पौष पूर्णिमा हिंदू चंद्र पंचांग के अनुसार पौषपूर्णिमा पौष माह में आती है | जानकारों का कहना है कि पौष महीने में सूर्य देव ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तप करके सर्दी से राहत देते हैं. पौष के महीने में सूर्य देव की विशेष पूजा-उपासना से मनुष्य जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पा सकता है|

भारतीय जनजीवन में पूर्णिमा व अमावस्या का अत्यधिक महत्व है। अमावस्या को कृष्ण पक्ष तो पूर्णिमा को शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन कहते है। लोग अपने-अपने तरीके से इस दिन  को मनाते हैं। पूर्णिमा यानि पूर्णो मा:। मास का अर्थ होता है चंद्र। अर्थात जिस दिन चंद्रमा का आकार पूर्ण होता है उस दिन को पूर्णिमा कहा जाता है। और जिस दिन चांद आसमान में बिल्कुल दिखाई न दे वह स्याह रात अमावस्या की होती है। हर माह की पूर्णिमा पर कोई न कोई त्यौहार अवश्य होता है। लेकिन पौष और माघ माह की पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व माना गया है, विशेषकर उत्तर भारत में हिंदूओं के लिए यह बहुत ही खास दिन होता है।
 

पौष पूर्णिमा का महत्व

पौष माह की पूर्णिमा को मोक्ष की कामना रखने वाले बहुत ही शुभ मानते हैं। क्योंकि इसके बाद माघ महीने की शुरुआत होती है। माघ महीने में किए जाने वाले स्नान की शुरुआत भी पौष पूर्णिमा से ही हो जाती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्वक प्रात:काल स्नान करता है वह मोक्ष का अधिकारी होता है। उसे जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है अर्थात उसकी मुक्ति हो जाती है। चूंकि माघ माह को बहुत ही शुभ व इसके प्रत्येक दिन को मंगलकारी माना जाता है, इसलिए इस दिन जो भी कार्य आरंभ किया जाता है उसे फलदायी माना जाता है। इस दिन स्नान के पश्चात क्षमता अनुसार दान करने का भी महत्व है।
पौष पूर्णिमा के दिन ही शकम्बारी जयंती भी मनाई जाती है। जैन धर्म के मानने वाले पुष्याभिषेक यात्रा की शुरुआत भी इसी दिन करते हैं। वहीं छत्तीसगढ के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले आदिवासी इसी दिन छेरता पर्व भी मनाते हैं|

शकम्बारी जयंती मनायें जाने के पीछे मान्यता यह है कि एक बार पूरी दुनिया में एक विशालकाय हवा का झोंका आया था, जो कई वर्षों तक लोगों के घर और खेत आदि उजाड़ता रहा| इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए लोगों ने देवी दुर्गा का आह्वान किया| देवी ने भक्तों की प्रार्थना सुन ली और शकम्बारी का रूप धारण कर पृथ्वी में वर्षा करा के लोगों को उस तूफान से राहत दिलाया| इसलिए लोग इस दिन शकम्बारी देवी की पूजा भी करते है| वहीं छेरता पर्व में लोग तिल और गुड़ से बने मीठे व्यंजन बना कर भगवान सत्यनारायण की पूजा करते है|

कहाँ और कैसे करें स्नान

पौष पूर्णिमा को सुबह स्नान के पहले संकल्प लें. पहले जल को सिर पर लगाकर प्रणाम करें फिर स्नान करें. साफ कपड़े पहनें और प्रातः सूर्य को अर्घ्य दें. फिर मंत्र जाप करके कुछ दान जरूर करें. इस दिन व्रत रखना और भी अच्छा होगा. पौष पूर्णिमा पर स्नान के बाद कुछ विशेष मंत्रों के जाप से कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती है| बनारस के दशाश्वमेध घाट व प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर पर डुबकी लगाना बहुत ही शुभ व पवित्र माना जाता है। प्रयाग में तो कल्पवास कर लोग माघ माह की पूर्णिमा तक स्नान करते हैं। जो लोग प्रयाग या बनारस तक नहीं जा सकते वे किसी भी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करते हुए प्रयागराज का ध्यान कर के इस पर्व को मना सकते है|

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