श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है कि आत्मा कभी मरती नहीं, ये बस एक शरीर से दूसरे शरीर में बदलती है। इसलिये आप अपने पूर्वजों को जब भी कुछ अर्पित करते हो तो वो उन्हें मिलता है। दानवीर कर्ण, जिनके नाम के आगे ही दानवीर था उन्होंने पूरी उम्र बहुत दान दिया। जो भी उनसे कुछ मांगता वो उसे जरूर मिलता। कर्ण जब परलोक गए तो वहां उन्हें वो कुछ दोगुना दिया गया जो कि उन्होंने दान किया था, लेकिन वो सब हीरे, जवाहरात और सोना चांदी थे। कर्ण को खाने को कुछ नहीं मिला क्योंकि उन्होंने कभी भोजन दान नहीं किया था। कर्ण भूख से व्याकुल हो गए। अंत में यमराज की विनजी करके धरती पर जाकर फिर से दान करने की आज्ञा मांगी। यमराज ने कर्ण को 14 दिनों का वक्त दिया। कर्ण ने धरती पर आकर जमकर भोजन दान किया और श्राद्ध किया। जब कर्ण परलोक वापस आया तो उसके पास खाना पहुंच चुका था।
इसलिये हिंदुओं में भोजन दान करना बहुत शुभ माना गया है। श्राद्धों के दौरान तो गरीबों को भोजन खिलाना ही चाहिए। इसके जरिये हमारे पुर्वजों को सीधे ये पहुंच जाता है। कहा जाता है कि इन दिनों यमराज की आज्ञा से आत्माएं ज़मीन पर आती हैं और अपने वंशजों की ओर से अर्पित किये गए भोजन का भोग करती हैं।

Image result for shradh legends

अन्य पौराणिक कथा

एक बार दो भाई थे जोगे और भोगे। जोगे अमीर था और भोगे गरीब। एक बार श्राद्ध का वक्त था तो अमीर भाई की पत्नी ने उससे श्राद्ध करने को कहा, लेकिन वो इसे व्यर्थ की बात मानकर टालता रहा। ऐसा करने पर अमीर भाई की पत्नी ने सोचा अगर श्राद्ध नहीं किया तो लोग बाते बनाएंगे, इसके लिये ऐसा करती हूं कि अपने मायके वालों को दावत पर बुला कर अपनी शान दिखाऊंगी। वहीं अमीर भाई की पत्नी ने श्राद्ध पर मदद करने के लिये गरीब भाई भोगे की पत्नी को बुला लिया। श्राद्ध का दिन आया तो भोगे की पत्नी पूरा दिन काम पर लगी रही। पूर्वजों के लिये खाना बनाया, लेकिन जैसे ही उनके पूर्वज खाने आए तो क्या देखा कि वहां पर तो अमीर भाई के ससुराल वाले खा रहे हैं।  पितर निराश हो गए तो वो गरीब भोगे के घर गए तो वहां क्या देखा कि पितरों के नाम पर अगियारी दी हुई है। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही चले गए। सबने आपस में बात की और कहा कि अगर भोगे अमीर होता तो उन्हें भूखा नहीं रहना पड़ता। पितरों को उस पर दया आई और उन्होंने कहा कि भोगे के घर धन आ जाए। शाम हो गई। गरीब भोगे के बच्चे खाना मांगने लगे, लेकिन उनके घर में कुछ नहीं था। भोगे के पत्नी ने बच्चों को टालने के लिये झूठ ही कह दिया कि बाहर हौदी के नीचे खान को है खा लो। बच्चे जब वहां गए तो देखा कि हौदी मोहरों से भरी हुई है। दौड़े दौड़े बच्चे मां के पास पहुंचे और सारी बात बताई। भोगे भी अब धनी हो गया। अगले साल जब पितृ पक्ष आया तो उसने अच्छे से श्राद्ध मनाया, 56 तरह के भोग लगाए और ब्राह्मणों को भी भोजन कराया। इससे पितर बहुत खुश हुए और भोगे का धन और कुल हमेशा बढ़ता ही गया।

पितृ पक्ष की कथा वीडियो में देखें



To read this article in English, click here

Forthcoming Festivals