रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय
प्रमुख साहित्यकार, नाटककार, कवी रविन्द्रनाथटैगोर का जन्म 9 मई 1861 को एक धनी एवं समृद्ध ब्राह्मण परिवार में पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। इनके पिता जी का नाम देवेन्द्र नाथ टैगोर और मां का नाम शारदा देवी था। ये अपने माता-पिता के 15 संतान में से 14वें पुत्र थे। रविन्द्रनाथटैगोर ने शुरुआती पढ़ाई स्कूल से नहीं बल्कि घर से से की थी। 6 साल घर पर पढ़ाई करने के बाद सेंट जेवियर स्कूल में की। उसके बाद वकील बनने की चाहत में इंग्लैंड चले गए लेकिन उसके बाद लंदन यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर एक साल के अंदर ही बिना डिग्री लिए भारत वापस आ गए। पिता देवेन्द्रनाथ का एक समाजसेवी एवं बुद्धिजीवी व्यक्तित्व का व्यक्ति होने के कारण रविन्द्रनाथ पर इस चीज का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था और इसी वजह से उनकी वकील बनने की चाहत थी। आठ साल की उम्र में ही रबीन्द्रनाथ टैगोर ने कविता ‘अभिलाषा’,’तत्वभूमि’ नामक पत्रिका में छपी थी। टैगोर घोर राष्ट्रवादी थे और ब्रिटिश राज की भर्त्सना करते हुए देश की आजादी की मांग की थी। जलियावाला बाग कांड के बाद उन्होंने अंग्रेजों की ओर से दिए गए नाइटहुड का त्याग कर दिया था। टैगोर के बारे में एक सबसे रोचक और गौरवानित बात यह हैं कि वे एशिया के सबसे पहले प्रथम नोबेल पुरुस्कार से पुरस्कृत व्यक्ति हैं। विन्द्र नाथ टैगोर अपने जीवन में तीन बार अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक से मिल चुके थे। अल्बर्ट टैगोर जी को रब्बी टैगोर कह कर पुकारते थे। वे नाटक सांकेतिक हैं। उनके नाटकों में डाकघर, राजा, विसर्जन आदि शामिल हैं। बचपन से ही रवींद्रनाथ की विलक्षण प्रतिभा का आभास लोगों को होने लगा था। उन्होंने पहली कविता सिर्फ आठ साल में लिखी और केवल 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी। रवींद्रनाथ की रचनाओं में मानव और ईश्वर के बीच का स्थायी संपर्क कई रूपों में उभरता है। इसके अलावा उन्हें बचपन से ही प्रकृति का साथ काफी पसंद था। रवींद्रनाथ चाहते थे कि विद्यार्थियों को प्रकृति के सानिध्य में अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने इसी सोच को मूर्त रूप देने के लिए शांतिनिकेतन की स्थापना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीत मानवीय भावनाओं के विभिन्न रंग पेश करते हैं। गुरूदेव बाद के दिनों में चित्र भी बनाने लगे थे। रवींद्रनाथ ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्राएँ की थी। 7 अगस्त 1941 को देश की इस महान विभूति का देहावसान हो गया।रबीन्द्रनाथ टैगोर का साहित्य
एक प्रतिष्ठित कवि, दृश्य कलाकार, नाटककार, उपन्यासकार, और संगीतकार रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 1 9वीं सदी के अंत और 20 वीं सदी की शुरुआत में भारतीय साहित्य और संगीत को एक नया आयाम दिया। उनकी सुप्रसिद्ध रचना गीतांजली को 1 9 13 में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से एशिया के पहले व्यक्ति के रुप में नवाजा गया। गीतांजली का कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। टैगोर ने राजनीतिक और व्यक्तिगत विषयों पर उपन्यास, लघु कथाएं, गीत, नृत्य नाटक, और निबंध लिखे। उनके सर्वश्रेष्ठ काम गीतांजलि, गोरा और घारे-बायर ने उन्हें दुनिया भर में प्रशंसा दिलाई। टैगोर एक सांस्कृतिक सुधार लाए जिसने कलात्मक रूप से भारतीय शास्त्रीय रूपों का पालन करने की कला का आधुनिकीकरण किया। उनके गीतों में अलग सा ही आकर्षण होता था जो किसी पर भी जादू चलाने का काम कर सकता है टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने कई साहत्यिक रचनाएं की थी जिनमें प्रमुख हैं गीतांजलि, नैवेद्य मायेर खेला, वीथिका शेषलेखा पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, , परिशेष, पुनश्च, , चोखेरबाली, कणिका, और क्षणिका, वनवाणी, आदि शामिल हैं।रबीन्द्रनाथ टैगोर जयंती
रबीन्द्रनाथ टैगोर जयंती पूरे भारत में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है किन्तु उनका जन्म स्थान बंगाल में होने के कारण कोलकाता के निवासी और बंगाली लोग उस दिन को अपने प्रमुख त्योहारों में से एक मानते हैं। इस दिन रबीन्द्रनाथ टैगोर को उनके अतुल्य ज्ञान के लिए धन्यवाद दिया जाता है, उन्हें याद किया जाता है। इस दिन महान कवि रवींद्रनाथ की स्मृति में सांस्कृतिक कार्यक्रम और कविता के पाठ पूरे शहर में आयोजित किए जाते हैं। इस दिन सभी सांस्कृतिक गतिविधियां जोरासंको ठाकुरबरी में आयोजित की जाती हैं। संगीत, कविताएं, नाटक, पारंपरिक गाने और लोक नृत्यों से रविन्द्रनाथ जी को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। कई साहित्यकि प्रतिस्पर्धा का भी आयोजन किया जाता है। कई साहित्यकारों का सम्मान रबीन्द्रनाथ टैगोर पुरस्कार दे कर किया जाता है। संगोष्ठियों और चर्चाओं के माध्यम से रविन्द्रनाथ जयंती पर उनके ज्ञान को समाज में प्रचारित किया जाता है। शांतिनिकेतन में इस दिन को पूर्ण उत्साह के साथ मनाया जाता है।To read this Article in English Click here