खुद के लिए ना जी कर बच्चों के लिए जीती है
वो और कोई नहीं बस मां ही होती है।।
वाकई मां वो होती है जो अपना हर दर्द, अपनी हर तकलीफ को नजर अन्दाज़ कर केवल अपने परिवार, अपने बच्चों के लिए जीती है। मां का स्थान भगवान से भी उंचा माना गया है क्योंकि केवल वो मां ही होती है जो नौ महीने अपने बच्चे को गर्भ में रख तकलीफ, दर्द सहती हुई उसे जन्म देती है।
बच्चे की रग-रग से मां वाकिफ होती है क्योंकि जब हम मां के गर्भ में होते हैं उसे हमारी एक-एक हरकत का एहसास होता है। हमें क्या खाने से ताकत मिलेगी, क्या हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा यह हमारे जन्म लेने से पहले ही मां सोचना आरंभ कर देती है। मां हमेशा खुद से पहले अपने बच्चों के बारे में सोचती है। अपनी पंसद, नापसंद सब भुलाकर सिर्फ अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहती है।
किसी ने कहा भी है कि ‘यदि मां का बस चले तो वो दुनिया की सारी खुशी अपने बच्चों की झोली में डाल दे’। मां के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यदि हम दुनिया में आएं है तो केवल मां की वजह से, मां के गर्भ के बिना कोई जन्म नहीं ले सकता। मां के इसी समर्पण और त्याग को सम्मानित करने के लिए विश्व में मातृ दिवस मनाया जाता है।
देखा जाए तो मां के लिए एक दिन देना कुछ भी नहीं है उसके लिए तो हर दिन मातृ दिवस होना चाहिए। किन्तु फिर भी भारत में प्रत्येक वर्ष मई माह के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है। जहां बच्चें मां के प्रति अपने प्यार को प्रदर्शित करते हैं। एक मां अपना संपूर्ण जीवन अपने बच्चों के लिए न्यौछावर कर देती है। मां के इस अद्भुद प्रेम के प्रति उन्हें शुक्रिया अदा करने का भी दिन होता है मातृ दिवस।

मातृ दिवस का महत्व
मां से बढ़कर इस दुनिया में कोई नहीं होता। जो सुकुन मां की गोद में मिलता है वो किसी स्वर्ग में भी नहीं मिल सकता। जब मां पहली बार अपने बच्चें को अपनी गोद में लेती है और अपने सीने से उसे लगाती है उस पल को कोई भी शब्दों में बंया नहीं कर सकता। मां का प्यार से माथे पर बच्चे को चुमना किसी ताकत से कम नहीं होता। वो मां ही होती है जो अपने कोमल हाथों से बच्चे का हाथ पकड़ उसे पहली बार चलना सिखाती है। अपने हाथों से उसके मुंह में खाना खिलाती है।बच्चे को खाने में क्या अच्छा लगेगा मां यही सोचती रहती है। अपने बच्चों के पहनावे से लेकर उसकी शिक्षा तक की जिम्मेदारी एक मां से बढ़कर कोई नहीं निभा सकता। किसी के आगे बढ़ने में उसकी मां का हाथ अवश्य होता है। यदि मां अपने बच्चे को कभी एक थप्पड़ भी मार देती है तो बच्चे से ज्यादा दर्द उसे होता है। अपने बच्चों की आखों में एक बूंद भी आंसू की कोई मां बर्दाश नहीं कर सकती। तभी तो मां का स्थान सर्वोच्च है। मां की इसी ममता को सम्मान देने के लिए मातृ दिवस का विशेष महत्व है।
इस दिन को जरिए हम अपनी मां को बता सकते हैं कि उन्होंने हमारे लिए कितना कुछ किया है। कितना त्याग, समर्पण किया है। मातृ दिवस को जरिए मां को उसका महत्व दिया जाता है। मां की हमारे जीवन में क्या अहमियत है इसे प्रदर्शित करने का यह दिन होता है। मां का प्यार हमेशा बिना शर्त के पूर्ण रुप से शुद्ध होता है जिसमें किसी तरह का लोभ, मोह नहीं होता।
मां का बस हो तो वो अपने बच्चों को कभी अपनी आंख से ओझल ना होने दे किन्तु आज के समय में कई लोग अपने मां-बाप से दूर रहते हैं। शिक्षा, व्यवसाय के लिए मां को समय नहीं दे पाते हैं लेकिन मातृ दिवस पर मां को समय देकर उन्हें खुश किया जा सकता है। एक मां के लिए इससे अच्छा उपहार और कोई नहीं होता कि उसके बच्चे उसके पास रहें। इन्हीं सभी बातों के लिए आज मातृ दिवस का बहुत महत्व है।
मातृ दिवस का इतिहास
वेसे तो मां के लिए हर दिन मातृ दिवस होना चाहिए लेकिन मातृ दिवस की शुरुआत प्राचीन ग्रीस में हुई थी जब वसंत ऋतु में माताओं के सम्मान में पहला उत्सव आयोजित किया गया था। मातृ दिवस का त्योहार एशिया माइनर के आस-पास मनाया जाता है।साथ ही साथ रोम में भी यह फेस्टिवल वसंत ऋतु के आस-पास 15 से 18 मार्च तक मातृ दिवस का त्यौहार मनाया जाता था। प्राचीन रोमवासी, मेट्रोनालिया के नाम से एक छुट्टी मनाते थे, जोकि जूनो को समर्पित करता था। इस दिन माताओं को उपहार दिये जाते थे। यूरोप और ब्रिटेन में माताओं को सम्मानित करने के लिए कई प्रचलित परम्पराएं हैं जोकि एक विशिष्ट रविवार के दिन किया जाता है जिसको मदरिंग सन्डे के नाम से कहा जाता था। मदरिंग सन्डे का समारोह, अन्ग्लिकान्स सहित, लितुर्गिकल कैलेंडर का हिस्सा है, जो “मदर चर्च” को सम्मानित करने के लिए ईसाई उपाधियों और कैथोलिक कैलेंडर में लेतारे सन्डे, चौथे रविवार लेंट में वर्जिन के दिन मनाया जाता है।
इस दिन महिलाओ को परम्परानुसार रूप से उपहार दिया जाते है, अथवा कुछ परम्परागत महिला कार्य जैसे की दुसरे लोगो के लिए खाना बनाना और सफाई करने को प्रशंसा के संकेत के रूप में चिह्नित किया गया था। कई देशों में 8 मार्च के दिन मदर्स डे, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में भिन्न-भिन्न देशों में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता हैं। अमेरिका में “मदर डे प्रोक्लामेशन” जुलिया वार्ड होवे द्वारा मदर्स डे मनाया जाता है। 1870 में होवे द्वारा रचित “मदर डे प्रोक्लामेशन” में फ्रांको-प्रुस्सियन वार और अमेरिकन सिविल वार (युद्घ) मे हुई-मारकाट में शांतिवादी प्रतिक्रिया लिखी गयी थी। इसमें होवे ने बताया है की राजनीतिक स्तर पर महिलाओं को भी समाज को आकर देने और अपनी बात रखने का सम्पूर्ण अधिकार मिलना चाहिए।
एना जार्विस ने 1812 में “सेकंड सन्डे इन मे” और “मदर डे” की कहावत को ट्रेडमार्क बनाया अथवा मातृ दिवस को इंटरनेशनल एसोसिएशन का सृजन किया। मेरिकन महिला एना जार्विस को जाता है जो कि अमेरिकन सिविल वार के दौरान एक शांति कार्यकर्ता थी और दोनों तरफ के ज़ख्मी सैनिकों की देखभाल करती थी। एना मानती थी कि एक मां आपके लिये जो करती है वह दुनिया में और कोई भी नहीं कर सकता। इसी कारण उन्होंने मदर्स डे को एक उत्सव के रूप में मनाये जाने की मुहिम छेड़ी।
1808 में उन्होंने ग्रेफ्टन, वेस्ट वर्जीनिया की सेंट एंड्रूय मेथडिस्ट चर्च में अपनी मां याद में एक सभा का आयोजन किया और दुनिया की समस्त माताओं का सम्मान किये जाने की अपील करते हुए इस दिन अवकाश घोषित करने का प्रस्ताव रखा। कई उतार-चढ़ावों और संघर्षों के बाद अमेरिका में स्थानीय स्तर पर तो यह लगभग इस दिन अवकाश घोषित हो चुका था। लेकिन इसकी आधिकारिक रूप से शुरूआत 8 मई 1814 अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन द्वारा मदर्स डे को मई माह के दूसरे रविवार को माताओं के सम्मान में राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने के पश्चात हुई। भारत में मदर्स डे को मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में यह पिछले कुछ दशकों से अधिक चलन में आने लगा है।

मातृ दिवस उत्सव
दुनिया भर में मातृ दिवस के कई समारोह आयोजित किए जाते हैं। हालांकि वे सभी एक ही समय में नहीं मनाए जाते , फिनलैंड, इटली, तुर्की, ऑस्ट्रेलिया और बेल्जियम जैसे देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मातृ दिवस मनाते हैं। पहला मातृ दिवस, 10 मई, 1 8 08 को फिलाडेल्फिया, पेंसिल्वेनिया के एक चर्च में मनाया गया था। समारोह में अन्ना जार्विस की मां अन्ना रीज़ जार्विस के सम्मान में एक चर्च सेवा आयोजित की गई थी। आज के आधुनिक दौर में बढ़ती जरुरतों और नए संस्कृतिओं का अनुसरण करते हुए सयुंक्त परिवार से एकल परिवार मं लोग रहने लगे हैं। और अपने मां-बाप से दूर हो गए हैं। किन्तु मां के प्रति कर्तव्यों को कभी नहीं भुलना चाहिए। जब बच्चे बड़े हो जायें तो उन्हें अपने माता पिता की देखभाल करनी चाहिये।जिस तरह बचपन से माता पिता बच्चों की बुनियादी जरूरतों को बिना कहे तो कुछ अनावश्यक जरूरतों को जिद्द के चलते पूरा करते आये हैं उसी तरह अब हमारा फ़र्ज बनता है कि हम भी उनकी ज़रूरतों को समझें। मातृ दिवस को मां के लिए बेहद खास बनाने के उद्देश्य से इस दिन कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मातृ दिवस सभी के लिए बुहत खास होता है। यह दिन मां के प्रति प्यार जताने और उनका ख्याल रखने का होता है। इस दिन बच्चे मां को यह एहसास दिलाते हैं कि वो उनके लिए कितनी खास है।
कई लोग इस दिन मां के साथ बाहर घूमने जाते हैं। उन्हें उनकी पंसद की जगह ले जाते हैं। मां की पसंद का खाना बनाया और उन्हें खिलाया जाता है। आज तकनीकी क्रांति के कारण कम्प्यूटर, इंटरनेट के जरिए मां के लिए विभिन्न कार्ड बनाए जाते है। सोशल मीडिया के जरिए मां की तारीफ में फोटो, कविताएं प्रदर्शित की जाती है। किन्तु इसका एक नकरात्मक प्रभाव भी है कि कई बच्चे अपनी मां के साथ ना रहकर केवल सोशल मीडिया के जरिए उन्हें बधाई देते हैं। अपना प्यार अपनी मां को ना दिखाकर सोशल मीडिया को दिखाते हैं। जबकि यह दिन मां के साथ समय बिताने का दिन होता है। जो मां के लिए सबसे अच्छा उपहार होता है।
माँ के महत्व और इस उत्सव के बारे में उन्हें जागरुक बनाने के लिये बच्चों के सामने इसे मनाने के लिये शिक्षकों के द्वारा स्कूल में मातृ दिवस पर एक बड़ा उत्सव आयोजित किया जाता है। इस उत्सव का हिस्सा बनने के लिये खासतौर से छोटे बच्चों की माताओं को आमंत्रित किया जाता है। इस दिन, हर बच्चा अपनी माँ के बारे में कविता, निबंध लेखन, भाषण करना, नृत्य, संगीत, बात-चीत आदि के द्वारा कुछ कहता है। ईसाई धर्म से जुड़े लोग इसे अपने तरीके से मनाते हैं। अपनी माँ के सम्मान के लिये चर्च में भगवान की इस दिन खास पूजा करते हैं।
उन्हें ग्रीटिंग कार्ड और बिस्तर पर नाश्ता देने के द्वारा बच्चे अपनी माँ को आश्चर्यजनक उपहार देते हैं। इस दिन, बच्चे लजीज व्यंजन बनाकर उन्हें खुश करते हैं। अपनी माँ को खुश करने के लिये कुछ बच्चे उपहार, कपड़े, पर्स, सहायक सामग्री, जेवर आदि खरीदते हैं। कई बच्चे स्वंय अपनी माता के लए कविताएं लिखते हैं। इस दिन मां को आराम करने दिया जाता है क्योंकि मां का ही एक ऐसा काम है जिसे कभी अवकाश नहीं मिलता। इस दिन मां को काम ना करने देने से उसे अवकाश दिया जाता है। मां के साथ अच्छा समय बिताकर उसे खुश किया जाता है। मातृ दिवस के दिन मां के साथ समय व्यतीत करना ही मातृ दिवस का सही अर्थ है। मां के लिए तो हर दिन मातृ दिवस होना चाहिए। हमेशा उन्हें खास होने का एहसास दिलाते रहना चाहिए।