कर्नाटक, जहां का मौसम और हरियाली सबका मन मोह लेती है उसको अलग राज्य का दर्जा मिला था  1 नवंबर 1956 के बाद से हर साल 1 नवंबर को कर्नाटक राज्योत्सव मनाया जाता है। इस दिन पूरे कर्नाटक में छुट्टी होती है और जगह जगह रंगारंग कार्यक्रम पेश किये जाते हैं।  पूरे राज्य में सजावट होती है। ऐसा लगता है मानो सारे त्योहार इकट्ठे ही आ गए हों। दिन में होली के रंगों की तरह रंग बिखरते हैं। फूलों की बारिश होती है। सड़कों पर अपने पारंपरिक परिधानों में लोग नृत्य करते हैं। हर किसी के चेहरे पर अलग सी मुस्कान होती है। इन सबके बीच मां भुवनेश्वरी की पूजा भी की जाती है। झांकियां निकाली जाती हैं। रात को रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
 

कर्नाटक का इतिहास

कर्नाटक का इतिहास बहुत व्यापक है। यहां समय के साथ कई बदलाव देखे गए। कर्नाटक की सोने की खद्दानों का सोना हड़प्पा खुदाई तक में भी मिला है। मौर्य वंश, नंद वंश, कदंब वंश से लेकर कन्नड़ साम्राज्य के बादामी चालक्य वंश ने यहां राज किया। आज के दौर का जो कर्नाटक है उस पर चोल वंश ने अधिकार किया था। कई बदलाव किये गए। इन सब के बीच कन्नड़ संगीत, शिल्पकला और शैली भी उतपन्न हुई। इसी बीच गोआ से आकर कई ईसाई भी यहां बस गए। आज जो कर्नाटक है वो सभी परंपराओं और शैलियों का एक प्रारुप है।

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