मकर ज्योति

दक्षिण भारत में मकर संक्रांति के त्योहार को मकर ज्योति के नाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारतीय राज्य केरल में पेरियार टाइगर रिज़र्व के ऊपर एक पहाड़ पर स्थित भगवान अयप्पा को समर्पित सबरीमला मंदिर में हर साल मकर संक्रांति के दिन ये उत्सव मनाया जाता है। मकरविलक्कु सीजन के 41 दिन लंबे सबरीमाला तीर्थयात्रा का अंत मकरज्योति नाम के एक नोवा के रूप में होता है। तीर्थयात्रियों द्वारा तारे की पूजा करने के लिए कई अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दौरान मकरज्योति नाम के तारे की पूजा की जाती है. मुख्य अनुष्ठान हर साल मकर सक्रांति पर किए जाते हैं। इस अवसर का गवाह बनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। यह सभा देश का दूसरा सबसे बड़ा आयोजन है। यह दृढ़ता से माना जाता है कि इस शुभ ज्योति के दर्शन से भक्तों को सौभाग्य और भगवान का आशीर्वाद मिलता है।

ये उत्सव अपने आप में इसलिए और दर्शनीय हो जाता हैं क्योंकि इस दौरान भगवान अयप्पा के हज़ारों भक्तों की आंखें आसमान में मकरज्योति तारे को देखने के लिए ललायित रहती है। मकरज्योति सूरज के बाद दूसरा सबसे चमकीला तारा है जो हमारे आसमान में दिखता है। इस महान दृश्य और शुभ घटना का गवाह बनने के लिए लगभग एक मिलियन के करीब आए भक्तों का झुंड हर साल लगातार बढ़ रहा है। मकरविलक्कु को अग्नि की संज्ञा देने का अनुष्ठान मकरज्योति के प्रतीक के रूप में किया जाता है, जो आकाशीय प्रकाश है। मंदिर के गर्भगृह में होने वाली पूजा ब्राह्मण पद्धति से होती है. पर्वत पर होने वाली पूजा में प्राचीन जनजातीय व्यवस्था की मकराविल्लकू परंपरा के तहत पूजा की जाती है।

मकर ज्योति की महत्ता

स्वामी अयप्पा संन्यासी या योगी हैं लेकिन मकर संक्रांति के दिन वो एक राजकुमार के रूप में दर्शन देते हैं. उन पर आभूषण सजाए जाते हैं. वो विष्णु के अवतार हैं, वो ही रक्षक हैं और भक्षक भी. आज के दिन राजा अपने बेटे को राजकुमार के रूप में देखना चाहते हैं तो वो आभूषणों से श्रंगार करते हैं।" दक्षिण भारतियों के अनुसार मकरण मलयालम कैलेंडर का पहला महीना है मकर संक्रांति के दिन सूर्य उतर की ओर आता है इसलिए इसे उत्तरयायन कहते हैं।
मकर ज्योति

इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह-रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं। जब-जब ये रोशनी दिखती है इसके साथ शोर भी सुनाई देता है। भक्त मानते हैं कि ये देव ज्योति है और भगवान इसे जलाते हैं। मंदिर प्रबंधन के पुजारियों के मुताबिक मकर माह के पहले दिन आकाश में दिखने वाले एक खास तारा मकर ज्योति है। कहते हैं कि अयप्पा ने शैव और वैष्णवों के बीच एकता कायम की। उन्होंने अपने लक्ष्य को पूरा किया था और सबरीमाल में उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

मकर ज्योति की कथा

मकर ज्योति का उत्सव मनाए जाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में गोद लिया। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और वो महल छोड़कर चले गए। आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अय्यप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जो नब्बे किलोमीटर की यात्रा तय करके तीन दिन में सबरीमाला पहुंचती है। पहाड़ी की कांतामाला चोटी पर असाधारण चमक वाली ज्योति दिखलाई देती है।

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