
राजिम कुंभ मेला उत्सव
राजिम कुंभ मेले की शुरुआत कल्पवाश से होती है पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते है पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है, १०१ कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से कुम्भ का आगाज होता है, राजिम कुम्भ में विभिन्न जगहों से हजारो साधू संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो के संख्या में नागा साधू, संत आदि आते है, तथा शाही स्नान तथा संत समागम में भाग लेते है, प्रतिवर्ष होने वाले इस महाकुम्भ में विभिन्न राज्यों से लाखो की संख्या में लोग आते है,और भगवान श्री राजीव लोचन, तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते है, और अपना जीवन धन्य मानते है, लोगो में मान्यता है की भनवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम कुम्भ का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है। यहां श्रद्धालुगण दूर-दूर से आकर इनके प्रवचनों का लाभ लेते हैं। इसमें शाही कुम्भ स्नान होता है जो देखने लायक रहता है। नागा साधुओं के दर्शन के वास्ते भीड़ उमड़ पड़ती है। अखाड़ों के साधुओं के करतब लोगों को आश्चर्य में डाल देते हैं। राजिम कुम्भ मेले के लिए राजिम और नवापारा के सभी मंदिरों में आकर्षक रोशनी लगाई जाती है जिससे उनकी सुंदरता और बढ़ जाती है। संगम स्थल पर श्रद्धालुओं के लिए सड़कें बनाकर सुरक्षा की दृष्टि से बेरिकेटिंग लगाई जाती हैं। मेले के दौरान संगम पर जगह-जगह दाल भात केन्द्र खोले जाते हैं ताकि श्रद्धालुओं को खाने की कमी ना हो। मेले में सुरक्षा को ध्यान रखते हुए पर्याप्त मात्रा में सुरक्षा बल की तैनाती की जाती है। चिकित्सा सुविधा के लिए डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टॉफ की ड्यूटी लगाई जाती है। राजिम मेले में भक्ति गीत-संगीत से माहौल गुंजयमान हो जाता है। श्रद्धालुगण यहां शामिल होकर अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।राजिम कुंभ से जुड़ी कथा
राजिम कुंभ को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है कथा के अनुसार पृथ्वी को मृत्युलोक में स्थापित करके विघ्नों को नाश करने के लिए ब्रह्मा सहित देवतागण विचार करने लगे कि इस लोक में दुष्टों की शांति के लिए क्या करना चाहिए? इतने में अविनाशी परमात्मा का ध्यान किया तो एकत्रित देवता बड़े आश्चर्य से देखते हैं कि सूर्य के समान तेज वाला एक कमल गो लोक से गिरा, जो पाँच कोस लम्बा और सुगंध से भरा या जिसमें भौंरे गुँजार कर रहे थे तथा फूल का रस टपक रहा था मानो यह कमल नहीं अमृत का कलश है। ऐसे कमल फूल को देखकर बह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए और आज्ञा दी कि हे पुष्कर 'तुम मृत्युलोक में जाओ' जहाँ तुम गिरोगे वह क्षेत्र पवित्र हो जाएगा, नाल सहित वह मनोहारी कमल पृथ्वी पर गिरा और पाँच कोस भूमंडल को व्याप्त कर लिया। जिनके स्वामी स्वयं भगवान राजीवलोचन हैं। कमल फूल की पाँच पंखुड़ी के ऊपर पाँच स्वयं भूपीठ विराजित हैं जिसे पंचकोशी धाम के नाम से जाना जाता हैं। श्री राजीवलोचन भगवान पर कमल पुष्प चढ़ाने का अनुष्ठान है। इन्हीं दिनों से यह पवित्र धरा कमलक्षेत्र के रूप में अंकित हो गया। परकोटे पर लेख के आधार पर कमलक्षेत्र पद्मावती पुरी राजिम नगरी की संरचना जिस प्रकार समुद्र के भीतर त्रिशूल की नोक पर काशी पुरी तथा शंख में द्वारिकापुरी की रचना हुई है, उसी के अनुरूप पाँच कोस का लम्बा चौड़ा वर्गाकार सरोवर है। बीच में कमल का फूल है, फूल के मध्य पोखर में राजिम नगरी है।To read this Article in English Click here