जाड़े का मौसम आते ही संगीत, नृत्य तथा कई अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के चलते उड़ीसा का पूरा माहौल नई ऊर्जा और उत्साह से भर उठता है| गर्मियों की लू और बारिश की फुहारों के बाद जब साफ-सुथरा आकाश जाड़े के सुहाने मौसम का स्वागत करता है तो उड़ीसा भी अतिथियों के स्वागत के लिए तैयार हो जाता है| इस मौसम में दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखने, समझने और उसका आनंद लेने के लिए आते हैं, जो विभिन्न उत्सवों के जरिये ललित कलाओं के रूप में सामने होती है| ऐसा ही एक उत्सव है कोणार्क उत्सव|
कोणार्क के सूर्य मंदिर में कोणार्क नृत्य उत्सव मनाया जाता है, जिसमें पूरे देश के कलाकार हिस्सा लेते हैं और अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करते हैं| यह उत्सव ओडिसी, भरतनाट्यम, मोहिनीअट्टम, कथककली, मणिपुरी, कथक और छाऊ जैसे भारतीय नृत्यों के साथ मनाया जाता है| यह उत्सव लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाला होता है| इस मौके पर एक आर्टिस्ट कैंप भी लगाये जाते हैं जो उड़ीसा के मंदिरों के वास्तुशिल्प का शानदार नमूना पेश करता है| अगर रेत पर चहलकदमी करते हुए, सूर्य मंदिर के नायाब शिल्प को निहारते हुए देश के पारंपरिक नृत्यों का मजा लेना हो तो इससे बेहतर जगह और कोई नहीं|
कोणार्क नृत्य महोत्सव क्यो मनाया जाता है ?
कोणार्क के सूर्य मंदिर भारतीय शिल्प के इतिहास की एक बेजोड़ दास्तान हैं| यह फेस्टिवल इस विरासत को महसूस करने और सहेजने का एक शानदार जरिया है| इन अद्भुत मंदिरों की पृष्ठभूमि में समुद्र की लहरों की गर्जना के बीच खुले मंच में होने वाला यह महोत्सव भारत के शास्त्रीय और पारंपरिक नृत्य-संगीत की जादुई छवि पेश करता है| महोत्सव की लोकप्रियता से पर्यटक यहां खींचे चले आते हैं जिससे भीड़ बढ़नी लाजमी है| पर्यटकों को कोई परेशानी ना हो इसके लिए उड़ीसा पर्यटन विकास निगम विशेष प्रकार की व्यवस्था करता है| साथ ही साथ पर्यटकों को लुभाने के लिए विभिन्न पैकेजों की भी व्यवस्था की जाती है|कोणार्क नृत्य महोत्सव के कार्यक्रम
कोणार्क महोत्सव में कला और संस्कृति प्रेमियों के लिए विविध कार्यक्रम पेश किए जाते हैं| पांच दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम को देखकर पर्यटक का मन यहां बार-बार आने को होता है| कथकली और ओडिसी नृत्य के कार्यक्रमों का जो मजा यहां आकर लिया जाता है उनका बयां करना आसान नहीं है बल्कि उनको तो यही आकर देखा जा सकता है| भरतनाट्यम की प्रस्तुति हो या मोहिनी अट्टम सभी तरह के नृत्य इस महोत्सव के दौरान पेश किए जाते हैं| उड़ीसा राज्य के कला, संस्कृति के प्रसार-प्रचार के क्षेत्र में कोणार्क महोत्सव की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहती है| इस महोत्सव में राज्य तथा राज्य के बाहर से कई प्रतिष्ठित कलाकार अपने कला का प्रदर्शन करते हैं| हर साल कोणार्क महोत्सव में ओडिसी, भारत नाट्यम, मोहिनी अट्टम, कुचीपुड़ी, मणिपुरी, कत्थक नृत्य आदि प्रस्तुत किया जाते हैं| अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कलाकार भी इस महोत्सव में शामिल होने की भरपूर कोशिश करते हैं| इसके अलावा हर दिन शाम के समय चन्द्रभागा किनारे बालू पर कला प्रदर्शनी आयोजित की जाती है| कोणार्क नृत्य और संगीत उत्सव के दौरान ओड़िशी नृत्य, आन्ध्र नाट्यम, बिहू नृत्य, कथक नृत्य, गोटीपुअ नृत्य, संबलपुरी नृत्य के साथ शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम पेश किए जाते हैं|कोणार्क के सूर्य मंदिर से जुड़ी कहानी
कोणार्क मंदिर का निर्माण गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बारह सौ छत्तीस से बारह सौ चौसठ ईस्वी पूर्व में करवाया गया था| इस मंदिर के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया है तथा पत्थरों पर उत्कृष्ट नक्काशी भी की गई है जो इसकी सुंदरता को बढाते हैं| संपूर्ण मंदिर को बारह चक्रों वाले सात घोड़ों द्वारा खींचते हुए सूर्य देव के रथ के रूप में निर्मित किया गया है| कलिंग शैली से निर्मित कोणार्क मंदिर सूर्य देव के रथ रूप में बनाया गया है|कोणार्क सूर्य मंदिर सूर्यदेव को समर्पित रहा है| कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में कई धार्मिक और ऐतिहासिक साक्ष्य उपल्ब्ध हैं जो इसके महत्व एवं प्रतिष्ठा के बारे में दर्शाते हैं| इस स्थान के एक पवित्र तीर्थ होने का उल्लेख ब्रह्मपुराण, भविष्यपुराण, सांबपुराण, वराहपुराण आदि में मिलता है|
धार्मिक कथा अनुसार जिसमें कहा गया है की भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को एक ऋषि द्वारा दिए गए श्राप से कोढ़ हो गया| इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए साम्ब ने मित्रवन के समीप चंद्रभागा नदी के सागर संगम स्थल पर स्थित कोणार्क में सूर्य देव को प्रसन्न करने हेतु बारह वर्षों तक कठोर तपस्या की थी| उसकी भक्ति को देखकर सूर्य देव प्रसन्न हुए तथा उसे इस कोढ़ रोग से मुक्त होने का आशिर्वाद दिया| साम्ब ने सूर्य देव के सम्मान में एक मंदिर का निर्माण करने का निश्चय किया| कुछ समय पश्चात जब साम्ब चंद्रभाग नदी में स्नान कर रहे थे तो उन्हें सूर्यदेव की मूर्ति प्राप्त हुई|
कहा जाता है यह मूर्ति श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी| साम्ब ने मित्रवन एक मंदिर में इस मूर्ति को स्थापित किया और तभी से यह स्थल पवित्र माना जाने लगा| मान्यता है कि रथ सप्तमी को सांब ने चंद्रभागा नदी में स्नानकर मूर्ति प्राप्त की अत: इस तिथि को अनेक लोग वहाँ स्नान एवं सूर्य देव की पूजा करने हेतु अवश्य जाते हैं|
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