इसलिये हिंदुओं में भोजन दान करना बहुत शुभ माना गया है। श्राद्धों के दौरान तो गरीबों को भोजन खिलाना ही चाहिए। इसके जरिये हमारे पुर्वजों को सीधे ये पहुंच जाता है। कहा जाता है कि इन दिनों यमराज की आज्ञा से आत्माएं ज़मीन पर आती हैं और अपने वंशजों की ओर से अर्पित किये गए भोजन का भोग करती हैं।

अन्य पौराणिक कथा
एक बार दो भाई थे जोगे और भोगे। जोगे अमीर था और भोगे गरीब। एक बार श्राद्ध का वक्त था तो अमीर भाई की पत्नी ने उससे श्राद्ध करने को कहा, लेकिन वो इसे व्यर्थ की बात मानकर टालता रहा। ऐसा करने पर अमीर भाई की पत्नी ने सोचा अगर श्राद्ध नहीं किया तो लोग बाते बनाएंगे, इसके लिये ऐसा करती हूं कि अपने मायके वालों को दावत पर बुला कर अपनी शान दिखाऊंगी। वहीं अमीर भाई की पत्नी ने श्राद्ध पर मदद करने के लिये गरीब भाई भोगे की पत्नी को बुला लिया। श्राद्ध का दिन आया तो भोगे की पत्नी पूरा दिन काम पर लगी रही। पूर्वजों के लिये खाना बनाया, लेकिन जैसे ही उनके पूर्वज खाने आए तो क्या देखा कि वहां पर तो अमीर भाई के ससुराल वाले खा रहे हैं। पितर निराश हो गए तो वो गरीब भोगे के घर गए तो वहां क्या देखा कि पितरों के नाम पर अगियारी दी हुई है। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही चले गए। सबने आपस में बात की और कहा कि अगर भोगे अमीर होता तो उन्हें भूखा नहीं रहना पड़ता। पितरों को उस पर दया आई और उन्होंने कहा कि भोगे के घर धन आ जाए। शाम हो गई। गरीब भोगे के बच्चे खाना मांगने लगे, लेकिन उनके घर में कुछ नहीं था। भोगे के पत्नी ने बच्चों को टालने के लिये झूठ ही कह दिया कि बाहर हौदी के नीचे खान को है खा लो। बच्चे जब वहां गए तो देखा कि हौदी मोहरों से भरी हुई है। दौड़े दौड़े बच्चे मां के पास पहुंचे और सारी बात बताई। भोगे भी अब धनी हो गया। अगले साल जब पितृ पक्ष आया तो उसने अच्छे से श्राद्ध मनाया, 56 तरह के भोग लगाए और ब्राह्मणों को भी भोजन कराया। इससे पितर बहुत खुश हुए और भोगे का धन और कुल हमेशा बढ़ता ही गया।पितृ पक्ष की कथा वीडियो में देखें
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