इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम होता है। इस दिन सभी शिया मुस्लिम शोक मनाते हैं। मुहर्रम के महीने के पहले दिन ही शोक शुरू हो जाता है। मुहर्रम के दस दिनों तक शोक मनाया जाता है और रोजा रखा जाता है। अंतिम दिन ताजिया निकाला जाता है। ताजिये के साथ साथ एक जुलूस निकलता है, जिसमें लोग खुद पीट पीटकर दु:ख मनाते हैं। इस वक्त इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब के छोटे नवासे (नाती) इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत हुई थी। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। भारत में हैदराबाद, लखनऊ में काफी बड़े जुलूस निकाले जाते हैं। कई तरह के ताजिया निकाले जाते हैं।

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मुहर्रम क्यों मनाते हैं?

सन् 60 हिजरी में कर्बला (सीरिया) के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित किया। वहां यजीद इस्लाम का शहंशाह बनाना चाहता था। उसने लोगों को डराना शुरू कर दिया। लोगों पर कई अत्याचार किये जाने लगे, लेकिन हजरत मुहम्मद के वारिस और उनके कुछ साथियों ने यजीद के सामने अपने घुटने नहीं टेके और जमकर मुकाबला किया। अपने बीवी बच्चों की सलामती के लिए इमाम हुसैन मदीना से इराक की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में यजीद ने उन पर हमला कर दिया। उनके पास 72 लोग थे और यजीद के पास 8000 से अधिक सैनिक थे लेकिन फिर भी उन्होेंने  यजीद की फौज के दांत खट्टे कर दिये थे। हालांकि वे इस युद्ध में जीत नहीं सके और काफी शहीद हो गए। इमाम हुसैन लड़ाई में बच गए।  इमाम हुसैन ने अपने साथियों को कब्र में दफ्न किया। मुहर्रम के दसवें दिन जब इमाम हुसैन नमाज अदा कर रहे थे, तब यजीद ने धोखे से उन्हें भी मरवा दिया। उस दिन से मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के रूप में मनाया जाता है।

मुहर्रम ताजिया क्या हैं ?
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ताजिया लकड़ी और बांस से बनाया जाता है। इसे अच्छे से सजाकर मुहर्रम के दिन जुलूस के दौरान निकाला जाता है। बाद में इन्हें इमाम हुसैन की कब्र बनाकर दफनाया जाता है।

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