हिंदू धर्म के मुताबिक पैदा होने वाले हर शख्स के उपर तीन ऋण होते हैं एक देव ऋण दूसरा ऋषि-ऋण और तीसरा पितृ ऋण। आश्विन महीने के कृष्ण-पक्ष को पितृपक्ष माना जाता है। इन दिनों हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और हमारी ओर से अर्पित भोजन को ग्रहण करते हैं। आधिकतर लोग श्राद्ध का अनुष्ठान घर पर ही करते हैं पर गया, वारणसी, हरिद्धार और बद्रीनाथ में जाकर श्राद्ध करना ज्यादा महत्ता वाला माना जाता है।
आमूमन श्राद्ध घर का बड़ा लड़का करता है, लेकिन बड़ा लड़का ना हो तो दूसरे भी कर सकते हैं। पितरों के लिये भोजन बनाया जाता है। पितरों को भोजन कराकर ब्राह्मणों और अन्य लोगो को भोजन कराया जाता है। श्राद्ध में कम से कम दो ब्राह्मण भोजन करने वाले अवश्य होने चाहिए । अगर ब्राहमण एक ही हो तो दूसरे ब्राहमण के रूप मे दामाद, नाती अथवा भानजा सम्मिलित किया जा सकता है । कौवे, गाय, कुत्ते, चींटी और गरीबों को भी खाना खिलाएं। जो शख्स तर्पण कर रहा है वो सब अनुष्ठान करने के बाद ही भोजन करे। मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।