भारत में हिंदू धर्म की बहुत मान्यता है। यहां हिन्दुओं से जुड़े कई देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है। इनसे जुड़े कई त्यौहार एवं मेले आयोजित किए जाते हैं। हिंदू धर्म के प्रत्येक त्यौहार के पीछे किसी ना किसी देवी-देवता से जुड़ा इतिहास होता है जो उस मेले एवं त्यौहार की महत्वता को प्रदर्शित करता है। हिन्दुओं के ईष्ट देवता भगवान राम से जुड़े कई त्यौहार भारतवर्ष में मनाए जाते हैं। भगवान राम को सृष्टि के संचालन कर्ता भगवान विष्णु का सांतवां रुप माना जाता है जिन्होंने त्रैता युग में राम के रुप में जन्म लिया। भगवान राम से जुड़े रामनवमी, दशहरा, दीपावली एवं रामलीला का उत्सव बहुत हर्षोल्लास के साथ पूरे देश में मनाया जाता है। रामलीला भगवान राम से जुड़ा एक ऐसा ही महत्वपूर्ण पर्व एंव मेला है। रामलीला से ही आश्य है भगवान राम की लीला यानि उनके किस्से। रामलीला सिर्फ हिंदू महाकाव्य-रामायण का एक अधिनियम है। इसमें भगवान राम के पूर्ण जीवन, मूल्य, सिद्धांत और उनके जीवन की यात्रा शामिल हैं। उनके जीवन के हर विशेष पहलू को रामलीला के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। आज के दौर में भी रामलीला की उतनी ही महत्वता है जितना कि भगवान राम के समय में उनकी थी। रामलीला के प्रति श्रद्धालुओं की श्रद्धा का अंदाजा इसी बात से लागाया जा सकता है कि भक्त भगवान राम और उनसे जुड़े पात्रों को निभाने वाले कलाकारों को भी भगवान मान बैठते हैं। रामलीला एक ऐसा माध्यम है जहां भगावन राम की कहानियों के जरिए उनसे जुड़े किस्सों के साथ-साथ मनुष्यों को जीवन का नया संदेश भी मिलता है। रामलीला का उत्सव अमूमन 14 दिन तक मनाया जाता है किन्तु वाराणसी के काशी के रामनगर में रामलीला 30 दिनों तक मनाई जाती है। जहां मनुष्यगण भगवान राम और उनसे जुड़े महत्वपूर्ण पात्रों का किरदार निभा कर दर्शकों को राम के जीवन के बारे में बताते हैं। यह पूरे भारत में मनाई जाती है किन्तु दिल्ली और उत्तर प्रदेश की रामलीला आमतौर पर बहुत लोकप्रिय और विशेष होती है। इस रामलीला में स्थानिय कलाकारों के साथ-साथ चर्चित कलाकार एवं सिनेमा जगत की नामचिन हस्तियां भी शामिल होती हैं। यहां राजनेता भी भगवान राम की रामलीला में सम्मिलित होने आते हैं। रामलीला का मंचन सिंतबर-अक्टूबर के माह में किया जाता है यह मंचन दशहरे से पहले किया जाता है इसी के तहत दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाया जाता है।
रामलीला

रामलीला का इतिहास

रामलीला लोक-नाटक का एक रूप है, जिसका विकास मूलत: उत्तर भारत में हुआ था। इसके प्रमाण लगभग ग्यारहवीं शताब्दी में मिलते हैं। पहले यह महर्षि वाल्मीकि के महाकाव्य ‘रामायण’ की पौराणिक कथा पर आधारित था, लेकिन आज जिस रामलीला का मंचन किया जाता है, उसकी पटकथा गोस्वामी तुलसीदास रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ की कहानी और संवादों पर आधारित है। रामलीला भारत के अनेक क्षेत्रों में होती है। भारत के बाहर के भूखंडों जैसे बाली, जावा, श्री लंका आदि में प्राचीन काल से यह किसी न किसी रूप में प्रचलित रही है। जिस तरह श्रीकृष्ण की रासलीला का प्रधान केंद्र उनकी लीलाभूमि वृंदावन है उसी तरह रामलीला का स्थल है काशी और अयोध्या। मिथिला, मथुरा, आगरा, अलीगढ़, एटा, इटावा, कानपुर, काशी आदि नगरों या क्षेत्रों में आश्विन माह में अवश्य ही आयोजित होती है लेकिन एक साथ जितनी लीलाएँ नटराज की क्रीड़ाभूमि वाराणसी में होती है उतनी भारत में अन्यत्र कहीं नहीं। इस दृष्टि से काशी इस दिशा में नेतृत्व करती प्रतीत होती है। राजस्थान और मालवा आदि भूभागों में यह चैत्रमास में समारोह संपन्न होती है। भारत में रामलीला के ऐतिहासिक मंचन का ईसा पू्र्व का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। लेकिन 1500 ईं में गोस्वामी तुलसीदास(1497–1623)ने जब आम बोलचाल की भाषा ‘अवधी’ में भगवान राम के चरित्र को ‘श्री रामचरित मानस’ में चित्रित किया तो इस महाकाव्य के माध्यम से देशभर खासकर उत्तर भारत में रामलीला का मंचन किया जाने लगा। माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के शिष्यों ने शुरूआती रामलीला का मंचन (काशी, चित्रकूट और अवध) रामचरित मानस की कहानी और संवादों पर किया। इतिहासविदों के मुताबिक देश में मंचीय रामलीला की शुरुआत 16वीं सदी के आरंभ में हुई थी। इससे पहले रामबारात और रुक्मिणी विवाह के शास्त्र आधारित मंचन ही हुआ करते थे। साल 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने हर साल रामनगर में रामलीला कराने का संकल्प लिया। कहा जाता है कि उनके स्वपन में भगवान राम ने आकर उनसे रामलीला कराने का निर्देश दिया था। भगवान राम के जीवन और उसके मूल्य को सीखने का सबसे अच्छा माध्यम है। हालांकि आम तौर पर एक हिंदू उत्सव, रामलीला के बाद विभिन्न धर्मों के लोग आते हैं और सभी के लिए खुले होते हैं। भारत के कई शहरों में रामलीला को विभिन्न समय के लिए 7, 14 से 31 दिनों तक रखा जाता है। रामलीला, भगवान राम के पूरे जीवन की एक नाटकीय प्रस्तुति है, जो अपने युवा काल के राम के इतिहास से शुरू होती है और भगवान राम और रावण के बीच 10 दिनों के लिए युद्ध के साथ समाप्त होती है। महान हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, राम लीला एक पुरानी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जो हर साल 10 रातों के लिए मंच पर खेलती है। इस अवधि के दौरान एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है ताकि हर कोई राम लीला नाटक का आनंद ले सकें।

रामलीला की विशेषता

रामलीला में भगवान राम से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पात्रों का किरदार निभाया जाता है। इसके तहत राम अवतार भगवान विष्णु के 7 वें जीवित रूप अवतार के रूप में माना जाता है। पूरी रामायण भगवान राम के साथ अपनी पत्नी और भाई के इतिहास पर आधारित है। रामलीला में भगवान राम के जन्म से लेकर उनके द्वारा ताड़का का वध एवं सीता से स्वंयपर, शिवजी का धनुष तोड़ना,14 वर्षों के लिए वनवास जाना, सीता हरण, लक्ष्मण का सूर्पनखा की नाक काटना, हनुमान से भेंट, बालि को मारना, सीता की खोज, जटायु, रावण, कुंभकरण एवं मेघनाथ का अंत कर सीता को मुक्त कराना तथा वापस अयोध्या आना इत्यादि घटनाओं को बेहद संजीदगी से दर्शाया जाता है। भगवान राम से जुड़ी इन घटनाओं को कलाकारों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। भारतीय संस्कृति में राम लीला का अधिक महत्व है। भारत में अधिकतर स्थानों पर, रामलीला के रामायण, रामचरितमानस के अवधियों के संस्करण में आयोजित किया गया था। दशहरा के दौरान रामलीला ने लोगों के वैश्विक ध्यान को आकर्षित किया जाता है। रामलीला के समय जगह-जगह पर कई मेलों का आयोजन भी किया जाता है जिसमें विभिन्न-प्रकार के खान-पान से लेकर बच्चों के लिए झूले, खिलौनों का भी आयोजन किया जाता है। रामलीला एक उत्सव की तरह भारतवर्ष में मनाया जाता है। रामलीला भारत के छोटे से लेकर बड़े शहरों, गलियों तक में आयोजित की जाती है। जिसमें पात्र सवांद याद कर उसका संचार करते हैं।

रामनगर की रामलीला

यद्यपि पूरे भारत में दिल्ली के रामलीला, उत्तर प्रदेश और विशेष रूप से रामनगर (वाराणसी) के बहुत प्रसिद्ध है। उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी के रामनगर की रामलीला विश्व प्रसिद्ध है। रामनगर वाराणसी में राम लीला एक महीने के लिए रामलीला मैदान पर विशाल मेले के साथ आयोजित की जाती है। दशहरे के दिन विशेष रुप से आयोजन किया जाता है जिसके तहत रावण की विशाल आकृतियां एवं पुतला बना कर भगवान राम द्वारा उसे जलाया जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतिक होता है। रावण के भाई कुंभकरन और पुत्र मेघनाथ भी भगवान राम द्वारा युद्ध में मारे गये। लंबे समय से युद्ध की जीत के बाद, राम घर आये जहां अभिषेक का आयोजन किया गया, ताकि अयोध्या नगरी में उनका स्वागत किया जा सके। रामनगर उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 15 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटा सा शहर है। यहां मनाई गई रामलीला केवल लोकप्रिय नहीं है बल्कि आज तक इसकी मौलिकता बरकरार रखती है। ऐसा माना जाता है कि "काशी के महाराजा" ने इसे बहुत पहले पारंपरिक तरीके से शुरू किया था। रामनगर में दो सौ साल पुरानी रामलीला में आज भी प्राचीन परंपराओं का पालन होता है। गंगा के दूसरे तट पर बसा समूचा रामनगर इन दिनों राममय है, वहां धर्म एवं आध्यात्म की सरिता बह रही होती है। रामनगर में रामलीला का पात्र निभाने वाले कलाकारों को प्रायः 16 वर्ष से कम की उम्र का लिया जाता है। इनमें महिलाओं के किरदार भी पुरुष कलाकारही निभाते हैं। भक्त साधु, राम-सीता, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न को पारम्परिक रुप से अपने कंधे पर लेकर चलते हैं। यहां पर भजन-कीर्तन करते तथा नाचते-गाते भक्तों को देखा जा सकता है। इस अनूठी रामलीला को देखने के लिए बडी़ संख्या में विदेशी भी आते हैं जो अपने कैमरों में हर दृश्य को कैद करते हैं। रामलीला के पात्रों के वस्त्र तो कई प्रकार के होते हैं, लेकिन राजसी वस्त्रों पर तो आंखें नहीं टिकतीं। सोने-चांदी के काम वाले वस्त्र राज परिवार की सुरक्षा में रखे जाते हैं। लीला में प्रयुक्त अस्त्र-शस्त्र भी रामनगर के किले में रखे जाते हैं। राजसी वस्त्रों और अस्त्र-शस्त्र से सज्जित स्वरूपों के मेकअप में कोई रसायनयुक्त सामग्री का उपयोग नहीं होता।

रामनगर की रामलीला की कुछ मुख्य विशेषताएंः

अवधि: अन्य रामलीला की लगभग 14 दिनों तक मनाई जाती है किन्तु रामनगर की रामलीला अन्य रामलीलाओं की तुलना में 31 दिन तक मनाई जीती है। इसमें भगवान राम से जुड़े प्रति क्षण की घटना प्रदर्शित की जाती है। पूरा रामनगर शहर अशोक वाटिका, पंचवटी, जनकपुरी, लंका आदि के लिए विभिन्न दृश्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक सेट के रूप में कार्य करता है। रामनगर के स्थानीय अभिनेता रामायण के विभिन्न पात्रों को खेलते हैं। कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएं राम, रावण, जानकी, हनुमान, लक्ष्मण, जटायू, दशरथ, और जनक हैं। दशहरा त्यौहार काशी नरेश की परेड द्वारा रंगीन हाथी की चढ़ाई से शुरू किया गया जाता है। सैकड़ों पुजारी वहाँ रामचरितमानस के पाठ को बताने के लिए वहाँ रहते हैं।

एकाधिक समूह: रामनगर में अन्य शहरों में रामलीला के लिए नामित एकल सेट के मुकाबले, मूल महलों से लेकर बगीचों तक कई ऐतिहासिक सेट हैं जो ऐतिहासिक स्थानों तक हैं जो स्थायी रूप से इस उद्देश्य के लिए आरक्षित हैं प्राय: हर प्रसंग के लिए पृथक-पृथक लीला स्थल निर्धारित है। लगभग चार किलोमीटर की परिधि में अयोध्या, जनकपुर, लंका, अशोक वाटिका, पंचवटी आदि स्थान है जो रामचरित मानस में वर्णित है। लीलाप्रेमियों का अनुशासन, शांति, समर्पण, लीला के प्रत्येक प्रसंग को देखने तथा नियमित आरती दर्शन की ललक बनाएं रखती है। लीला के पांच स्वरूपों राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और सीता समेत प्रमुख पात्र आज भी ब्राह्मण जाति के होते हैं। इनकी उम्र 16 साल से कम होनी चाहिए। चेहरे की सुन्दरता, आवाज की सुस्पष्टता और गले की मधुरता का संगम जिस किशोर में होता है, वही मुख्य मात्र के लिए योग्य माना जाता है। चूंकि यहां लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं होता इसलिए तेज बोलने की क्षमता जांचने के लिए संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण कराया जाता है। पात्रों के चयन पर अंतिम स्वीकृति परम्परागत ढंग से कुंवर अनंत नारायण सिंह देते हैं। मुख्य पात्र तैयारी के बाद संन्यासी जैसा जीवन व्यतीत करते हैं। घर-परिवार से मिलने की मनाही होती हैं। यहां प्रशिक्षण का काम दो व्यास कराते हैं।

प्रौद्योगिकी से अप्रभावित: चूंकि भारत में पारंपरिक मेलों और त्यौहारों में से अधिकांश बढ़ते हुए प्रौद्योगिकी के साथ एक नए रूप में स्थानांतरित हो गए हैं। किन्तु रामनगर की रामलीला अभी भी पारंपरिक नियमों का पालन करती है। पूर्व बनारस रियासत के महाराजाओं और उनकी विरासत संभाल रहे उत्तराधिकारियों ने आज भी रामलीला का प्राचीन स्वरूप बनाए रखा है। तामझाम-ग्लैमर की दुनिया से अछूती इस रामलीला को सम्पूर्ण विश्व पटल पर एक अलग पहचान मिली है। पात्रों की सज्जा-वेशभूषा, संवाद-मंच आदि सभी स्थलों पर गैस और तीसी के तेल की रोशनी, पात्रों की मुख्य सज्जा का विशिष्ट रूप, संवाद प्रस्तुति के ढंग और लीला का अनुशासन ज्यों का त्यों बरकरार है।
यहां की रामलीला में आज भी बिजली की रोशनी एवं लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं होता और न ही भडकीले वस्त्र तथा आभूषण का प्रयोग होता है। विशाल मुक्ताकाश, लीला स्थल के पास सजे सजाए हाथी पर लगे पारम्परिक नक्कासी वाले हौदे पर सवार होकर काशी नरेश हर रोज उपस्थित होते हैं एवं यात्रा की संवाद-ध्वनि बखूबी उनके पास पहुंचती है।

अभी भी कोई सीट नहीं: इस रामलीला में ध्यान देने योग्य एक दिलचस्प बात यह है कि पहले के समय की तरह अभी भी बैठने के लिए कोई सीट नहीं है। दर्शक जमीन पर बैठते हैं, छतों पर चढ़कर देखते हैं। जमीन पर चटाई बिछाकर रामलीला का आनंद लेते हैं और तो और कई दर्शक पेडों पर भी चढ़ जाते हैं ताकि रामलीला को देख सकें।

रामभगवान राम

हिंदू पौराणिक कथाओं और ग्रंथों के अनुसार, भगवान राम विष्णु को सातवें अवतार और अयोध्या के असाधारण और महान राजा थे। भगवान राम के जीवन और सिद्धांतों का पूरा विवरण रामायण में सबसे महान भारतीय महाकाव्यों में से एक है। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित, संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है| उन पर तुलसीदास ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस रचा था| रामचन्द्र हमारे आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बडे पुत्र थे। इनके तीन भाई, भरत केकैयी से लक्ष्मण और शत्रुघ्न सुमित्रा से। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन राम का जन्म हुआ था। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है| बाद में तुलसीदास ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस की रचनाकर राम को आदर्श पुरुष बताया। राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने राम के आदर्शों को खूब समझा-परखा है राम का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है। राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है। उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं। संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।
भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। वे मर्यादा का पालन हमेशा करते थे। उनका जीवन बिल्कुल मानवीय ढंग से बीता बिना किसी चमत्कार के। आम आदमी की तरह वे मुश्किल में पड़ते हैं। उस समस्या से दो चार होते हैं, झेलते हैं लेकिन चमत्कार नहीं करते। कृष्ण हर क्षण चमत्कार करते हैं। लेकिन राम उसी तरह जुझते हैं जैसे आज का आम आदमी परेशानियो से जूझता है। पत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए रणनीति बनाई। लंका पर चड़ाई की तो सेना ने एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाया। रावण को किसी चमत्कारिक शक्ति से नहीं बल्कि समझदारी के साथ परास्त किया। राम कायदे कानूनों से बंधे हुए पात्र थे। वह अपने राज्य के लिए इतने ज्यादा वफादार थे कि जब धोबी ने सीता पर टिप्पणी की उन्होंने नियम कानून का पालन किया। सीता का परित्याग किया। सीता को समाज के लिए भगवान राम ने त्याग दिया था और समाज को राजधर्म से अवगत कराया। तभी भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रुप में जाना जाता है।

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