कहा जाता है कि हज़रत मोहम्मद का जन्म फतिमिद राजवंश के दौरान 11वीं शताब्दी को हुआ था | इस्लाम धर्म के ही सिया समुदाय इस त्योहार को इस्लामिक कैलेंडर के 17वें महीनें मे मनाते है | कुछ समय पहले तक यह त्योहार मुख्य रूप से सिया समुदाय के लोग ही मानते थे, किंतु 12वीं शताब्दी आते तक इसे सुन्नी समुदाय ने भी अपना लिया था और 15 शताब्दी तक इस्लाम मानने वाले संभवतः सभी समुदाय अपना चुके थे | 20वीं शताब्दी में तो इस त्योहार को राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर दिया गया पर इसे अब इस्लाम के लगभग सभी समुदाय मनाने लगे है |
मिलाद-उन-नबी और भारत
इस्लाम की सबसे पवित्र मानी जाने वाली किताब "क़ुरान" हज़रत मोहम्मद द्वारा ही पूरी दुनिया मे लाई गयी थी और इसी रोज़ हज़रत मोहम्मद के जन्म का दिन था | भारत और उसके आसपास के कई देशों मे मिलाद-उन-नबी को "बरवाफात" के नाम से जानते है | बरवाफात का मतलब "आफ़त के 12 दिन"| कहते है कि हज़रत मोहम्मद 12 दिनों के लिए बीमार हो गये थे | मिलाद-उन-नबी के इस त्योहार को सिया,सुन्नी और इस्लाम के अन्य समुदाय मनाते है किंतु इस्लाम धर्म के दो समुदाय वहाबी और सलफी नही मानते है |मिलाद-उन-नबी कैसे मनाया जाता है ?
मिलाद-उन-नबी के रोज़ इस त्योहार को मनाने वाले लोग उपवास करते है | साथ ही अपने समुदाय के सभी लोगो के साथ मिलकर जन उत्सव मनाते है | इस दिन कई जगहों पर धार्मिक गान और सामाजिक सम्मेलन किए जाते है, साथ ही इस्लाम के अनुयायी अपने घर आदि की साफ-सफाई करते है| मज़्ज़िद में जाकर नमाज़ अता करके, लोग ग़रीबो को भोजन बाँटते है | इसतरह से यह त्योहार पूरा होता है |To read about this festival in English click here