"मैं तो एक ही चीज लेने जा रहा हूं-आज़ादी! नहीं देना है तो कत्ल कर दो। आपको एक ही मंत्र देता हूं करगें या मरेगें। आज़ादी डरपोकों के लिए नहीं है। जिनमे कुछ कर गुजरने की ताकत है, वही जिंदा रहते हैं।"
8 अगस्त 1942 की रात्रि को कांग्रेस महासमिति के समक्ष "भारत छोड़ो आंदोलन" के प्रस्ताव पर बोलते हुए महात्मा गांधी ने उपरोक्त शब्द कहे, जोकि इतिहास का अहम दस्तावेज बन गए। महात्मा गांधी इस अवसर पर हिंदी और अंग्रेजी में तकरीबन तीन घटों तक बोले। महात्मा की तक़रीर के पूरे समय तक अजब सन्नाटा छाया रहा। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनका एक एक शब्द में देश की मर्मान्तक चेतना को झिंझोड़ता रहा और उसे उद्वेलित करता रहा। सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और इसके नेता महात्मा गांधी के संघर्ष का एक ऐसा क्रांतिकारी काल रहा, जिसमें अंग्रेजी राज के विरुद्ध भारत के जनमानस को निर्णायक संग्राम के लिए ललकारा गया। महात्मा गांधी की ललकार पर लाखों भारतवासी करो या मरो के मंत्र पर अपने जीवन को जंगे ए आजादी के लिए आहुत करने के लिए अपने घरों से निकल पड़े। भारत छोड़ो आंदोलन के इन बलिदानियों में सबसे अधिक संख्या नौजवानों की थी। भारत छोड़ो आन्दोलन विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 9 अगस्त सन 1942 को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। क्रिप्स मिशन की विफ़लता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया।

आन्दोलन की शुरुआत

भारत छोड़ो आन्दोलन या अगस्त क्रान्ति भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की अन्तिम महान लड़ाई थी, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। क्रिप्स मिशन के ख़ाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीयों को अपनी छले जाने का अहसास हुआ। दूसरी ओर दूसरे विश्वयुद्ध के कारण परिस्थितियाँ अत्यधिक गम्भीर होती जा रही थीं। जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर, मलाया और बर्मा पर क़ब्ज़ा कर भारत की ओर बढ़ने लगा, दूसरी ओर युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं के दाम बेतहाश बढ़ रहे थे, जिससे अंग्रेज़ सत्ता के ख़िलाफ़ भारतीय जनमानस में असन्तोष व्याप्त होने लगा था। जापान के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई, 1942 ई. को गाँधी जी ने हरिजन में लिखा "अंगेज़ों! भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।"
इस समय द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ चुका था, और इसमें ब्रिटिश फ़ौजों की दक्षिण-पूर्व एशिया में हार होने लगी थी। एक समय यह भी निश्चित माना जाने लगा कि जापान भारत पर हमला कर ही देगा। मित्र देश, अमेरिका, रूस व चीन ब्रिटेन पर लगातार दबाव डाल रहे थे, कि इस संकट की घड़ी में वह भारतीयों का समर्थन प्राप्त करने के लिए पहल करें। अपने इसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए उन्होंने स्टेफ़ोर्ड क्रिप्स को मार्च, 1942 ई. में भारत भेजा। ब्रिटेन सरकार भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देना नहीं चाहती थी। वह भारत की सुरक्षा अपने हाथों में ही रखना चाहती थी और साथ ही गवर्नर-जनरल के वीटो अधिकारों को भी पहले जैसा ही रखने के पक्ष में थी। भारतीय प्रतिनिधियों ने क्रिप्स मिशन के सारे प्रस्तावों को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद भारतीय नेशनल कांग्रेस कमेटी की बैठक 8 अगस्त, 1942 ई. को बम्बई में हुई। इसमें यह निर्णय लिया गया कि अंग्रेज़ों को हर हाल में भारत छोड़ना ही पड़ेगा। भारत अपनी सुरक्षा स्वयं ही करेगा और साम्राज्यवाद तथा फ़ाँसीवाद के विरुद्ध रहेगा। यदि अंग्रेज़ भारत छोड़ देते हैं, तो अस्थाई सरकार बनेगी। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध नागरिक अवज्ञा आन्दोलन छेड़ा जाएगा और इसके नेता गाँधी जी होंगे। 9 अगस्त 1942 के दिन इस आन्दोलन को लालबहादुर शास्त्री सरीखे एक छोटे से व्यक्ति ने प्रचण्ड रूप दे दिया। 19 अगस्त, 1942 को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गये। “मरो नहीं, मारो!” का नारा १९४२ में लालबहादुर शास्त्री ने दिया जिसने क्रान्ति की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड किया।) 9 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से ‘बिस्मिल’ के नेतृत्व में हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी काण्ड किया था जिसकी यादगार ताजा रखने के लिये पूरे देश में प्रतिवर्ष 9 अगस्त को “काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस” मनाने की परम्परा भगत सिंह ने प्रारम्भ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गान्धी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 9 अगस्त 1942 का ही दिन चुना था। 9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही काँग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और काँग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गान्धी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबन्द किया गया था। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940  लोग मारे गये, 1630  घायल हुए, 18000 डी० आई० आर० में नजरबन्द हुए तथा 60299  गिरफ्तार हुए। आन्दोलन को कुचलने के ये आँकड़े दिल्ली की सेण्ट्रल असेम्बली में ऑनरेबुल होम मेम्बर ने पेश किये थे।

आंदोलन का उद्देश्य

यह आंदोलन का सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी चाहे अमीर हो, गरीब हो सभी लोग शामिल थे। इस आंदोलन की सबसे बड़ी खास बात यह थी कि इसने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। कॉलेज छोड़कर युवा जेल की कैद हंसते-हंसेत स्‍वीकार कर रहे थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि इस आंदोलन का प्रभाव ही इतना ज्‍यादा था कि अंग्रेज हुकूमत पूरी तरह हिल गई थी। उसे इस आंदोलन को दबाने के लिए ही साल भर से ज्‍यादा का समय लगा। जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था, तब गांधी जी को रिहा किया गया।

9 अगस्त का ही दिन क्यों चुना?

- 6 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से बिस्मिल के नेतृत्व में 10 जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी कांड किया था।
- काकोरी कांड ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी।
- जिसकी यादगार ताजा रखने के लिए पूरे देश में हर साल 9 अगस्त को काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस मनाने की परंपरा भगत सिंह ने प्रारंभ कर दी थी।
- इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन के लिए 9 अगस्त का दिन एक सोची-समझी रणनीति के तहत चुना था।
- 900 से ज्‍यादा लोग मारे गए, हजारों लोग गिरफ्तार हुए इस आंदोलन की व्‍यूह रचना बेहद तरीके से बुनी गई।

नेताओं की गिरफ्तारी, जनता ने संभाली आंदोलन की बागडोर
- 9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार कर लिया गया।
- ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया।
- सभी बड़े नेताओं तो ऑपरेशन जीरो ऑवर के तहत जेलों में ठूस दिया गया।
- गांधी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद कर दिया गया।
- डॉ.राजेंद्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबंद किया गया था।
- इसके बाद जनता ने खुद आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली और इसे आगे बढाया क्योंकि उस समय नेतृत्व करने वाला कोई नहीं था।
- आंदोलन की अगुवाई छात्रों, मजदूरों और किसानों ने की, बहुत से क्षेत्रों में किसानों ने वैकल्पिक सरकार बनाई।
- उत्तर और मध्य बिहार के 80 प्रतिशत थानों पर जनता का राज हो गया।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार में गया, भागलपुर, पूर्णिया और चंपारण में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ।
- आंदालेन की बागडोर अरुणा आसफ अली, राममनोहर लेाहिया, सुचेता कृपलानी, छोटू भाई पुराणिक, बीजू पटनायक और जयप्रकाश नारायण ने संभाली।
- भूमिगत आंदोलनकारियों की मुख्य गतिविधि होती थी- संचार साधनों को नष्ट करना।
- उस समय रेडियो का भी गुप्त संचालन होता था, राममनोहर लेाहिया कांग्रेस रेडियो पर देश की जनता को संबोधित करते थे।
- ब्रिटिश सरकार को इस जनविद्रोह को काबू करने में एक साल लग गए, विद्रोह थोड़े समय तक चला, पर यह तेज था।

आजाद हुआ भारत

सेकंड वर्ल्ड वार की समाप्‍ति के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्‍लेमेंट रिचर्ड एटली के नेतृत्‍व में लेबर पार्टी की सरकार बनी। लेबर पार्टी आजादी के लिए भारतीय नागरिकों के प्रति सहानुभूति की भावना रखती थी। मार्च 1946 में एक केबिनैट कमीशन भारत भेजा गया, जिसके बाद भारतीय राजनैतिक परिदृश्‍य का सावधानीपूर्वक अध्‍ययन किया। एक अंतरिम सरकार के निर्माण का प्रस्‍ताव दिया गया और प्रां‍तों और राज्‍यों के मनोनीत सदस्यों को लेकर संघटक सभा का गठन किया गया। जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्‍व ने एक अंतरिम सरकार का निर्माण किया गया। मुस्लिम लीग ने संघटक सभा के विचार विमर्श में शामिल होने से मना कर दिया और पाकिस्‍तान के लिए एक अलग राज्‍य बनाने में दबाव डाला। भारत के वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत और पाकिस्‍तान के रूप में भारत के विभाजन की एक योजना प्रस्‍तुत किया। तब भारतीय नेताओं के सामने इस विभाजन को स्‍वीकार करने के अलावा कोई विकल्‍प नहीं था, क्‍योंकि मुस्लिम लीग अपनी बात पर अड़ी हुई थी। भारत में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई 5 लाख लोग मारे गए, 1.5 करोड़ लोगों को दोनों तरफ से घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। इस प्रकार 14 अगस्‍त 1947 की मध्‍य रात्रि को भारत आजाद हुआ तब से हर साल भारत में 15 अगस्‍त को स्‍वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।

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