पहली कथा
लोहड़ी को लेकर एक कथा बहुत प्रचलित है वो है दुल्ले भट्टी वाले की। बच्चे जब घर घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं तो दुल्ले भट्टी वाले की कहानी सुनाते हैं (सुंदर मुंदरिये, तेरा कौण बचारा, दुल्ला भट्टी वाला, दुल्लैं ती बियाई...) अकबर के जमाने में "दुल्ला भट्टी" नाम का एक डाकू हुआ करता था, जिसके नाम का आतंक ही लोगो को डराने के लिए काफ़ी था| दुल्ला भट्टी गरीबों का मसीहा माना जाता था। अकबर के शासन के दौरान ग़रीब और कमज़ोर लड़कियों को अमीर लोग गुलामी करने के लिए बलपूर्वक बेच देते थे| इसी दौर में सुंदरी और मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं। लड़कियों का चाचा बहुत बुरा था और वो उन्हें पैसों के लिये बेचना चाह रहा था। दोनो बच्चियों ने दुल्ला भट्टी वाले को गुहार लगाई। तब दुल्ले ने अपने बल से दोनो बच्चियों को दुशमनों के चंगुल से छुड़ाया और फिर अच्छे लड़के ढूंढ कर जंगल में ही आग जलाई और दोनो की सादी करवाई। कन्यादान करने का वक्त आया तो दुल्ले ने बच्चियों का पिता बनकर उनका कन्यादान किया। शादी के बाद शगुन देने के लिये उसके पास कुछ नहीं था तो उसने एक सेर शक्कर लड़कियों की झोली में डालकर उन्हें विदा किया। तभी तो बच्चे भी लोहड़ी मांगते वक्त गाते हैं (दुल्लैं ती बियाई… सेर शक्कर पाई..)2) लोहड़ी के दिन माताएं अपनी विवाहिता बच्चियों को गुड़, तिल, रेवड़ी, मूंगफलियों के साथ कुछ गर्म कपड़े भेजती हैं। माना जाता है कि जब दक्ष प्रजापति ने अपने दामाद भगवान शिव का अपमान किया और पुत्री सती का निरादर किया तो क्रोधित सती ने आत्मदाह कर लिया। इसके बाद दक्ष को इसका बड़ा दंड भुगतना पड़ा। दक्ष की गलती को सुधारने के लिए ही माताएं लोहड़ी के मौके पर पुत्री को उपहार देकर दक्ष द्वारा किए अपराध का प्रायश्चित करती हैं।
