भारतीय हिंदू मान्यतानुसार पूरे साल में 12 राशियों की तरह बारह संक्रांतियां होती है जो वर्ष के अगल-अलग महिनों में पड़ती है। हिन्दू मान्यताओं में सभी संक्रातियों का विशेष महत्व होता है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो वह उस राशि की संक्रांति होती है। सूर्य के मकर राशि से कुम्भ राशि में संक्रमण को ‘कुम्भ संक्रांति’ कहते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में किये गए स्नान का और दान आदि धार्मिक कार्यों का विशेष महत्त्व माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पावन नदियों के पवित्र जल में डुबकी लगाने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। कुम्भ संक्रांति हिन्दुओ के लिए बहुत ही ख़ास दिन होता है इस दिन सभी देवताओ का पवित्र नदियो गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, शिप्रा इत्यादि सभी नदियो का संगम स्थान होता है इस दिन सभी भक्त इन सभी पवित्र नदियो में वास करते है | कुम्भ संक्रांति का पर्व जिसमे की कुम्भ मेला लगता है यह प्रत्येक 12 साल में प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन मे क्रमशः लगता है। इन सभी स्थानों में ‘कुम्भ मेला’ आयोजित किया जाता है। कुम्भ संक्रांति के दिन सूर्योदय होते ही हज़ारों-लाखों श्रद्धालु पवित्र व पूजनीय नदियों के तटों पर एकत्रित हो जाते हैं। स्नान के पश्चात् श्रद्धालु घाट पर स्थित मंदिरों में भगवान् के दर्शन करते हैं और नदी के देवी रूप की पूजा-उपासना करते हैं। उत्तर भारत में, इस दिन प्रयाग, इलाहाबाद में पवित्र संगम में स्नान का विशेष महत्त्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा के जल में स्नान करने से सभी पाप दूर हो जाते हैं, रोगों का नाश होता है और साथ ही जीवन-मरण के चक्र से भी छुटकारा मिल जाता है।

कुंभ संक्रांति

कुंभ संक्रांति का महत्व

कुंभ संक्राति का बहुत महत्व है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। केरल में इस पर्व को ‘मासि मासं’ के नाम से जाना जाता है। वहाँ इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में संक्रमण स्नान करते हैं। पश्चिम बंगाल में, इस दिन माँ गंगा (नदी) की उपासना का विशेष महत्त्व माना जाता है; धार्मिक मान्यतानुसार कुम्भ संक्रांति के दिन गंगा स्नान और गंगा नदी की पूजा व अर्चना से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। भारत के पूर्वी भागों में इसी दिन से कुम्भ मास का प्रारम्भ होता है। इस दिन लोग विशेष रूप से गायों की पूजा करते हैं और उन्हें आदर सहित भोजन भी कराते हैं। सी मान्यता है कि कुंभ संक्रांति के इस दिन गरीबों को दान, ब्राम्हणों को भोजन कराने से पुण्य फल प्राप्त होते हैं, किंतु यदि इस दिन गाय को भोजन कराया जाए तो भगवान विष्णु के चरणो में स्थान प्राप्त होता है। गाय का पूजन पुण्यफलों को प्रदान करने वाला एवं दान करना अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्रदान करने वाला होता है। सामथ्र्य के अनुसार इस दिन वस्त्र आदि का दान भी किया जा सकता है। साथ ही श्रद्धालुजन इस दिन भोजन, वस्त्र और अन्य उपयोगी वस्तुओं का ब्राह्मणों और ज़रूरतमंदों को दान भी करते

कुंभ संक्रांति से जुड़ी कथा

कुम्भ मेला 629ईसा पू. से आयोजित किया जाता है यह राजा हर्षवर्धन के समय की बात है उस समय राजा हर्षवर्धन का शासन था भगवद पुराण में भी कुम्भ मेले की अवधि के दौरान कुम्भ संक्रांति का उल्लेख आता है सभी भक्त कुम्भ संक्रांति के दिन गंगा जैसे पवित्र नदी में स्नान करते है भक्त हर कुम्भ संक्रांति पर जो शहर पवित्र नदियो के बीच से गुज़रते है वह जाकर स्नान करते है जैसे हरिद्वार में में गंगा, इलाहाबाद में यमुना, उज्जनीं में शिप्रा, नासिक में गोदावरी जैसे सभी पवित्र नदियो के संगम से वह जाकर स्नान करते है |

कुंभ संक्रांति समारोह

  • कुंभ संक्रांति के दिन दान-पुण्य की बहुत महिमा होती है। भक्त इस दिन अन्य सभी संक्रांतियो की तरह गरीबों एवं जरुरतमंदो में दान-पुण्य करते हैं. वह खाद्य वस्तुओं, कपड़े और पैसों को अपनी क्षमातनुसार ब्राह्मणों को दान स्वरुप देते हैं। सभी भक्तो को अपने सुख समृद्ध जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं। जो व्यक्ति गंगा नदी में स्नान नही कर सकते है वह व्यक्ति अपने पापो को दूर करने के लिए घर में ही गंगा दल डालकर स्नान करते हैं।
  • कुंभ संक्रांति पर गंगा में स्नान करने पर महसूस होने वाली शांति बहुत आनंददायनि होती है। भक्त कुंभ संक्रांति पर जल्दी उठते हैं और देवी गंगा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए स्नान करने घांटो पर जाते हैं।
  • कुंभ संक्रांति के अवसर पर पूर्वी भारत में उत्सव विशेष हैं। मलयालम कैलेंडर में, कुंभ संक्रांति कुंभ मसाम की शुरुआत को चिह्नित करती है। यह त्यौहार मलयालम कैलेंडर में मासी मसाम के रूप में जाना जाता है। कुंभ संक्रांति पश्चिम बंगाल में फाल्गुन मास की शुरुआत का प्रतीक है। इस अवसर पर नदियों में लगाई गई पवित्र डुबकी को संक्रामन स्नान के नाम से जाना जाता है।
  • कुंभ संक्रांति पर गंगा में स्नान हमेशा शुभ माना जाता है। अगर यह स्नान कुंभ संक्रांति पर किया जाता है तो इस स्नान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। कुंभ संक्रांति पर गंगा में स्नान करने वाले भक्त पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। गोदावरी, शिप्रा और संगम समेत अन्य पवित्र नदियों में इस दिन समान महत्व है और इन नदियों में स्नान करने वाले भक्तों को एक खुशहाल जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए भक्त दूर-दूर से इस दिन कुंभ मेले में शामिल होने एंव कुंभ संक्राति का स्नान करने आते हैं।
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