नैना देवी महोत्सव

नैना शब्द सती की आंखों का पर्याय है। नैना देवी का मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश के नैनीताल की एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जिसका नाम नैना पहाड़ी है। नैना देवी मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है जहां हर साल दूर-दूर से हजारों भक्तों माता के दर्शन करने आते हैं। देवी सती या पार्वती के बारे में इस खूबसूरत जगह के पीछे एक मिथक है। यहां एक खूबसूरत झील भी है जिसे नैना झील के नाम से जाना जाता है। यह कहा जाता है कि यह झील देवी नैना की दो नीली आँखें हैं। अगस्त या सितंबर की समय अवधि के दौरान देवी नैना के नाम से यहां महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। मेले के समय इस जगह के लोग इस त्योहार को मनाने के लिए अपने घरों और दुकानों को सजाते हैं। इस नैना देवी मेले में लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लोग लोक संगीत और लोक नृत्य करते हैं। मेला आठ दिनों तक चलता है और इस दौरान सभी दिन और रात धार्मिक भावनाओं के साथ हर्ष और उल्लास के साथ मनाए जाते हैं।

नैना माता महोत्सव का महत्व

नैना देवी मंदिर में माता की दो नेत्रों की छवि अंकित है, जो नैना देवी को दर्शाती है। प्रचलित मान्यता के अनुसार मां के नयनों से गिरे आंसू ने ही ताल का रूप धारण कर लिया और इसी वजह से इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। ऐसा माना जाता है कि माता के दर्शन मात्र से ही लोगों के नेत्र रोग की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है। एक बार जब भक्त पहाड़ी की चोटी पर पहुंच जाता है, तो वे मंदिर के बाहर स्थित विभिन्न दुकानों से प्रसाद खरीदते हैं। मुख्य द्वार को पार करने के बाद, एक विशाल बरगद का पेड़ है। मंदिर के दाहिनी ओर भगवान हनुमान और भगवान गणेश की मूर्तियाँ हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुँचने के बाद शेरों की दो मूर्तियाँ हैं। इसके अंदर नैना देवी की दो बड़ी आंखें हैं।

नैना माता महोत्सव की कथा

नैना देवी मंदिर के पीछे एक पौराणिक कथा है। राजा दक्ष की बेटी सती, शिव की बहुत बड़ी भक्त थी। उसने अत्यधिक प्रार्थना और अनुष्ठान किए और शिव से शादी कर ली। एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ करवाया जिसमे कि उन्होंने सभी देवताओ को निमंत्रण दिया परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमंत्रण नहीं दिया | मगर देवी उमा हठ कर यज्ञ में पहुच जाती है | जब भगवान शिव को पता चलता है कि देवी उमा सती(मृत्यु प्राप्त) हो गई है तो उनके क्रोध की सीमा नहीं रहती है | भगवान शिव अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर देते है | सभी देवी-देवता भगवान शिव के रोद्र-रूप को देखकर सोच में पड जाते है कि कही शिव प्रलय ना कर डाले , इसलिए देवी- देवता भगवान शिव से प्रार्थना करके उनके क्रोध को शांत कर देते है | दक्ष प्रजापति भी भगवान शिव से माफ़ी मांगते है। भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रखकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर देते है | ऐसी स्थिति में जिस जिस स्थान में देवी उमा या सती के शरीर के अंग गिरे , उस स्थान पर शक्ति पीठ हो गए | जिस स्थान पर सती के नयन गिरे , वही पर नैना देवी के रूप में देवी उमा अर्थात नंदा देवी का भव्य स्थान हो गया | ऐसा माना जाता है कि सती की आँखें उसी स्थान पर गिरीं जहाँ यह मंदिर स्थित है। इसलिए, इस मंदिर को नैना देवी कहा जाता है।

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