कौन हैं भगवान महावीर?
महावीर के जन्मदिवस को लेकर काफी मतभेद है। श्वेजतांबर जैनियों का मानना है कि उनका जन्म् 599 ईसा पूर्व में हुआ था, वहीं दिगंबर जैनियों का मत है कि उनके आराध्यज 615 ईसा पूर्व में प्रकट हुए थे। जैन मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म बिहार के वैशाली जिले के कुंडलपुर के शाही परिवार में हुआ था। बचपन में महावीर का नाम 'वर्धमान' था। माना जाता है कि वे बचपन से ही साहसी, तेजस्वी और अत्यंत बलशाली थे। इसी वजह से लोग उन्हें महावीर कहने लगे। उन्होंने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, इसलिए इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है। महावीर की माता का नाम 'त्रिशला देवी' और पिता का नाम 'सिद्धार्थ' था। इनके माता-पिता पारसव के महान अनुयायी थे। इनका नाम महावीर रखा गया, जिसका अर्थ है महान योद्धा; क्योंकि इन्होंने बचपन में ही भयानक साँप को नियंत्रित कर लिया था। इन्हें सनमंती, वीरा और नातापुत्ता (अर्थात् नाता के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है। इनकी शादी के संदर्भ में भी बहुत अधिक मतभेद है, कुछ लोगों का मानना है कि, ये अविवाहित थे, वहीं कुछ लोग मानते हैं कि, इनका विवाह यशोदा से हुआ था और इनकी एक पुत्री भी थी, जिसका नाम प्रियदर्शना था। महावीर के पास जब सुख- वैभवपूर्ण जीवन था तो उन्होंने मात्र 30 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया और तपस्या में लीन हो गए। इन्होंने बहुत अधिक कठिनाईयों और परेशानियों का सामना किया। दीक्षा लेने के बाद महावीर ने साढ़े 12 सालों तक कठोर तपस्या की। फिर वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी। यह महावीर की श्रद्धा, भक्ति और तपस्या का ही परिणाम था कि वह जैन धर्म को फिर से प्रतिष्ठित करने में सफल हो पाए। यही वजह है कि जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है। इनके दर्शन के पांच यथार्थ सिद्धान्त अहिंसा, सत्य, असत्ये, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह थे। इनके शरीर को 72 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त हुआ और इनकी पवित्र आत्मा शरीर को छोड़कर और निर्वाण अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करके सदैव के लिए स्वतंत्र हो गई। इनकी मृत्यु के बाद इनके शरीर का क्रियाक्रम पावापुरी में किया गया, जो अब बड़े जैन मंदिर, जलमंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।महावीर स्वामी के सिद्धांत
महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का है। उन्होंने अपने प्रत्येेक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है। इन सबमें अहिंसा की भावना सम्मिलित है। यही वजह है कि जैन विद्वानों का प्रमुख उपदेश यही होता है- 'अहिंसा ही परम धर्म है’। अहिंसा ही परम ब्रह्म है। अहिंसा ही सुख शांति देने वाली है। अहिंसा ही संसार का उद्धार करने वाली है। यही मानव का सच्चा धर्म है। यही मानव का सच्चा कर्म है।भगवान महावीर की शिक्षाएं
भगवान महावीर ने मोक्ष के संदेश को दुनिया में फैलाया और कई अनुयायियों को दिया। महावीर ने अहिंसा का प्रचार किया, किसी भी तरह की हत्या को प्रतिबंधित किया। भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में छोटे से छोटे जीव तक की हत्या ना करने की बात कही। ऐसा करने से साफ मना किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को तपस्या करने और अत्याचार न करने के माध्यम से मोक्ष का मार्ग दिखाया। उन्होंने गरीबों को धन, कपड़े और अनाज दान करने की सलाह दी। उन्होंने मोक्ष के पांच मार्ग बतलाएं।सत्य ― सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
अहिंसा – इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
अचौर्य - दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।
अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
ब्रह्मचर्य- महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
कैसे मनाई जाती है महावीर जयंती?
महावीर जयंती को महावीर स्वामी जन्म कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। जैन समुदाय का यह सबसे प्रमुख पर्व है। महावीर जयंती पर, जैन मंदिर झंडे से सजाए गए जाते हैं। महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद मूर्ति को एक रथ पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। इस यात्रा में जैन धर्म के अनुयायी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। भक्त तीर्थंकर को दूध, चावल, फल, धूप, दीपक और पानी की पेशकश करते हैं। समुदाय के कुछ वर्ग भी भव्य जुलूस में भाग लेते हैं। पुण्य के मार्ग का प्रचार करने के लिए व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं। लोग प्रार्थना करते हैं और प्रार्थना करते हैं। गायों को वध से बचाने के लिए दान एकत्र किए जाते हैं। देश के सभी हिस्सों के तीर्थयात्री इस दिन गुजरात के गिरनार और पलिताना में प्राचीन जैन मंदिरों में जाते हैं। भारत में गुजरात और राजस्थारन में जैन धर्म को मानने वालों की तादाद अच्छी। खासी है। यही वजह है कि इन दोनों राज्यों में धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है और विशेष आयोजन किए जाते हैं। कई जगहों पर मांस और शराब की दुकानें भी बंद रहती हैं।To read this Article in English Click here