
रमज़ान का महत्व
मुस्लिम समुदायों के लिए रमज़ान के महीने का बहुत महत्व होता है। यह महीना आत्मा को परमात्मा से मिलाने का महीना माना जाता है। मस्लिम समुदायों का मानना है कि इस महीने में रोजा रखने से अल्लाह की असीम कृपा प्राप्त होती है। रमज़ान की शुरुआत सन् दो हिजरी से हुई थी और तभी से अल्लाह के बंदों पर जकात भी फर्ज की गई थी। रमज़ान के महीने में अल्लाह के लिए हर रोजेदार बहुत खास होता है और खुदा उसे अपने हाथों से बरकत और रहमत नवाजता है। इस माह में बंदे को 1 रकात फर्ज नमाज अदा करने पर 70 रकात नमाज का सवाब (पुण्य) मिलता है। साथ ही इसमें शबे कद्र की रात में इबादत करने पर 1 हजार महीनों से ज्यादा वक्त तक इबादत करने का सवाब हासिल होता है। कुरान शरीफ में लिखा है कि मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज किए गए हैं ताकि इस खास बरकत वाले रूहानी महीने में उनसे कोई गुनाह नहीं होने पाए। यह खुदाई असर का नतीजा है कि रमज़ान में लगभग हर मुसलमान इस्लामी नजरिए से खुद को बदलता है और हर तरह से अल्लाह की रहमत पाने की कोशिश करते हैं। इस महीनें में बुरे कर्म ना करने के कारण और कुरान शरीफ का पाठ एवं नमाज अदा करन के कारण मुस्लिम दिल पवित्र और साफ होते हैं जिससे वो खुदा के बंदे बन जाते हैं। उर्ष वर्ष के चंद्र कैलेंडर के आधार पर रमज़ान 29 या 30 दिनों तक मनाया जाता है। जिसके बाद ईद-उल फितर मना कर इस पाक महीने का समापन किया जाता है। यह महीना कई मायनों में अलग और खास है। अल्लाह ने इसी महीने में दुनिया में कुरान शरीफ को उतारा था जिससे लोगों को इल्म और तहजीब की रोशनी मिली। साथ ही यह महीना मोहब्बत और भाईचारे का संदेश देने वाले इस्लाम के सार-तत्व को भी जाहिर करता है। रोजा न सिर्फ भूख और प्यास बल्कि हर निजी ख्वाहिश पर काबू करने की कवायद है। इससे मोमिन में न सिर्फ संयम और त्याग की भावना मजबूत होती है बल्कि वह गरीबों की भूख-प्यास की तकलीफ को भी करीब से महसूस कर पाता है। रमज़ान का महीना सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करने में मददगार साबित होता है। इस महीने में सक्षम लोग अनिवार्य रूप से अपनी कुल संपत्ति का एक निश्चित हिस्सा निकालकर उसे 'जकात' के तौर पर गरीबों में बांटते हैं।सहरी
रमज़ान के महीने के दौरान, नियमित रूपसे लोग सूरज उगने से पहले ही उठकर सहरी करते है, सहरी खाने का वक्त सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले का होता है। सहरी खाने के बाद रोज़ा शुरू हो जाता है। रोजेदार पुरे दिन कुछ भी खाता पीता नहीं है। शाम के समय तय वक्त पर इफ्तार कर रोज़ा खोला जाता है। सामान्यतौर पर सूरज डूबने के 3 से 4 मिनट बाद ही रोजा खोल लेना चाहिए। फिर रत की इशा की नमाज करीब 9 बजे पढ़ी जाती है और उसके बाद तरावीह की नमाज अदा की जाती है। इस समय मस्जिदों में क़ुरान पढ़ी जाती है। ये सिलसिला पुरे महीने चलता रहता है। महीने के आखिर में 29 का चाँद होने पर ईद मनाई जाती है। 29 का चाँद नहीं दिखने पर 30 रोजे पुरे कर अगले दिन ईद का जश्न मनाया जाता है।
फज्र
मुसलमानों के लिए, फ़ज्र रोज़ाना पांच नमाजों को अदा करने को कहते हैं। अल्लाह ने अपने बन्दों पर एक दिन और रात में पाँच नमाज़ें अदा करनी अनिवार्य की हैं जो अल्लाह तालाह की हिक्मत की अपेक्षा के अनुसार कुछ निश्चित और निर्धारित समय के साथ विशिष्ट हैं, ताकि बन्दा इन नमाज़ों के अंदर इन सभी वक़्तों की अवधि के दौरान अपने सर्वशक्तिमान रब के साथ संपर्क में रहे।
इफ्तार
इफ्तार में मगरीब प्रार्थना की जाती है। सूर्यास्त के बाद भोजन किया जाता है जिसे इफ्तार कहते हैं। इस समय सभी मस्लिम लोग उनके रिश्तेदार आपस में मिलकर इफ्तार करते हैं।
तारावीह और ईशा
विशेष रात की प्रार्थनाओं को बुलाया जाता है, तारावी प्रार्थनाएं रात में आयोजित की जाती हैं और आखिर में ईशा प्रार्थनाएं की जाती है। हैं। दुनिया भर में मस्जिदों में इन प्रार्थनाओं में सुनाया जाता है।

शिया और सुन्नी की अलग है मान्यता
आमतौर पर शिया और सुन्नी दोनों ही रमज़ान एक जैसे ही मनाते हैं, लेकिन दोनों के तरीकों में थोड़ा फर्क होता है। मसलन सुन्नी समुदाय के लोग अपना रोज़ा सूरज छिपने पर खोलते हैं। वहीं शिया पूरी तरह से अंधेरा होने के बाद रोज़ा खोलते हैं।कुछ परिस्थिति में रोज़ा ना रखने की होती है इज़ाजत
यूं तो रमज़ान के महीने में हर मुस्लिम व्यक्ति रोज़ा रख अपने खुदा को याद कर सकता है। लेकिन कुछ परिस्थितियों जैसे बीमार होना, यात्रा करना, गर्भावस्था में होना ,मासिक धर्म से पीड़ित होना एवं बुजुर्ग होने पर रोज़ा ना रखने की छूट होती है।कैसा होता है रोज़ा
रमज़ान में रोज़ा किया जाता है जिसे अल्लाह की इबादत भी कहते हैं। रोज़े के दौरान रोज़ेदार पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए रहते हैं। हर दिन सुबह सूरज उगने से पहले थोड़ा खाना खाया जाता है। इसे सुहूर (सेहरी) कहते हैं, जबकि शाम ढलने पर रोज़ेदार जो खाना खाते हैं उसे इफ्तार कहते हैं।रोज़ेदार हर रोज खजूर खाकर रोज़ा तोड़ते हैं। एक इस्लामिक साहित्य के मुताबिक अल्लाह के एक दूत को अपना रोज़ा खजूर से तोड़ने की बात लिखी गई है। इसी के आधार पर सभी रोज़ेदार खजूर खाकर सेहरी एवं इफ्तार मनाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी खजूर खाने के फायदे हैं। खजूर लीवर, पेट की दिक्कत व कमजोरी जैसी अन्य बीमारियों को ठीक करता है, इसलिए रोज़ेदार इसे खाते हैं।
रमज़ान के दौरान खास दुआएं पढ़ी जाती हैं। हर दुआ का समय अलग अलग होता है। दिन की सबसे पहली दुआ को फज्र कहते हैं। जबकि रात की खास दुआ को तारावीह कहते हैं।
रमज़ान में बुराई की होती है मनाही
रमज़ान के दौरान रोज़ेदारों को बुरी सौहबतों से दूर रहना चाहिए, उन्हें न तो झूठ बोलना चाहिए, न पीठ पीछे किसी की बुराई करनी चाहिए और न ही लड़ाई झगड़ा करना चाहिए। इस्लामिक पैगंबरों के मुताबिक ऐसा करने से अल्लाह की रहमत मिलती है।रोज़ा यानी संयम। आप कितना संयम बरत सकते हैं, इस बात की परीक्षा इस दौरान होती है। तमाम बुराइयों से दूर रहना चाहिये। गलत या बुरा नहीं बोलना, आंख से गलत नहीं देखना, कान से गलत नहीं सुनना, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना।
रोज़े के दौरान किसी भी स्त्री को गलत नियत से नहीं देखना चाहिए। इस बात की सख्त मनाही होती है। यहां तक अपनी पत्नी तक को नहीं। पत्नी के लिये मन में कामवासना नहीं जागनी चाहिये। गैर औरत के बारे में तो ऐसा सोचना ही हराम है।
रोज़े में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है, जिससे इन्सान में एक वक्ती कमज़ोरी आ जाती है और वह किसी भी हैवानी काम के विषय में नहीं सोचता, शोर नहीं मचाता, हाथापाई नहीं करता इत्यादि। जिस स्थान पर ऐसा हो रहा हो, वहां रोज़ेदार के लिए खड़ा होना मना है।
रोज़े के वक्त झूठ नहीं बोलना चाहिये। हिंसा, बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से दूर रहना चाहिये। इसकी मश्क यानी (अभ्यास) पूरे एक महीना कराया जाता है ताकि इंसान पूरे साल तमाम बुराइयों से बचे और इंसान से हमदर्दी का भाव रखे। शराब का सेवन इस्लाम में हराम है। रमज़ान पाक में के दौरान इसके अलावा भी कोई भी नशा सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू, आदि हराम है।
रोज़े में करना चाहिए नेक काम
रमज़ान के माह में मुसलमान के हर नेक अमल यानी पुण्य के कामों का सबाव 70 गुना बढ़ा दिया जाता है। 70 गुना अरबी में मुहावरा है, जिसका मतलब होता है बेशुमार। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने पुण्य के कामों में अधिक से अधिक हिस्सा लेना चाहिये। दान पुण्य करें ज़कात इसी महीने में अदा की जाती है। यदि कोई व्यक्ति अपने माल की ज़कात इस महीने में निकालता है तो उसको 1 रुपये की जगह 70 रुपये अल्लाह की राह में देने का पुण्य मिलता है।रमज़ान के दौरान पूरे महीने कुरान पढ़ना चाहिए। पैगंबरों के मुताबिक कुरान को इस्लाम के पांच स्तम्भों में से एक माना गया है। रोज़े के वक्त कुरान पढ़ने से खुदा बंदों के गुनाह माफ करते हैं और उनके लिए जन्नत का दरवाजा खोलते हैं।
रमज़ान के वक्त रोज़ेदारों को दरियादिली दिखानी चाहिए, उन्हें दान(जकात) देना चाहिए। इससे उन्हें सबाब(पुण्य) मिलेगा। कई लोग इस दौरान मस्जिदों में मुफ्त में लोगों को खाना खिलाते हैं। जबकि कई लोग जरूरतमंदों को जरूरी सामान भी बांटते हैं।