाए हैं। करवा चौथ भी उन में से एक है। करवा चौथ को बड़े ही चाव से मनाया जाता है। ये विवाहित महिलाओं को समर्पित है। हालांकि कुछ अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को रखती हैं, लेकिन असल में इसका सारा सार विवाहिताओं के लिये है। पूरा दिन भूखी प्यासी रहकर पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। ये एक दूसरे के प्रति त्याग और प्यार की भावना को दर्शाता है। ये सिर्फ भारत में ही आपको देखने को मिलेगा कि जीवनसाथी के लिये कोई अपनी जान जोखिम में डालता है। चाहे प्यास से छाती फट जाए पर रात को जब तक चांद नहीं निकलता महिलाएं पानी नहीं पीती हैं। चाहे वो रात को 8 बजे निकले या राते के 2 बज जाएं। नवविहाताएं करवा चौथ को बड़े चाव से मनाती हैं। आजकल तो करवा से पहले मेंहदी लगाने वालों के यहां भीड़ लग जाती है। ब्यूटी पार्लरों में टोकन लेकर जाना पड़ता है। मेंहदी, आभूषण और कपड़ों की दुकानों पर जबरदस्त भीड़ रहती है।
इस व्रत में सुहागिन महिलाएं सुबहर चार बजे उठती हैं और नहा धोकर नए वस्त्र डाल कर सारे श्रृंगार कर के सूर्य उगने से पहले पहले सरगी खाती हैं। इसी वक्त पानी पिया जाता है, क्योंकि फिर पूरा दिन पानी नहीं पी सकते हैं। सरगी खाने के बाद थोड़ी देर सोना जरूरी होता है। पूरा दिन भगवान का स्मरण किया जाता है। पंडित बुलाकर कथा सुनी जाती है। सायंकाल में जब चंद्रमा निकल जाए तो निकलते हुए चंद्रमा की पूजा करें , अर्ध्य दें और फिर छन्नी में चंद्रमा को देखने के बाद पति को देखें। पति की आरती उतार कर पैर छुएं। फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खत्म करें। पानी पीने के बाद खाना का सकते हैं। खाने में शाकाहरी ही खाएं और काले मांह की दाल जरूर खाएं।
हालांकि अलग अलग जगह पर अलग अलग परंपराओं के हिसाब से कुछ नियम और सामग्रियां और जुड़ जाती हैं। जो कि परिवार के बड़े अपने आगे की पीढ़ियों को बताते रहते हैं।