नारायण नारायण नारायण..
यह शब्द सुनते ही हमारे मन में छवि बनती है देवर्षि नारायण की जो हाथ में वीना लिए भगवान विष्णु का नाम लेते हुए एक जगह से दूसरे जगह भ्रमण करते रहते हैं। नारद मुनि को एक संचारकर्ता के रुप में जाना जाता है। संचार जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। संचार के माध्यम से ही एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से जुड़ सकता है। यदि जीवन में संचार ना हों तो जीवन शून्य हो जाएगा। आज मनुष्य के पास संचार के कई साधन उपलब्ध है। रेडियो, टेलिविजन, समाचार पत्र, एवं इंटरनेट के जरिए आज एक क्षण में सारी दुनिया की खबर एक साथ पता चल जाती है। किन्तु धरती पर और परलोक में सर्वप्रथम संचार करने का श्रेय नारद मुनि को ही जाता है। उन्हें सृष्टि का पहला संवाददाता कहा जाता है। जो अपना काम एक पत्रकार के रुप में पूरी लगन, ईमानदारी के साथ संपूर्ण करते थे। संचार हर जीवित जीवन के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संचार के कुछ माध्यमों के माध्यम से विचारों, विचारों और जानकारी को एक-दूसरे के साथ साझा करना संभव है। पूर्व-ऐतिहासिक काल से संचार प्रक्रिया प्रचलित रही है। न केवल इंसान बल्कि पौधे और जानवर भी अपनी भाषा में संवाद करते हैं। नारद मुनी संचार का अग्रणी माना जाता है। देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरुष भी हैं। जो इधर से उधर घूमते हैं तो संवाद का सेतु ही बनाते हैं। दरअसल देवर्षि नारद भी इधर और उधर के दो बिंदुओं के बीच संवाद का सेतु स्थापित करने के लिए संवाददाता का कार्य करते हैं। नारद जी के जन्म के उपलक्ष्य में ही नारद जयंती मनाई जाती है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की गोद से हुआ था। देवताओं के ऋषि, नारद मुनि की जयंती प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ महीने की कृष्णपक्ष द्वितीया को मनाई जाती है। उन्हें ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कठिन तपस्या के बाद नारद को ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त हुआ था। नारद बहुत ज्ञानी थे और इसी वजह से राक्षस हो या देवी-देवता सभी उनका बेहद आदर और सत्कार करते थे। देवर्षि नारद को महर्षि व्यास, महर्षि बाल्मीकि और महाज्ञानी शुकदेव का गुरु माना जाता है। कहते हैं कि नारद मुनि के श्राप के कारण ही भगवान राम को देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था। नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया था। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते है।

नारद जयंती

ब्रहमा ने दिया था नारद मुनि को श्राप

नारद मुनि को अक्सर इधर की बात उधर करने के रुप में जाना जाता है। नारद मुनि ही केवल ऐसे देवता थे जो कभी भी, किसी भी क्षण देवी-देवता, ऋषि,मुनि, असुर दैत्यों, स्वर्ग, नरक, धरती, आकाश सर्वत्र जा सकते थे। उन्हें कभी किसी से आज्ञा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। वो ब्रहमचारी और ज्ञानी थे उन्होंने कई ऋषि-मुनियों के ज्ञान देकर धन्य किया है। मान्यता है कि देवर्षि नारद भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। श्री हरि विष्णुध को भी नारद अत्यंत प्रिय हैं। नारद हमेशा अपनी वीणा की मधुर तान से विष्णु जी का गुणगान करते रहते हैं। वे अपने मुख से हमेशा नारायण-नारायण का जाप करते हुए विचरण करते रहते हैं। यही नहीं माना जाता है कि नारद अपने आराध्यन विष्णु के भक्तों की मदद भी करते हैं। मान्याता है कि नारद ने ही भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष और ध्रुव जैसे भक्तों को उपदेश देकर भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया। किन्तु अपने ही पिता के श्राप के कारण वे आजीवन कुंवारे रहे। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्राजी ने नारद जी से सृष्टि के कामों में हिस्सा लेने और विवाह करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया। तब क्रोध में बह्राजी ने देवर्षि नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे दिया था। पुराणों में ऐसा भी लिखा गया है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद को श्राप दिया था कि वह दो क्षण से ज्यादा कहीं रुक नहीं पाएंगे। यही वजह है कि नारद अक्सर यात्रा करते रहते थे। कहते हैं राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति से 10 हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ था। लेकिन इनमें से किसी ने भी दक्ष का राज पाट नहीं संभाला क्योंकि नारद जी ने सभी को मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया था। बाद में दक्ष ने पंचजनी से विवाह किया और इनके एक हज़ार पुत्र हुए। नारद जी ने दक्ष के इन पुत्रों को भी सभी प्रकार के मोह माया से दूर रहकर मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया। इस बात से क्रोधित दक्ष ने नारद जी को श्राप दे दिया कि वह सदा इधर उधर भटकते रहेंगे एक स्थान पर ज़्यादा समय तक नहीं टिक पाएंगे।

नारद मुनि की जन्म कथा

ब्रहमा के पुत्र होने से पहले नारद मुनि एक गंधर्व थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्व जन्म में नारद 'उपबर्हण’ नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था। एक बार स्वर्ग में अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ वहां आए और रासलीला में लग गए। यह देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस गंधर्व की श्राप दे दिया कि वह 'शूद्र योनि’ में जन्म लेगा। बाद में गंधर्व का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ। दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते। नारद मुनि बालक रुप में संतों का जूठा खाना खाते थे जिससे उनके ह्रदय के सारे पाप नष्ट हो गए। पांच वर्ष की आयु में उनकी माता की मृत्यु हो गई। अब वह एकदम अकेले हो गए। माता की मृत्यु के पश्चात नारद ने अपना समस्त जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया। कहते हैं एक दिन वह एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठे थे तभी अचानक उन्हें भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई। इस घटना के बाद उस उनके मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा और प्रबल हो गई। तभी अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उन्हें भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगें। समय आने पर यही बालक(नारद मुनि) ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए जो नारद मुनि के नाम से चारों ओर प्रसिद्ध हुए। देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे कई शास्त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है। देविर्षि नारद के सभी उपदेशों का निचोड़ है- सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितै: भगवानेव भजनीय:। अर्थात् सर्वदा सर्वभाव से निश्चित होकर केवल भगवान का ही ध्यान करना चाहिए।

नारद जयंती उत्सव और पूजा विधि

नारद मुनि भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते थे। उनकी भक्ति करते थे इसलिए नारद जयंती के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन करें। इसके बाद नारद मुनि की भी पूजा करें। गीता और दुर्गासप्त शती का पाठ करें। इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर में भगवान श्री कृष्ण को बांसुरी भेट करें। अन्न‍ और वस्त्रं का दान करें। इस दिन कई भक्त लोगों को ठंडा पानी भी पिलाते हैं। ऋषि नारद आधुनिक दिन पत्रकार और जन संवाददाता का अग्रदूत है। इसलिए दिन को 'पत्रकार दिवस' भी कहा जाता है और पूरे देश में इस रूप में मनाया जाता है। उन्हें संगीत वाद्य यंत्र वीना का आविष्कारक माना जाता है। उन्हें गंधर्व के प्रमुख नियुक्त किया गया है जो दिव्य संगीतकार थे। उत्तर भारत में इस अवसर पर बौद्धिक बैठकें, संगोष्ठियों और प्रार्थनाएं आयोजित की जाती हैं। इस दिन को आदर्श मानकर पत्रकार अपने आदर्शों का पालन करने, समाज के लोगों के प्रति दृष्टिकोण और जन कल्याण की दिशा में लक्ष्य रखने का प्रण करते हैं।
नारद जयंती
To read this Article in English Click here

Forthcoming Festivals