
मौनी अमावस्या पर गंगा स्नान का महत्व
माघ महीने में गंगा में स्नान करने का बहुत महत्व है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है इसी महीने में इलाहाबाद के संगम और सभी गंगा के किनारों पर श्रद्धालु स्नान करते हैं। जिन लोगों को गंगा में स्नान का मौका नहीं मिल पाता वह घर में रहकर भी नहाने के पानी में कुछ बूंद गंगाजल डालकर स्नान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन ही सागर मंथन के समय भगवान धन्वंतरी अमृत कलश लेकर निकले तो अमृत की एक बूंद संगम में गिर गई। इसलिए मौनी अमावस्या के दिन संगम स्नान का विशेष महत्व है। इलाहाबाद के संगम में तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है जिसमें स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में इस दिन को मौन रहकर पूजा-पाठ करने से अत्यधिक लाभ मिलता है।मौनी अमावस्य पर मौन रहने का महत्व
मौनी अमावस्या के नाम से ही स्पष्ट है कि इस दिन चुप रहकर यानि मौन रहकर स्नान किया जाता है। यह दिन मन पर नियंत्रण रखना सिखाता है क्योंकि मन बहुत तेज गति से दौड़ता है, यदि मन के अनुसार चलते रहें तो यह हानिकारक भी हो सकता है। इसलिये अपने मन रूपी घोड़े की लगाम को हमेशा कस कर रखना चाहिये। मौनी अमावस्या का भी यही संदेश है कि इस दिन मौन व्रत धारण कर मन को संयमित किया जाये। मन ही मन ईश्वर के नाम का स्मरण किया जाये उनका जाप किया जाये। यह एक प्रकार से मन को साधने की यौगिक क्रिया भी है। मान्यता यह भी है कि यदि किसी के लिये मौन रहना संभव न हो तो वह अपने विचारों में किसी भी प्रकार की मलिनता न आने देने, किसी के प्रति कोई कटुवचन न निकले तो भी मौनी अमावस्या का व्रत उसके लिये सफल होता है। सच्चे मन से भगवान विष्णु व भगवान शिव की पूजा भी इस दिन करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि मन को शांत रखने के लिए माघ महीने की इस अमावस्या के दिन मौन रहा जाता है। जैसे साधू-संत मौन रहकर तप किया करते थे, भगवान को याद किया करते थे, ठीक उसी प्रकार कलयुग में ईश्वर को याद करने के लिए इस अमावस्या पर मौन रहा जाता है।मौनी अमावस्या का महत्व
माघ कृष्ण अमावस्या के विषय में मान्यता है कि इसी दिन द्वापर युग का प्रारम्भ हुआ था। जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इसी दिन भगवान मनु महाराज का जन्म हुआ था। इसके लिए ब्रह्मा जी के मनु तथा शतरुपा को उत्पन्न करके सृष्टि उत्पन्न करने का आदेश दिया था। इसी कारण ब्रह्मा जी की आज्ञा से मनु महाराज ने शतरूपा सहित पृथ्वी के प्राणियों की रचना की थी। इसलिए इसे दिन का अधिक महत्व है।यह दिन पूर्ण धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है और यदि यह पवित्र कुंभ मेला के दौरान होता है, तो इस दिन भक्तों और संतों के लिए एक विशेष आयोजन किया जाता है, इलाहाबादके त्रिवेणी संगम में भक्तों का स्नान करने का मेला लगता है।
मौनी अमावस्या का दिन भक्तों और संतों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि वे देवी गंगा से आशीर्वाद मांगने के लिए स्नान घाटों में जाते हैं। अनुष्ठान स्नान के बाद, भक्त घाट पर स्थित विभिन्न मंदिरों में दर्शन करते हैं। अनुष्ठान एवं आरती में सम्मिलित होते हैं। इस दिन भक्त अपने कल्याण के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में मौनी अमावस्या को विभिन्न नामों से मनाया जाता है। इसे आंध्र प्रदेश में चोलंगी अमाव के नाम से जाना जाता है। भक्त दूर-दूर से इस दिन गंगा एवं अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं।
मौनी अमावस्या की कथा
मौनी अमावस्या से जुड़ी के पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती एवं सात पुत्र एवं एक पुत्री के साथ रहता था। उसकी पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों का विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान किसी पंडित ने पुत्री की जन्मकुण्डली देखी और ऐसी बात बताई जिसे जान सभी चकित रह गए। पंडित के अनुसार देवस्वामी की पुत्री की जन्म कुण्डली में एक दोष था, जिसके कारण उसकी कन्या विधवा हो जाएगी। इस दोष का हल निकालने का प्रश्न आया तब पंडित ने बताया कि सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। सोमा एक धोबिन है और उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो। तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। जिस पेड़ की छाया में वे बैठे थे उसके ठीक ऊपर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में गिद्ध के बच्चे थे, जो दोनों भाई-बहन की बातों को ध्यान से सुन रहे थे। शाम होने पर जब उन बच्चों की मां वापस लौटी तो उन्होंने भोजन नहीं किया। वे मां से बोले, नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और दोनों भाई-बहन को भोजन भी दिलाया और साथ ही सागर पार कराने का वचन भी दिया। गिद्ध मां की मदद से दोनों भाई-बहन अगले दिन सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दिए गए। वहां उन्हें सोमा का घर भी मिल गया, लेकिन उसे प्रसन्न करने हेतु दोनों भाई-बहन से छिपकर ही कुछ योजना बनाई। वे दोनों नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़कर लीप देते थे। एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है? सोमा से झूठी प्रशंसा हासिल करने हेतु सभी ने कहा कि हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा? किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। इसलिए एक रात उसने जागकर उन लोगों को खोजने की कसम खाई जो ऐसा कर रहा है। तब अपनी आंखों से उसने उन दो भाई-बहन को यह कार्य करते हुए देखा। ऐसा करने का कारण पूछने पर भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा कि मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इन्तजार करना। और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरन्त अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। जिसके बाद तुरन्त ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। अंतत: सके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे।मौनी अमावस्या की पूजा विधि
1. मौनी अमावस्या के दिन सूर्य उगने के साथ उठे सबसे पहले गंगा या फिर घर में नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें। स्नान करते वक्त मन में विष्णु जी का ध्यान करते रहें।2. स्नान के बाद रोज़ाना की तरह पूजा करें और 108 बार तुलसी परिक्रमा करें।
3. पूजा के बाद दान के लिए अपनी इच्छा के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन, गाय, भूमि और स्वर्ण का दान करें। शास्त्रों के अनुसार इस दिन दान करने से पुण्य मिलता है। ठीक उसी तरह जिस प्रकार सतयुग में पुण्य तप से मिलता था, द्वापर में हरि भक्ति से मिलता था और त्रेता में ज्ञान से मिला करता था। इसीलिए मौनी अमावस्या के दिन दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन अन्न, वस्त्र, धन, गाय, भूमि और स्वर्ण दान के रूप में दिया जाता है। साथ ही तिल भी दान किया जाता है। इसके अलावा सुबह का गंगा स्नान करते वक्त इस मंत्र का जाप किया जाता है।
4. सुबह के स्नान से ही मौन रहें और मन में ( गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।) मंत्र का जाप करें। स्नान करते समय तक यदि मौन रहकर स्नान किया जाए तो इसका विशेष फल प्राप्त होता है।