हिंदू पंचांग के अनुसार मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष माह में शुक्लपक्ष के ग्याहरवें दिन आती है,इसलिए इसे एकादशी कहा जाता है |

पश्चिमी पंचांग के अनुसार यह नवंबर या दिसम्बर महीने मे आती है | हिंदू धर्म के अनुयायी उसमे भी वैष्णव संप्रदाय या भगवान विष्णु की उपासना करने वालें इस दिन को सबसे मंगल तिथि में से एक मानते है | महाभारतकाल में भगवान विष्णु के अवतार कहे जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर ही पांडववंश के राजकुमार अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था,जो आगे चलकर हिंदुओं की सबसे पवित्र क़िताब बन गयी |

उत्पत्ति और महत्व

जब अर्जुन महाभारत के युद्ध मे थे,तब वह एक ऐसी उलझन मे फँसें थे, जिसमे उन्हें अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करना था | इस बात से परेशान होकर अपने सारथी भगवान श्रीकृष्ण से रथ दोनो सेनाओं के मध्य ले जाने का अनुरोध कर, वहाँ पहुचकर अर्जुन ने अपनी व्यथा श्रीकृष्ण को बताई कि मुझे अपने ही सगे-संबंधियों पर शस्त्र उठाना पड़ेगा | तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को 700 श्लोक सुनाए थे | वहीं श्लोकों की क़िताब "भगवत गीता" के नाम से जानी जाती है | भगवान श्रीकृष्ण द्वारा जिस दिन ये श्लोक अर्जुन को सुनाए गये थे,वह दिन भी एकादशी का था इसलिए यह मोक्षदा एकादशी के नाम से जानी जाती है

मोक्षदा एकादशी

पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मांड पुराण मे मोक्षदा एकादशी से जुड़ी एक कहानी यह भी है, जिसे श्रीकृष्ण ने पांडवों के राजा युधीष्टिर को सुनाई थी | चमपकनगर नाम के शहर में वैखानस नाम का एक राजा हुआ करता था | राजा अपने राज्य संचालन मे पूर्णतः योग्य था | समस्त प्रजा उसके राज्य मे सुखपूर्वक निवास करती थी | किंतु एक रात उसने सपने मे अपने पिता को नर्क मे देखा, जिससे वह चिंतित और भयभीत हो गया | उसने अलगे ही दिन सभा बुलाकर अपने मंत्रियों और ब्राह्मणगणो से अपने सपने के विषय मे चर्चा की और यह पूछा कि यदि मेरे राज्य मे सब कुछ कुशल-मंगल है,तो मुझे अपने पिता के लिए ऐसा सपना क्यों आया?

सभा मे बैठे एक विद्वान ने उन्हे पर्वत मुनि नाम के ज्ञानी के बारें में जानकारी दी और कहा कि आपके प्रश्नों का उत्तर वह अवश्य दे पाएँगे | राजा, मुनि के पास पहुँचकर अपनी पूरी व्यथा सुना दी | मुनि,राजा की बात सुनकर जवाब में यह बोले कि तुम्हारे पिता अपने पिछलें जन्म मे किए दुष्कर्मो की सज़ा नर्क मे भुगत रहे है | राजा, मुनि की बात सुनकर व्यथित हो गया और कुछ समय बाद खुद को संयमित करते हुए मुनि से कहा,आप कृपा करके उस दुष्कर्म से मुक्त होने का उपाय बता दीजियें | मुनि ने राजा से कहा कि मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष में जो एकादशी आएगी उसमे पूरे विधि-विधान के साथ मोक्षदा एकादशी का व्रत करें | राजा ने पर्वत मुनि के बताए अनुसार पूरी विधि से व्रत किया, जिससे उसके पिता को मोक्ष प्राप्त हुआ और वह स्वर्ग को प्राप्त हुए |

व्रत की विधि

मान्यताओं के अनुसार बहुत से वैष्णव इस व्रत को पूरे 24 घंटे का रखते है, किंतु जो लोग इसे नया आरंभ करते है,वें दूध और दूध से बने पदार्थ और फल आदि का सेवन कर के यह व्रत कर सकते है | इस व्रत में माँसहार,तामसी प्रवृति के भोज पदार्थ जैसे प्याज-लसुन, दाल, चावल, आदि का सेवन करना वर्जित है | इस उपवास के दिन उपवासक को अधिक से अधिक मौन रखना चाहिए, जिससे वाणी मे नियंत्रण रहे और पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए |

माना जाता है कि इस व्रत के दिन बेल की पत्तियाँ या फल खाना अनिवार्य है | दशमी की दिन ही इस व्रत को करने के पहले चावल का उपभोग नही करना चाहिए | एकादशी के दिन प्रातः मिट्टी के लेप से स्नान करके मंदिर जाकर पूजा करना चाहियें | उसके बाद घर आकर विष्णुपाठ करना चाहियें | पूरे दिन,मन भगवान मे लगाकर संध्यापूजन करके व्रत पूरा करना चाहियें | इस व्रत का पालन करने से प्राणीमात्र को मोक्ष की प्राप्ति होती है |

श्रीकृष्ण द्वारा गीता मे दिए गये उपदेशों का मूल भी मोक्ष की प्राप्ति है | इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी या गीता जयन्ती भी कहते है |

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