यूं तो हर एकादशी का अपना अलग एक महत्व है, लेकिन रमा एकादशी का महत्व सबसे अधिक माना गया है। ये एकादशी दक्षिण भारत में बड़े चाव से मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। “रमा” मां लक्ष्मी का ही दूसरा नाम है। ये एकादशी कार्तिक महीने में आती है। इस दिन भगवत गीता को पढ़ना भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। श्रद्धालु पूरा दिन व्रत रखते हैं और भगवान का स्मरण करते हैं। कहा गया है कि रमा एकादशी का व्रत रखने से सभी पाप धुल जाते हैं।
Ramaa ekasai lakshi vishnu puja

व्रत विधि

सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें
पूजा स्थल को साफ करें
भगवान विष्णू और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें
धूप और दीप जलाकर तुलसी पत्ती चढ़ाएं
भगवान की अराधन कर ध्यान लगाएं
पूरा दिन भगवान का स्मरण करें, अगर संभव हो तो कीर्तन भी करवाएं
 

रमा एकादशी व्रत कथा

कई साल पहले एक मुचुकुंद नाम का राजा था। राजा की पुत्री चंद्रभागा का विवाह शोभन नाम के युवक से हुआ। शोभन बहुत दुबल था। एक दिन रमा एकादशी थी तो राजा ने पूरे नगर में घोषणा कर दी कि सभी व्रत करेंगे और कोई खाना नहीं बनाएगा। राजा की घोषणा सुन कर शोभन चिंतित हो गया और चंद्रभागा से कहने लगा कि मैं इतना दुर्बल हूं और खाना नहीं खाया तो मैं मर जाउंगा। चंद्रभागा ने कहा कि इस नगर में तो सब व्रत रख रहे हैं और आपको नहीं रखना तो आप नगर से बाहर चले जाइये। परंतु शोभन ने व्रत रखने की ठानी। पूरा दिन कुछ नहीं खाया और अगले दिन उसकी मौत हो गई। रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर बहुत बड़ा राजमहल और नगर मिला। एक दिन बहां से साधू गुजरा। साधू ने शोभन को पहचान लिया और यहां इस नगरी में होने का कारण पूछा। शोभन ने कहा कि मुझे रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से ये मिला है। बस ये स्थिर नहीं है। अगर आप मेरी पत्नी चंद्रभागा को यहां बुला लें और सब बता दें तो ये स्थिर हो जाएगा। साधू ने सारी बात चंद्रभागा के बताई। अपने पति के बारे में खबर पाकर वो बहुत खुश हुई और मंदराचल पर्वत पर चल पड़ी। वहां जाकर चंद्रभागा कहने लगी कि हे प्राणनाथ! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए। अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक एकादशी के व्रत को श्रद्धापूर्वक करती आ रही हूँ। इस पुण्य के प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा

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