भारत त्योहारों की भूमि है यहा के प्रत्येक राज्य में विभिन्न स्थानिय त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक भारत का पूर्वोतर राज्य त्रिपुरा है। त्रिपुरा के प्रमुख त्योहारों में से एक है खारची पूजा। खारची पूजा के मुख्य समारोह स्थल पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। त्रिपुरा में अगरतला से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर खारची पूजा होती है। यहां खारची का मतलब धरती से होता है त्योहार समान रूप से त्रिपुरा के आदिवासी और गैर आदिवासी निवासियों द्वारा मनाया जाता है। खारची त्यौहार को त्रिपुरा में धूमधाम से मनाया जाता है। अगरतला के मंदिरों में एक सप्ताह तक चलने वाला त्योहार 'खारची' श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहता है।
खारची पूजा की पंरपराएं
खाची पूजा हर साल जुलाई के महीने में मनाए जाने वाले चौदह देवताओं की पूजा है। यह उत्सव सात दिनों की अवधि में फैला है। मंदिर परिसर चारों ओर से उत्साहित तीर्थयात्रियों से भरा हुआ होता है। खारची पूजा पर्व पर चौदह देवियों को स्नान करवाया जाता है। स्नान करवाने के लिए इन देवियों की मूर्तियों को मंदिर में ले जाया जाता है, जहाँ स्नान के बाद उनका श्रृंगार करवाया जाता है। इस त्यौहार में भी धरती मां की पूजा की जाती है क्योंकि धरती मां को ही सृजन का मूल माना जाता है। इस त्यौहार में सिर्फ देवताओं के सिर की ही पूजा होती है। इस पूजा में बकरों और कबूतरों की बलि भी चढ़ाई जाती है।पहले यह त्यौहार जहां सिर्फ शाही परिवार के सम्मान में मनाया जाता था तो आजादी के बाद से यह पर्व जन-जन के बीच लोकप्रिय हो गया। यह अपने आप में ऐसा अनोखा पर्व है, जिसमें देवताओं के सिर की ही पूजा होती है। इतना ही नहीं, केवल इस त्योहार में ही साल भर बंद रहने वाले पुरानी हवेली के मंदिर के दरवाजे भी खोले जाते हैं।खारची पूजा का महत्व
खारची शब्द ख्या से लिया गया है, जो पृथ्वी का द्योतक है। खारची पूजा वास्तव में पृथ्वी की पूजा है जो मानव जाति को उसके सभी संसाधनों के साथ निर्वाह करती है। मूल रूप से यह हिंदू आदिवासियों का उत्सव है जो अब सभी समुदायों और धर्मों द्वारा मनाया जाता है। इस त्योहार में 14 देवता- शिव, दुर्गा, विष्णु, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक, गणेश, ब्रह्मा, अबधि (जल के देवता), चंद्र, गंगा, अग्नि, कामदेव और हिमाद्री (हिमालय) की पूजा की जाती है।To read this Article in English Click here