23 दिसम्बर 1902 में उत्तरप्रदेश के मेरठ शहर में जन्में "चौधरी चरणसिंह" भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व वित्तमंत्री और उत्तरप्रदेश राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके, ऐसे एकलौते व्यक्ति हुए जिन्होनें किसानों के हित में बहुत काम किए | ग्रामीण जीवन और किसानों के साथ जीवन गुज़ार चुके चौधरी साहब ने उस जीवन को, उनकी तकलीफें, वहाँ की ग़रीबी को बहुत करीब से देखा था | उनका मानना था कि इस देश में यदि उन्नति लानी है, तो सबसे पहले किसानों को उन्नत करना पड़ेगा क्योंकि वहीं इस अर्थव्यवस्था की नींव है और यदि नींव ही कमज़ोर रहेगी तो आगे विकास की इमारत खड़ी करना असंभव है |
चौधरी चरणसिंह के प्रयासों के चलते 1952 में "जमींदारी उन्मूलक विधेयक" पारित हो सका था, क्योंकि जमींदारी प्रथा एक दीमक की तरह थी जो, किसान को पूरी तरह खोखला कर देती थी| किसान उत्पादन के लिए ज़मींदार से क़र्ज़ लेता था, जिसके एवज में अपनी संपाति,अपनी ज़मीन सबकुछ गिरवी रख देता था और यदि किसी कारणवश फसल अनुकूल ना हुई तो, उसके हाथ से सबकुछ चला जाता था| फिर वह क़र्ज़ उस किसान की कई पुश्तें चुकाती रह जाती थी |
इस विधेयक की तरह ही उत्तरप्रदेश राज्य में चौधरी साहब ने किसानों को पटवारी आतंक से भी मुक्ति दिलाई थी | उनके इस तरह के कड़े फ़ैसले ही उन्हें "किसानों का मसीहा" के रूप में प्रदर्शित करने लगे थे| चौधरी चरणसिंग जब अपने राज्य में होते तो अक्सर किसी गाँव में, किसी खेत या किसी किसान की समस्या सुनते ही पाए जाते थे | चौधरी साहब जब केंद्र मे वित्तमंत्री बने तो उन्होनें बजट का अधिक से अधिक हिस्सा कृषि और किसानों के हित में लगाया| उनके जनसंपर्क की कला के चलते ही वह कभी कोई चुनाव नही हारें |
उनके द्वारा किसानों के लिए किए गये इतने सारें प्रयासों के चलते ही 2001 में भारत सरकार द्वारा उनके जन्मदिवस को किसान दिवस के रूप मे मनाए जाने की घोषणा की गयी| 2008 में इसी तरह किसानों के हित में काम करते हुए भारत सरकार ने किसानों की क़र्ज़माफी का एक सराहनीय फ़ैसला लिया, जिससे बहुत हद तक किसानों को लाभ भी प्राप्त हुआ, किंतु वे किसान वंचित रह गये, जिनके क़र्ज़ गैर-सरकारी थे| विदर्भ में आत्महत्या करने वाले अधिकतर किसानों ने गैर-सरकारी क़र्ज़ लिया हुआ है, जो उनके लिए साथ ही देश की कृषि और अर्थ व्यवस्था दोनों के लिए हानिकारक साबित हुआ |
29मई 1987 में चौधरी चरणसिंह की मृत्यु हो गयी, किंतु उनके द्वारा किए गये कार्य इतने सराहनीय थे कि उनकी स्मृति में आज भी उत्तरप्रदेश में अवकाश घोषित किया जाता है | हम सबका, किसान जयंती मनाने का अर्थ यह नही है कि किसी एक दिन उन्हें याद कर लिया जाए| इसे मनाने के पीछे का मकसद यह है कि किसानों को इस देश में ये महसूस ना हो कि वह अपनी समस्याओं से लड़ने के लिए अकेले खड़े है| उनके साथ पूरा देश खड़ा है |
किसान दिवस पर होने वालें कार्यक्रम
-किसान दिवस के दिन उत्तरप्रदेश राज्य में अवकाश रहता है, क्योकि यह राज्य किसानों की सर्वाधिक संख्या लिए हुए है-इस दिन किसानों के लिए कार्य करने वाले हर एक नेता को याद किया जाता है| साथ ही उन नेताओं को सम्मानित भी किया जाता है जो वर्तमान में किसानों के हित के लिए कार्यरत है
-किसान दिवस के दिन कृषकों के लिए कई उपयोगी कार्यशालायें और सेमिनार आयोजित किए जाते है, जिससे उन्हे कृषि के विषय में और अधिक जानकारी मिल सके
-किसान दिवस के दिन कृषि में विज्ञान के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिक तरीक़ो को बताया जाता है
-इस दिन किसानों को उनके हक़ और अधिकारों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है, ताकि वह शोषण से बच सके।
To read about this article in English click here