नवरात्रि का पर्व कई चीजों का एक अद्भुत मिश्रण है, लेकिन सभी बातों का एक ही मतलब है “बुराई पर अच्छाई की जीत”। अगर आपका मन सच्चा है और भले के लिये कुछ कर रहे तो चाहे पूरी दुनिया आपके खिलाफ हो, अंत में जीत आपकी ही होगी। सच्चे आदमी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है पर अड़चनों के बावजूद जीत उसी की होती है। इसी अच्छाई और सच्चाई को दर्शाता है नवरात्रि का पर्व। महिषासुर बहुत ताकतवर था, नौ दिन तक मां दुर्गा से लड़ता रहा, लेकिन अंत में जीत मां दुर्गा की ही हुई और बुराई को हरना पड़ा। चलिये आपको बताते हैं महिषासुर मर्दिनी मां की कथा।

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कथा

एक बार एक दानवराज था रम्भासुर उसकी एक महिषी यानि भैंस के साथ संयोग हुआ और उनका पुत्र हुआ महिषासुर। महिषासुर अपनी इच्छा के अनुसार भैंस और इंसान का रुप धर सकता था। महिषासुर ने ब्रह्मा जी की घनघोर तपस्या की। कई साल तपस्या में लीन रहे। ब्रह्मा जी उसकी अखंड तपस्या से खुश हुए और वरदान मांगने को कहा। महिषासुर ने कहा कि मैं अमर हो जाऊं, लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि जो भी इस दुनिया में आया है उसे तो वापस जाना ही है इसलिये कोई और वर मांगो। तब महिषासुर ने काफी सोचा और कहा कि मुझे ना तो कोई देवता, ना असुर और ना कोई पुरुष मार पाए। महिलाएं कोमल और नाजुक होती हैं। वो मुझे क्या मार पाएंगी ऐसा सोच कर महिषासुर ने कहा कि मैं सिर्फ स्त्री के हाथों ही मारा जाऊं। ब्रह्माजी ने तथास्तु करके उसे वर दे दिया। वरदान पाकर महिषासुर ने सभी पर आक्रमण कर दिया और जल्द ही असुरों का राजा बन गया। देखते ही देखते उसने धरती और स्वर्ग लोक भी जीत लिये। वो तीनों लोकों का अधिपति बन गया।
जब सभी देव भगवान विष्णु के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि आप भगवती महाशक्ति की आराधना करें। सभी देवताओं ने आराधना की। तब भगवती का जन्म हुआ। इन देवी की उत्पत्ति महिषासुर के अंत के लिए हुई थी, इसलिए इन्हें ‘महिषासुर मर्दिनी’ कहा गया।  भगवान शिव ने देवी को त्रिशूल दिया। भगवान विष्णु ने देवी को चक्र प्रदान किया। इसी तरह, सभी देवी-देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिए। इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा देवी को दिया। सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल, तलवार और दिव्य सिंह यानि शेर को सवारी के लिए उस देवी को अर्पित कर दिया। विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े-छोटे अस्त्रों से शोभित किया।

अब बारी थी युद्ध की। थोड़ी देर बाद महिषासुर ने देखा कि एक विशालकाय रूपवान स्त्री अनेक भुजाओं वाली और अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर शेर पर बैठ उसकी ओर आ रही है। 60 हजार राक्षसों की सेना ने युद्ध कर दिया। रणचंडिका देवी ने तलवार से सैकड़ों असुरों को एक ही झटके में मौत के घाट उतार दिया। बाद में नौ दिन की लड़ाई के पश्चात महिषासुर का भी वध कर दिया।


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