हरी हरी घास और उसके उपर मखमली सफेद धुंध। जहां देखो वहां हरियाली। यही नज़ारा है केरल का, लेकिन केरल की एक और खासियत है जो इसे दुनिया से अलग बनाती है और वो है यहां कि बोट यानि नौका रेस
नेहरू ट्रॉफी नौका दौड़ केरल के बैकवाटर्स का सबसे बड़ा उत्सव है। इस दौड़ का आयोजन प्रतिवर्ष अगस्त के दूसरे शनिवार को आयोजित किया जाता है। भव्य स्नेकबोट्स भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रचलित ट्रॉफी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। चन्दनवल्लम (स्नेकबोट) और छोटी देशी नौकाओं की दौड़ के अलवा इस समारोह में आनुष्ठानिक जल शोभायात्रा, शानदार फ्लोट्स (शोभायान) और सुसज्जित नौकाओं के मनमोहक दृश्य भी देखे जा सकते हैं।
अगस्त का महीना खेलप्रेमियों के लिए एक बोनांजा साबित हो रहा है। रियो डी जेनेरो में ओलिम्पिक खेल चल रहे हैं। केरल के अलप्पुझा के पास पुन्नमदा झील पर होने वाली यह रेस देश के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की याद में उनके नाम पर कराई जाती है। यह रेस हर साल अगस्त महीने के दूसरे शनिवार को होती है। इसमें भाग लेने के लिए आसपास के सभी गांवों से लोग कुट्टनाद में आकर जमा होते हैं। नेहरू बोट रेस के दिन यह शांत दिखने वाली झील युद्ध का मैदान बन जाती है। पहले स्थान के लिए प्रतिस्पर्धी अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं।
रेस का इतिहास
1952 में, पंडित जवाहर लाल नेहरू केरल की यात्रा पर थे। उन्होंने कोट्टयम से अलप्पुझा तक बोट से सफर किया था। उस समय अलप्पुझा त्रावणकोर राज्य का हिस्सा था। उसकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर अलप्पुझा को यह नाम मिला। जिसका शाब्दिक अर्थ है ऐसी धरती जो समुद्र के पास हो और जहां कई नदियां बहती हो। पंडित जी की नौका के साथ उस समय कई नौकाएं दौड़ रही थी। वह भी सजी हुई और तड़क-भड़क के साथ। तब उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के लिए रास्ते में ही अस्थायी बोट रेस आयोजित की गई थी। 8 सर्प नौकाओं ने रेस में भाग लिया था। नदुभागोम, चंबक्कुलम (अमिचाकारी), पार्थसारथी, कवलम, वलिया दीवानजी, नेपोलियन, नेताजी, गियर गॉस (आईसी वल्लम)। पंडित जवाहर लाल नेहरू नौकाओं के प्रदर्शन और मल्लाहों के कौशल से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने रोमांचित होकर यह तय किया कि वह बाकी का सफर विजयी सर्प नौका- नदुभागोम चंदन में पूरा करेंगे। वह भी बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के। जवाहर लाल नेहरू तब दिल्ली गए और वहां से बोट रेस के विजेता के लिए सिल्वर ट्रॉफी भेजी। ट्रॉफी एक सर्प के आकार की थी। उस पर लिखा था- “बोट रेस के विजेता के लिए। यह त्रावणकोर के सामुदायिक जीवन की एक विशिष्टता है।” तब से ही हर साल अलप्पुझा में नेहरू ट्राफी बोट रेस होने लगी। नेहरू ट्रॉफी बोट रेस के दौरान आर्थिक दर्जे, सामाजिक रुतबे, जाति, धर्म और संप्रदाय के आधार बनी दूरियां खत्म हो जाती हैं। आजादी के बाद, जब भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव की समस्या व्याप्त थी, लेकिन इस रेस ने सब खत्म कर दिया। यहां ट्रेनिंग के दौरान झील के किनारे होने वाले भोज के दौरान आप हिंदू, अनुसूचित जाति, क्रिश्चियन और मुस्लिमों को एक साथ बैठकर खाना खाते देख सकते हैं। यह रेस वैसे तो एक मंदिर से जुड़ी हुई है, लेकिन एक चर्च भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी लेता है।
रेस की तैयारियां
नौका दौड़ की तैयारी एक महीने पहले से शुरू हो जाती हैं:-1- चुन्नी मछली का तेल पूरी नौका को लगाया जाता है, जिससे वह पानी में बड़ी आसानी से आगे बढ़ती है|
2- अलग-अलग गांवों का प्रतिनिधित्व करने के लिए 150 मल्लाहों का चुनाव होता है|
3- यह मल्लाह रेस पूरी होने तक ब्रह्मचर्य और मासांहार न करने का व्रत लेते हैं|
4- इन मल्लाहों को पुराने और अनुभवी मल्लाह प्रशिक्षण देते हैं|
5- ट्रेनिंग सेशन के दौरान नदी के किनारे हर दिन सामूहिक भोज होता है। गांव के समृद्ध परिवार आगे आकर मल्लाहों को खाना खिलाते हैं|
नेहरू ट्रॉफी बोट रेस के दौरान पुन्नमदा झील के आसपास दो लाख से ज्यादा लोग एकत्रित हो जाते हैं। भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया से पर्यटक भी पहुंचते हैं। अलप्पुझा जाकर वह इस बहुप्रतीक्षित रेस का हिस्सा बनते हैं।
नेहरू बोट रेस का मुख्य आकर्षण-
1- चंदन वल्लम या सर्प नौका। 100 फीट लंबी इस नौका को देखना ही आनंद देता है।2- हर सर्प नौका में 100 से ज्यादा मल्लाह, खैवनहार और 25 चीयर लीडर्स आ सकते हैं।
3- स्नैक बोट, यह नाम ब्रिटिश काल में दिया गया था। दरअसल, नॉर्वे में इस तरह की बोट्स को स्नैक बोट्स ही कहते थे, जबकि केरल में इन्हें चंदन वल्लम कहा जाता था।
4- इस रेस में भाग लेने वाली केरल की अन्य नौकाओं में चुरुलन, वेप्पू और ओदी शामिल है।
5- रेस के दौरान झील का समूचा किनारा ही किसी बहुरूपदर्शी खिलौने की शक्ल ले लेता है। बहुरंगी और खूबसूरत छतरियां इन बोट्स पर लगी होती हैं। यह नजारा अपने आप में अनूठा है। केरल की सांस्कृतिक विरासत को लेकर कथकली, थेय्यम, पंचवध्यम, और पदयानी कलाकार अपनी कला पेश करते हैं।
6- पतवार का एक मिनट में 100 से 120 बार चलना और मल्लाह का एक-दूसरे को प्रेरित करते हुए उत्साह भरी आवाज में शोर मचाना कभी न भूलने वाला अनुभव है।
7- यह रेस कोर्स 1370 मीटर का है। अलग-अलग बोट्स के लिए मल्टीपल ट्रैक्स बने होते हैं।
8- रेस की शुरुआत होती है जब मल्लाह एक साथ लयबद्ध होकर ड्रम बीट करते हैं।
मल्लाहों के बीच
मलयालम के ख्यात कवि रामपुरतु वारियर ने लिखा था- कुचेलवृतम वचिपत्तु और यह शब्द मल्लाहों में खासे लोकप्रिय हैं। यह गाना त्रावणकोर के राजा के सम्मान में लिया गया था। 19वीं सदी के राजा मार्तंड वर्मा के सम्मान में। वचिपत्तु लोक कला का एक काव्यात्मक रूप है। जब नौकाएं सर्पों की तरह झील पर दौड़ती हैं तो पूरा नजारा बेहद खूबसूरत बन जाता है। झील के किनारे पर हजारों की संख्या में लोग शोर मचाते और मल्लाहों को उत्साहित करते नजर आते हैं।नेहरू ट्रॉफी बोट रेस
इस रेस में मुख्य प्रतिस्पर्धियों में चंपकुलम, कवलम, करिचल, जवाहर त्यानगरी, कल्लूपरम्बन, पाचा, पुलिनकुन्नु, नेदुभागम, चेरुथना, कंदनगरी और पैपड है। अन्य प्रतिस्पर्धाओं में कुछ और तरह की बोट्स भी हिस्सा लेती नजर आएंगी, जैसे- चुरुलन वल्लम, इरुतुकुट्टी वल्लम, ओडि वल्लम, वेप्पु वल्लम, वडक्कानोडी वल्लम और कोचु वल्लम।कैसे पहुँचे?
निकटतम रेलवे स्टेशन: अलप्पुझा, लगभग 8 किमी दूर।निकटतम हवाईअड्डा: कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा, अलप्पुझा से लगभग 85 किमी दूर।
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