
पोंगल का त्योहार कृषि एवं फसल से सम्बन्धित देवताओं को समर्पित है| इस त्योहार का नाम पोंगल इसलिए है,क्योंकि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह पोगल कहलाता है| तमिल भाषा में पोंगल का एक अन्य अर्थ निकलता है "अच्छी तरह उबालना"| दोनों ही रूप में देखा जाए तो एक बात निकल कर यह आती है कि अच्छी तरह उबाल कर सूर्य देवता को प्रसाद भोग लगाना| पोंगल का महत्व इसलिए भी है,क्योकि यह तमिल महीने की पहली तारीख को आरम्भ होता है| इस पर्व के महत्व का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यह चार दिनों तक चलता है| हर दिन के पोंगल का अलग-अलग नाम होता है|
भोगी पोंगल- पहली पोंगल को भोगी पोंगल कहते हैं,जो देवराज इन्द्र का समर्पित हैं| इसे भोगी पोंगल इसलिए कहते हैं क्योंकि देवराज इन्द्र भोग विलास में मस्त रहने वाले देवता माने जाते हैं| इस दिन संध्या समय में लोग अपने अपने घर से पुराने वस्त्र, कूड़े आदि लाकर एक जगह इकट्ठा करते हैं और उसे जलाते हैं| यह ईश्वर के प्रति सम्मान एवं बुराईयों के अंत की भावना को दर्शाता है| इस अग्नि के इर्द गिर्द युवा रात भर भोगी कोट्टम बजाते हैं जो भैस की सिंग का बना एक प्रकार का ढ़ोल होता है|
सूर्य पोंगल- दूसरी पोंगल को सूर्य पोंगल कहते हैं| यह भगवान सूर्य को निवेदित होता है| इस दिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार

की खीर बनाई जाती है जो मिट्टी के बर्तन में नये धान से तैयार चावल, मूंग दाल और गुड से बनती है| पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें प्रसाद रूप में यह पोंगल व गन्ना अर्पण किया जाता है साथ ही फसल देने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है|
मट्टू पोंगल- तीसरे पोंगल को मट्टू पोगल कहा जाता है|तमिल मान्यताओं के अनुसार मट्टू भगवान शंकर का बैल है, जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानव की सहायता कर रहा है| इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं, उनके सिंगों में तेल लगाते हैं एवं अन्य प्रकार से बैलों को सजाते है| बैलों को सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है| बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ों की भी पूजा की जाती है| कही कहीं लोग इसे केनू पोंगल के नाम से भी जानते हैं, जिसमें बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए पूजा करती है और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं|
कन्या पोंगल- चार दिनों के इस त्योहार के अंतिम दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, जिसे तिरूवल्लूर के नाम से भी लोग पुकारते हैं| इस दिन घर को सजाया जाता है| आम के पलल्व और नारियल के पत्ते से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है| महिलाएं इस दिन घर के मुख्य द्वारा पर कोलम यानी रंगोली बनाती हैं| इस दिन पोंगल बहुत ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है, लोग नये वस्त्र पहनते है और दूसरे के यहां पोंगल और मिठाई भेजते हैं| इस पोंगल के दिन ही बैलों की लड़ाई होती है जो काफी प्रसिद्ध है| रात्रि के समय लोग सामुहिक भोज का आयोजन करते हैं और एक दूसरे को मंगलमय वर्ष की शुभकामना देते हैं|

जिस प्रकार ओणम् केरलवासियों का महत्त्वपूर्ण त्योहार है| उसी प्रकार पोंगल तमिलनाडु के लोगों का महत्त्वपूर्ण पर्व है| उत्तरभारत में जिन दिनों मकर सक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है,उन्हीं दिनों दक्षिण भारत में पोंगल का त्यौहार मनाया जाता है| भारत एक कृषि प्रधान देश है| यहाँ की अधिकांश जनता कृषि के द्वारा आजीविका अर्जित करती है| आजकल तो उद्योगिकरण के साथ-साथ कृषि कार्य भी मशीनों से किया जाने लगा है| परन्तु पहले कृषि मुख्यत: बैलों पर आधारित थी| बैल और गाय इसी कारण हमारी संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं|
पोंगल क्यो मनाया जाता है?
भगवान से अच्छी फसल होने की प्रार्थना करती है| इन्हीं दिनों घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ हो जाती है| अमावस्या के दिन सब लोग एक स्थान पर एकत्र होते हैं| इस अवसर पर लोग अपनी समस्याओं का समाधान खोजते हैं| अपनी रीति-नीतियों पर विचार करते हैं और जो अनुपयोगी रीति-नीतियाँ हैं उनका परित्याग करने की प्रतिज्ञा की जाती है| जिस प्रकार 31 दिसम्बर की रात को गत वर्ष को संघर्ष और बुराइयों का साल मानकर विदा किया जाता है,उसी प्रकार पोंगल को भी प्रतिपदा के दिन तमिलनाडुवासी बुरी रीतियों को छोड़ने की प्रतिज्ञा करते हैं| यह कार्य ‘पोही’ कहलाता है,जिसका अर्थ है- ‘जाने वाली’|इसके द्वारा वे लोग बुरी चीजों का त्याग करते हैं और अच्छी चीजों को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करते हैं|