भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।

भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥


भारत को देवताओं की भूमि कहा जाता है। भारत की इस धरती पर भगवान स्वंय मनुष्य का रुप धारण कर अवतरित हुए हैं। हिन्दू मान्यतानुसार ब्राह्मा,विष्णु और महेश यानि शिव को देवताओं में सबसे उच्च माना गया है। यह तीनों मिलकर इस सृष्टि का संचालन करते हैं। जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है यह तीनों भगवान उस पाप का अन्त करते हैं। किन्तु धरती के पापों का अन्त करने के लिए कभी भी शिव और ब्रह्मा ने धरती पर जन्म नहीं लिया। केवल विष्णु ही ऐसे भगवान है जिन्होंने राक्षसों का संहार करने के लिए कभी कृष्ण तो कभी राम के रुप में मुनष्य योनि में जन्म लिया और मानव का कल्याण किया। जिसके फलस्वरुप आज हम कई त्यौहार मनाते हैं। इन्हीं महान त्यौहारों में से एक है रामनवमी।

रामनवमी के दिन भगवान विष्णु ने राम के रुप में दानवों का अन्त करने के उद्देश्य से धरती पर मनुष्य के रुप में जन्म लिया था। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरूषोतम" राम भी कहा जाता है। हिन्दू पंचाग अनुसार भगवान राम का जन्म मध्यान्ह काल में व्याप्त नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था। हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक में श्री राम के रुप में अवतार लिया था। दुनिया भर में भक्त इस दिन को शुभ दिन मानते हैं। यह दिन वसंत के मौसम में मनाया जाता है। भगवान राम की छवी सच्चाई और अच्छाई के रुप में आज तक लोगों के ह्रद्य में विद्धमान है। रामनवमी को राम के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य व शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है। राम जन्मोत्सव चैत्र नवरात्री के अंतिम दिन होता है। माना जाता है कि भगवान राम की देवी पूजा के प्रति अटूट आस्था थी। इसलिए उन्होंने देवी पूजा के दिन ही लिया था।

राम नवमी

राम नवमी का महत्व


रामनवमी का पूजन शुद्ध और सात्विक रुप से भक्तों के लिए विशष महत्व रखता है इस दिन प्रात:कल स्नान इत्यादि से निवृत हो भगवान राम का स्मरण करते हुए भक्त लोग व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं। इस दिन लोग उपवास करके भजन कीर्तन से भगवान राम को याद करते है। इसके साथ ही साथ भंडारे और प्रसाद को भक्तों के समक्ष वितरित किया जाता है। भगवान राम का संपूर्ण जीवन ही लोक कल्याण को समर्पित रहा। उनकी कथा को सुन भक्तगण भाव विभोर हो जाते हैं व प्रभू के भजनों को भजते हुए रामनवमी का पर्व मनाते हैं। इस दिन राम के भक्तों द्वारा राम के भक्ति गीत गाना, विभिन्न प्रकार की राम की धार्मिक किताबों को पढ़ना, वैदिक भजनों का जप करना आदि शुभ माना जाता है। इस अवसर के दिन ये सब करना महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राम के प्रचारक धार्मिक ग्रंथों से प्रथागत प्रथाएं और उपदेश सुनकर लोगों को सही और गलत के बीच के अंतर के बारे में जागरूक बनाते हैं।

राम नवमी समारोह

राम नवमी महोत्सव मार्च के महीने में होता है। उत्तरी भारत में विशेष रूप से इस दिन को धूमधाम के साथ मनाया जाता है। राम की नगरी अयोध्या को नई नवेली दुल्हन की तरह फूल,बल्ब, और रंग-बिंरगी लड़ियों-झाल्लरों से साजाया जाता है। जिसके बाद रामनवमी का जुलूस निकाला जाता है। जिसमें श्रीराम के रथ को खूब सजाया-संवारा जाता है। रथ में श्रीराम के साथ उनकी पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण के साथ भक्त हनुमान की मूर्ति रखी जाती है। छोटे बच्चों को राम एवं सीता बनाकर बिठाया जाता है पांरपरिक परिधानों में तैयार कई अन्य व्यक्ति राम के सैनिकों बन रथ के साथ आगे बढ़ते हैं। इस उत्सव में लाखों की संख्या में लोग एकत्रित होते हैं। अयोध्या में स्थित पवित्र नदी सरयु में स्नान करते हैं। पूरे इलाके में भगवान राम की झांकी निकाली जाती है। उन्हें पालने में झुला झुलाया जाता है। अयोध्या में ही राजा दशरथ के घर भगवान राम ने जन्म लिया था। इसलिए इस पर्ब की छटा अयोध्या में देखते ही बनती है। अयोध्या के साथ-साथ अनेकों घरों में मंदिरों में भी भगवान राम की पूजा-अर्चाना की जाती है। जगह-जगह भगवान राम के गुणों और रामचरित्रमानस के पाठों का उच्चारण किया जाता है। भक्त भगवान राम का दर्शन करने के लिए मंदिरों में जाते हैं। उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।

राम नवमी पर सूर्य पूजा का महत्व

राम नवमी का दिन सूर्य की प्रार्थना करने के साथ शुरू होता है। सूर्य शक्ति का प्रतीक है और हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य को राम का पूर्वज माना जाता है। इसलिए, इस दिन की शुरुआत में सूर्य को प्रार्थना करने का उद्देश्य सर्वोच्च शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। सूर्य को प्राचीन काल में भी प्रकाश और गर्मी के स्रोत के रूप में पहचाना गया था। सूर्य के महत्व उच्च अक्षांशों में बहुत अधिक थे जहां से आर्यों को भारत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए था। कई शाही राजवंशों ने सूर्य, ईगल और शेर आदि जैसे विषाक्तता के प्रतीकों को उनके प्रजननकर्ता के रूप में चित्रित किया। राम के जन्मदिन पर सूर्य के प्रति समर्पित किया जाता है। भगवान राम स्वंय सूर्यवंशी थे इसलिए इस दिन सर्वप्रथम सूर्य की पूजा की जाती है। भगवान राम और सूर्य पूजा के बीच बहुत संबंध है। भगवान राम को रघुकुला या रघुवंसा कहा जाता है। रघु का मतलब सूर्य और कुला या वानसा का मतलब पारिवारिक वंशज है। राम को रघुनाथ, रघुपति और राघवेंद्र इत्यादि भी कहा जाता है। भगवान के जन्म के समय भी उसी समय को चुना गया था जब सूर्य ऊपरी हो और उसके अधिकतम प्रतिभा पर हो। चैत्र मास के शुक्ला पक्ष के 9वें दिन, श्री राम माता कौशल्या और राजा दशरथ के यहां पैदा हुए थे। उनका जन्म सूर्य राशी के दौरान 12 बजे हुआ था। माना जाता है कि श्री राम के जन्म दिवस पर ही महाकवी तुलसीदास ने अपना प्रसिद्ध महाकाव्य श्री राम चरित्रमानस को लिखना शुरू किया था।

राम नवमी

श्रीराम जन्म कथा

प्रभु श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। उनका जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के घर हुआ था। अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी। किन्तु किसी भी रानी से उहें संतान की प्राप्ति नही हुई। जिससे वह बहुत व्याकुल थे। तत्पश्चात, राजा दशरथ ने पुत्र पाने की इच्छा अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ से बताया। महर्षि वशिष्ठ ने विचार कर ऋषि श्रृंगी को आमंत्रित किया।

ऋषि श्रृंगी ने राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का प्रावधान बताया। ऋषि श्रृंगी के निर्देशानुसार राजा दशरथ ने यज्ञ करवाया जब यज्ञ में पूर्णाहुति दी जा रही थी उस समय अग्नि कुण्ड से अग्नि देव मनुष्य रूप में प्रकट हुए तथा अग्नि देव ने राजा दशरथ को खीर से भरा कटोरा प्रदान किया। तत्पश्चात ऋषि श्रृंगी ने बताया हे राजन, अग्नि देव द्वारा प्रदान किये गए खीर को अपनी सभी रानियों को प्रसाद रूप में दीजियेगा। राजा दशरथ ने वह खीर अपनी तीनो रानियों कौशल्या, कैकेयी एवम सुमित्रा में बाँट दी।

प्रसाद ग्रहण के पश्चात निश्चित अवधि में अर्थात चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को राजा दशरथ के घर में माता कौशल्या के गर्भ से राम जी का जन्म हुआ तथा कैकेयी के गर्भ से भरत एवम सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण तथा शत्रुधन का जन्म हुआ। राजा दशरथ के घर में चारो राजकुमार एक साथ समान वातावरण में पलने लगे। राम जन्म की ख़ुशी में तबसे लोग रामनवमी पर्व मनाते है। भगवान राम ने धरती पर जन्म लेते ही कितने ही दानवों का अन्त किया। रावण जैसे बलशाली राक्षस का अन्त करने के लिए ही वो मनुष्य के रुप में इस धरती पर अवतरित हुए थे। मां-बाप की खातिर 14 साल श्री राम ने वनवास काटा था। इसलिए उन्हें मर्यादापुरुषोतम राम कहा जाता है।

रामनवमी की पूजा विधि

भगवान राम के जन्मदिवस पर पूजा करने की विधि अलग है। रामनवमी व्रत के लिए सुबह उठकर व्रत रखने का संकल्प लिया जाता है। व्रत की सुबह से लेकर अगली सुबह तक यह व्रत चलता है। कुछ लोग या व्रत निराहार तो कुछ फलाहार के रूप में रखते हैं। इस व्रत की पूजा व्रत के शुरू होने और खत्म होने के समय भी की जाती है। इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है। कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत इस दिन बिना मुहुर्त के की जा सकती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। रोली, चावल, स्वच्छ जल, फूल, घंटी, शंख आदि और भी बहुत सी सामग्री पूजा के लिए इस्तेमाल होती है। भगवान राम और माता सीता व लक्ष्मण की मूर्ति को पूजा की सामग्री अर्पित करने के बाद मुट्ठी भर चावल चढ़ाए जाते हैं। भगवान राम की कथा, आरती, रामचालीसा के बाद पूजा में शामिल जल का घर में छिड़काव किया जाता है। जिसके बाद भक्त भगवान राम से अच्छे स्वास्थ्य, धन, बल की मनोकामनाएं कर प्रार्थना करते हैं। भगवान राम मर्यादापुरुषोतम थे उनकी मर्यादा और वचनों की आज तक दुहाई दी जाती है। जिसे ध्यान में रख भगवान राम को सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।

राम नवमी
To read this Article in English Click here

Forthcoming Festivals