समय-समय पर प्यास लगती है ऐसे में निर्जला एकादशी का होने का बहुत बड़ा महत्व है। यू हीं ऋषि मुनियों ने इसे ज्येष्ठ में नहीं बताया है। निर्जला एकादशी दो शब्दों से मिलकर बनी है ‘निः’ अर्थात ‘मना’ और ‘जल’ अर्थात ‘पानी’ जिसका सरल अर्थ हुआ पानी के बिना। निर्जला एकादशी में पानी की एक बूंद तक निषेध होती है। सभी एकादशियों में से इसका सबसे अधिक महत्व है। यह भी कहा जाता है कि जो पूरे साल एकादशी का व्रत नहीं करता यदि वो सिर्फ निर्जला एकादशी का ही व्रत कर ले तो उसे अन्य सभी एकादशी करने का फल प्राप्त हो जाता है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार, निर्जला एकादशी ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। सबसे शुभ "निर्जला एकादशी" को माना जाता है।

निर्जला एकादशी के पीछे महाभारत का है रहस्य
निर्जला एकादशी के महत्व के पीछे महाभारत की कहानी छिपी है। महाभारत के युग के दौरान, जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष देने वाली एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया। हे पितामाह। आपने तो उपवास करने की बात कही है। मैं तो 1 दिन क्या कुछ समय के लिए भी भूखा नहीं रह सकता हूं क्योकिं मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा? पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा नहीं कुंतीपुत्र- धर्म की यही विशेषता है कि वह सबको धारण नहीं करता बल्कि सबके योग्य साधन, व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध कराता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का एकमात्र व्रत करो जिससे तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।वहीं इसकी एक और कहानी भी है, एक बार महर्षि व्यास ने पांडवों के घर का दौरा किया और भीम ने उनसे एक प्रश्न पूछा कि उनके सभी चार भाइयों और मां कुंती और पत्नी द्रौपदी ने एकादशी का उपवास किया है लेकिन उन्होंने नहीं किया क्योंकि वो भूखे नहीं रह सकते। अपनी अक्षमता दिखाते हुए भीम ने महर्षि व्यास से उन सभी चौबीस एकादशी व्रत को माफ करने का आग्रह किया क्योंकि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं कि जिससे अनैतिक कृत्य का हिस्सा होंगे। तब महर्षि व्यास ने कहा कि, उनके अंदर "वृक" नाम की आग है और जब तक वह भूख को शांत करने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं खा लेता तब तक संतुष्ट नहीं होता है। इसलिए वह वर्ष के सभी चौदह एकादशी के बावजूद ज्येष्ठ महीने का केवल एक एकादशी कर सकते हैं और सभी अवसरों का फल प्राप्त करेंगे लेकिन उन्हें पूरे जीवन में इस निर्जला एकादशी को रखने की जरूरत है। भीम ने आसानी से उपवास किया लेकिन अगले ही दिन सुबह वह बेहोश हो गए जिसे देखते हुए चारों भाईयों ने गंगा नदी के पानी को तुलसी के साथ भीम को पिलाकर उपवास तुड़वाया और यह ‘भीमसेन एकादशी’ बन गई।
निर्जला एकादशी की पूजा विधि
सामान्य शब्दों में, निर्जला एकादशी के उपवास करते समय, देश के अधिकांश मंदिरों में जागरण या रात की प्रार्थना कराई जाती है। जलादान (शिविरों के माध्यम से जल का दान) एकादशी के दिन किया जाता हैं। जहां भक्त ज्येष्ठ महीने की गर्मी में तपने वाले राहगीरों को सड़कों पर शीतल पेय शर्बत इत्यादि पिलाते हैं। विवाहित महिलाएं भी पूर्ण भक्ति और विश्वास के साथ उपवास करती हैं। हिंदू पौराणिक अवलोकनों के अनुसार, पूर्ण विश्वास और समर्पण के साथ समाज के सभी लोगों द्वारा निर्जला एकादशी का उपवास करना चाहिए। इस दिन स्नान के बाद पूजा- अनुष्ठान कर जमीन पर बैठना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान कर ओम नमों भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करना चाहिए। पूरे दिन निर्जल रहकर रात में भजन और ध्यान करना चाहिए जो आवश्यक है। रात में सोना इस विशेष दिन पर पूरी तरह से निषेध है। रात भर जगने के बाद व्यक्ति को बारहवें दिन सुबह स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद, भोजन, कपड़े, फल, शर्बत, दूध इत्यादि दान करनी चाहिए, फिर व्यक्ति सभी वस्तुओं के समाप्त होने के बाद शर्बत पीकर व्रत तोड़ना चाहिए।निर्जला एकादशी को रखने से हमें कई बातों का भी पता चलता है। यदि हम ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में एक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना पानी के उपवास करें तो बिना बताए ही हमें जल की आवश्यकता, अपरिहार्यता, विशेषता पता लग जाएगी। बिना भोजन, वस्त्र के तो कई दिनों तक संभला जा सकता है परंतु जल और वायु के बिना नहीं। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा इस मंत्र के साथ दान करता है। उसे बहुत पूण्य मिलता है। इस दिन दान करने की भी अत्यंत महिमा है। इस दिन किसी गरीब या ब्राह्मण को वस्त्र, पानी से भरा घड़ा, पैसे, सुराही इत्यादि का दान करने से अत्यंत लाभ प्राप्त होता है।
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