नवरात्रि और दशहरा की पूजा जब खत्म हो जाती है तो उसके बाद पूर्णिमा पर एक काफी अहम पूजा होती है, जिसका नाम है कोजागरी लक्ष्मी पूजा। ये पूजा बंगाल, असम और ओडिशा में मुख्यत: की जाती है। कोजागरी तीन बंगाली शब्दों से बना है (की, जागे आछे) मतलब “कौन जाग रहा है”? ऐसी मान्यता है कि कोजागरी पूर्णिमां की रात साक्षात मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं और लोगों के घरों में जाकर वास करती हैं। जो लोग रात को मां का ध्यान करते हुए जागते हैं उनके घर लक्ष्मी मां वास करती हैं। कोजागरी लक्ष्मी पूजा कटाई के वक्त आती है और इसी दिन से नई फसल खाना शरु की जाती है। इस रात मां लक्ष्मी को अपने घर बुलाने के लिये लोग दरवाजे, खिड़कियां और छतों पर दिए जलाकर रखते हैं।
 

कोजागरी पूजा और व्रत

-सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें
-पूजा स्थान को साफ कर लें
-तांब अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी मां लक्ष्मी की मूर्ति रखें
- धूप, दीप जलाकर मां की अराधना करें
-पूरा दिन व्रत रखें और लक्ष्मी मां का ध्यान करें
- शाम को चंद्रमा निकलने के बाद घी के 100 दीपक जलाएं
-खीर बनाएं और उसे चांद की रोशनी में करीब 3 घंटे रखें
-खीर का प्रसाद बांटे और मां की आरती करें
 

व्रत कथा

कई साल पहले एक राजा था उसे मूर्तिकारों और शिल्पकारों के प्रति काफी उदारता थी। उनसे ऐलान किया कि किसी भी मूर्तिकार को बाज़ार में मूर्ति बेचने की ज़रूरत नहीं है, वो उनसे खुद खरीद लेंगे। रोज कोई ना कोई शिल्पकार अपनी मूर्ति राजा को देता ता। एक दिन एक शिल्पकार गरीबी की देवी “अलक्ष्मी” की प्रतिमा दे गया। राजा ने उसे पूजा कक्ष में रख दिया। उस रात राजा को रोने की आवाज़ सुनाई दी। राजा ने उठ कर देखा तो धन की देवी, लक्ष्मी रो रहीं थीं। राजा ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं अब यहां नहीं रह सकती, क्योंकि आपने गरीबी की देवी को भी स्थापित कर दिया है। ऐसे में या तो गरीबी रहेगी या धन रहेगा। ये सुनकर राजा ने “अलक्ष्मी” की प्रतिमा को बाहर फेंकने का फैसला किया, लेकिन फिुर सोचा कि ये तो शिल्पकार की कला का निरादर होगा। इसलिये उस प्रतिमा को दूसरी जगह रख दिया। राजा के ऐसा करने पर लक्ष्मी देवी समेत कई देवी देवता नराज़ होकर चले गए। राज्य में गरीबी आ गई। सब खत्म होने लगा। अंत में धर्म देव भी जाने लगे तो राजा ने उनसे गुहार लगाई और कहा कि अगर उन्होंने मूर्ति बाहर फेंक दी तो ये शिल्पकार का अपमान है। ये सुनकर धर्मराज का दिल पसीजा और उन्होंने कहा कि रानी को कहें कि वो कोजागरी लक्ष्मी पूजा और व्रत करें।  रानी ने वैसा ही किया। रानी पूरी रात नहीं सोईं और रात भर मां का जाप किया। खुश होकर “अलक्ष्मी” की प्रतिमा खुद ही पिघल गई और सभी देवी देवता वापस पहुंच गए। ना तो शिल्पकार का अपमान हुआ और ना ही कोई नाराज़। जब अन्य लोगों को ये बात पता चली तो सबने कोजागरी व्रत और पूजा की। जिसके बाद सबको फल प्राप्त हुआ।


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