रानी सती मेला उत्सव
झुनझुनू (उत्तरी शेखावती) में रानी सती मेला दुनिया भर के हजारों लोगों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। मेला झुनझुनू में रानी सती मंदिर में आयोजित किया जाता है। इस मंदिर को देश के सबसे प्राचीन तीर्थयात्राओं में से एक होने का गौरव प्राप्त है। हर साल, भादो अमावस्या या पूर्णिमा के अवसर पर एक पवित्र पूजनोत्सव रानी सती मंदिर में झुनझुनू में आयोजित किया जाता है। इस शुभ दिन हर साल मंदिर परिसर में लाखों भक्त इकट्ठे होते हैं और राजसी श्री रानी सतीजी की झलक पाने के लिए कतार मैं खड़े होकर उनका दर्शन करते हैं। राजस्थान के झुंझुनू में स्थित है रानी सती का मंदिर। शहर के बीचों-बीच स्थित मंदिर झुंझुनू शहर का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। बाहर से देखने में ये मंदिर किसी राजमहल सा दिखाई देता है। पूरा मंदिर संगमरमर से निर्मित है। इसकी बाहरी दीवारों पर शानदार रंगीन चित्रकारी की गई है। मंदिर में शनिवार और रविवार को खास तौर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भक्त इस मेले में आकर सती माता के दर्शन तो करते हीं है साथ ही मेले का आनंद भी उठाते हैं। मेले में लोक कला का अद्भुद नज़ारा देखने को मिलता है। लोक गीतों एवं लोक नृत्य से कलाकार दर्शकों का मन मोह लेते हैं। रानी सती मेले में कई तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है। बच्चों के लिए भी कई तरह के झुले, खिलौने मेले में उपलब्ध होते हैं। स्त्रियां रानी सती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना करती है। पारंपरिक वस्त्रों को धारण कर दूर-दूर से लोग इस मेले में शामिल होने के लिए आते हैं।रानी सती मंदिर की खासियत
रानी सती जी को समर्पित झुंझुनू का मंदिर 400 साल पुराना है। यह मंदिर सम्मान, ममता और स्त्री शक्ति का प्रतीक है। देश भर से भक्त रानी सती मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। भक्त यहां विशेष प्रार्थना करने के साथ ही भाद्रपद माह की अमावस्या पर आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में भी हिस्सा लेते हैं। रानी सती मंदिर के परिसर में कई और मंदिर हैं, जो शिवजी, गणेशजी, माता सीता और रामजी के परम भक्त हनुमान को समर्पित हैं। मंदिर परिसर में षोडश माता का सुंदर मंदिर है, जिसमें 16 देवियों की मूर्तियां लगी हैं। परिसर में सुंदर लक्ष्मीनारायण मंदिर भी बना है। राजस्थान के मारवाड़ी लोगों का दृढ़ विश्वास है कि रानी सतीजी, स्त्री शक्ति की प्रतीक और मां दुर्गा का अवतार थीं। उन्होंने अपने पति के हत्यारे को मार कर बदला लिया और फिर अपनी सती होने की इच्छा पूरी की। रानी सती मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। वैसे अब मंदिर का प्रबंधन सती प्रथा का विरोध करता है। मंदिर के गर्भ गृह के बाहर बड़े अक्षरों में लिखा है- हम सती प्रथा का विरोध करते हैं। मंदिर के गर्भ गृह में निकर और बरमुडा पहने लोगों का प्रवेश वर्जित है। मंदिर सुबह 5 बजे से दोपहर एक बजे तक और शाम 3 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए विशाल आवास बना है, जहां 100 रुपये से लेकर 700 रुपये तक के कमरे उपलब्ध हैं। मंदिर में एक कैंटीन और एक भोजनालय भी है। कैंटीन में दक्षिण भारतीय भोजन भी उपलब्ध है।रानी सती की पौराणिक कथा
रानी सती मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा विद्यमान है। मंदिर के अस्तित्व की कहानी महाभारत के समय की है। ऐसा कहा जाता है कि नारायणी की इच्छा थी अभिमन्यु से विवाह करने की जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने आशीर्वाद देते हुए दोनों के अगले जन्म में पूरा किया। रानी सती का जन्म हिस्सार के सेठ ज़ालीराम जी के घर पर हुआ था | इनकी माता का नाम शारदा देवी था ‘नारायणी’ बाई रखा गया था। ये बचपन में धार्मिक व सतियों वाले खेल सखियों के साथ खेला करती थी। कथा आदि में विशेष रूचि लेती थी। बड़ी होने पर सेठजी ने इन्हे धार्मिक शिक्षा , शस्त्र शिक्षा, घुड़सवारी आदि की भी शिक्षा दिलाई थी। इन्होंने इनमें प्रवीणता प्राप्त कर ली थी। इनकी शादी राजकुमार अभिमन्यु से हुई थी। उस समय हिसार का राजा जो अभिमन्यु के घोड़े को जीतना चाहता था, उसने अपने पुत्र को अभिमन्यु से युद्ध करने के लिए भेजा ताकि वह उस युद्ध में उस घोड़े को जीत कर ला सके। उस युद्ध में राजा के बेटे को अभिमन्यु ने मार डाला और विजय प्राप्त की। गुस्से में राजा ने नारायणी के आँखों के सामने अभिमन्यु की हत्या कर दी। नारायणी, जो महिला शक्ति और बहादुरी की प्रतीक थीं, उन्होंने अपने पति के हत्यारे को मार कर बदला लिया और फिर अपनी सती होने की इच्छा पूरी की।। इसके बाद उन्होंने राणा जी, घोड़े के रखवाले को आदेश दिया कि उनके पति के अंतिम संस्कार के साथ उनकी भी आत्मदाह की तैयारी की जाये। सती के प्रति वफादार होने के नाते, राणाजी को आशीर्वाद प्राप्त हुआ कि पूजा में सती के नाम के साथ उनका भी नाम लिया जायेगा। इसलिए तब से उन्हें रानी सती कहा जाने लगा। मंदिर के प्रति लोक मान्यता राजस्थान के स्थानीय लोगों का दृढ़ विश्वास है कि रानी सतीजी, स्त्री शक्ति की प्रतीक और मां दुर्गा का अवतार थीं। रानी सती मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। वैसे अब मंदिर का प्रबंधन सती प्रथा का विरोध करता है। इस मंदिर में किसी भी देवी देवता की कोई भी छवि या चित्र नहीं है। बस मंदिर के मुख्य कक्ष में रानी सती की एक तस्वीर लगी हुई है और बाकि मंदिर की सारी दीवारें रंग बिरंगे चित्रों से सजी हुई हैं। मंदिर परिसर में षोडश माता का सुंदर मंदिर है, जिसमें 16 देवियों की मूर्तियां लगी हैं। परिसर में सुंदर लक्ष्मीनारायण मंदिर भी बना है। मंदिर कई भित्ति चित्रों और अन्य चित्रों से भरा हुआ है जो उस जगह के इतिहास को बखूबी दर्शाते हैं। मंदिर परिसर के बिल्कुल केंद्र में शिव जी की एक बड़ी सी प्रतिमा स्थापित है जो चारों ओर बगीचे से घिरा हुआ है।रानी सती जी की आरती
जय श्री रानी सती मैया, जय श्री रानी सती |अपने भक्त जनों की दूर करने विपत्ति || जय
अवनि अनवर ज्योति अखंडित मंडित चहुँ कुकुमा |
दुर्जन दलन खंग की विद्युत् सम प्रतिभा || जय
मरकत मणि मन्दिर अति मंजुल शोभा लाख न परे |
ललित ध्वजा चहुँ और कंचन कलस धरे || जय
घंटा घनन घडावल बाजे शंख मृदंग धुरे |
किंनर गायन करते वेद ध्वनि उचरे || जय
सप्त मातृका करें आरती सुरगण ध्यान धरे |
विविध प्रकार के व्यंजन श्री भेंट धरे || जय
संकट विकट विडानि नाशनि हो कुमती |
सेवक जन हृदि पटले मृदुल करन सुमती || जय
अमल कमल दल लोचनि मोचनि त्रय तापा |
“शांति ” सुखी मैया तेरी शरण गही माता || जय
या मैया जी की आरती जो कोई नर गावे |
सदन सिद्धि नवनिधि फल मन वांछित पावें || जय
कैसे पहुंचे झुंझुनु
रानी संती मंदिर तक पहुंचने के लिए झुंझुनू बस स्टैंड से रानी सती मंदिर के लिए ऑटो रिक्शा लें। दूरी तीन किलोमीटर है। ऑटो रिक्शा वाले 10 रुपये किराया लेते हैं। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 2 किलोमीटर है। वहीं शहर के गांधी चौक से मंदिर की दूरी महज एक किलोमीटर है। आप ऑटो रिजर्व करके भी मंदिर जा सकते हैं। अगर एक दिन रुकना है तो रानी सती मंदिर के स्वागत कक्ष पर आवास के लिए भी आग्रह कर सकते हैं।To read this Article in English Click here